सर्वोच्च न्यायालय ने आम आदमी पार्टी के पूर्व पार्षद और दिल्ली दंगों के आरोपी ताहिर हुसैन को 28 जनवरी को दिल्ली चुनाव प्रचार के लिए 6 दिन की सशर्त कस्टडी पैरोल दी है। यह पैरोल उन्हें चुनाव प्रचार के लिए मिली है।ताहिर इस बार असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम से मुस्तफाबाद सीट से उम्मीदवार हैं। ताहिर हुसैन से कुछ दिनों पहले ही आम आदमी पार्टी के नेता अरविन्द केजरीवाल को भी चुनाव प्रचार के लिए जमानत मिली थी। जबकि मीडिया में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार पिछले सप्ताह 20 जनवरी को शीर्ष अदालत ने जेल में बंद दिल्ली दंगों में आरोपी ताहिर हुसैन की चुनाव प्रचार के लिए अंतरिम जमानत की मांग पर कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा, ”ऐसे सभी लोगों के चुनाव लड़ने पर रोक लगनी चाहिए।”
कौन है ताहिर हुसैन
ताहिर हुसैन साल 2017 के एमसीडी चुनाव में आम आदमी पार्टी के टिकट पर जीता था। दिल्ली दंगा 2020 के मुख्य साजिशकर्ता के रूप में ताहिर हुसैन का नाम सामने आया और इसके ऊपर दंगों के लिए फंडिंग करने का भी आरोप था। ताहिर हुसैन के घर के छत पर पत्थर, पेट्रोल बम, इट, इत्यादि इकट्ठा करके रखा गया था। हिन्दू बस्तियों के अन्दर तक हमले करने के लिए इसके छत पर एक गुलेल भी लगाया हुआ था। चाँदबाग में हुए दंगों के दौरान ताहिर हुसैन का घर दंगा भड़काने का केंद्र बना हुआ था। आईबी अधिकारी अंकित शर्मा की हत्या में ताहिर हुसैन मुख्य आरोपी है। अब वह रिहा होकर अपने चुनाव में प्रचार करेगा। ताहिर ने दंगे में अपनी लाइसेंसी पिस्टल का इस्तेमाल किया था। पुलिस के मुताबिक हुसैन ने दंगे से ठीक एक दिन पहले खजूरी खास पुलिस स्टेशन में जमा अपनी पिस्टल निकलवाई थी। जांच के दौरान पुलिस ने पिस्टल जब्त कर ली थी। चार्जशीट में दिल्ली पुलिस ने कहा था कि हिंसा के वक्त ताहिर हुसैन अपने घर की छत पर था और उसकी वजह से ही हिंसा भड़की थी।
ताहिर के मामले में जस्टिस पंकज मित्तल ने कहा— ताहिर की याचिका स्वीकार करने से एक नई प्रथा शुरू हो जाएगी। विचाराधीन कैदी चुनाव में खड़े हो जाएंगे और चुनाव लड़ने और प्रचार के लिए अंतरिम जमानत मांगेगे। सबूतों और गवाहों से छेड़छाड़ की भी संभावना है। ताहिर को लेकर जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह का रूख नर्म था।
क्या है कहानी 2020 के दंगों की
नागरिकता (संशोधन) विधेयक 2019 के पारित होने के बाद देश के कई हिस्सों में विरोध प्रदर्शन किया गया। इन विरोध प्रदर्शनों की आड़ में 23, 24 और 25 फरवरी 2020 के दौरान दिल्ली के सबसे घनी आबादी वाले क्षेत्र उत्तर पूर्वी दिल्ली में सुनियोजित दंगे कराये गए। दिल्ली के जाफराबाद, सीलमपुर, भजनपुरा, ज्योति नगर, करावल नगर, खजूरी खास, गोकुलपुरी, दयालपुर और न्यू उस्मानपुर समेत 11 पुलिस स्टेशन के इलाकों में दंगाइयों ने जमकर उत्पात मचाया था। उस दंगे में 53 लोगों की जान चली गई थी और कई लोग घायल हो गए थे। हजारों करोड़ की संपत्ति जलकर खाक हो गई। दंगों के मामले में दिल्ली पुलिस ने कुल 758 एफआईआर दर्ज किए थे। यह संयोग था या प्रयोग कि इस दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भारत में थे और दुनिया भर की मीडिया भारत में थी।
उसी दौरान ताहिर हुसैन, उमर खालिद, सरजील इमाम, खालिद सैफी और अन्य इस्लामिस्ट एवं शहरी नक्सलियों द्वारा एक साजिश रची गई थी। दिल्ली पुलिस ने अपनी चार्जशीट में कहा कि ट्रंप के दौरे के दौरान भारत को बदनाम करने के लिए ताहिर हुसैन, उमर खालिद ने दंगों की साजिश रची थी। आरोप पत्र के मुताबिक उमर खालिद ने वैश्विक प्रचार के लिए डोनाल्ड ट्रंप की यात्रा के दौरान दिल्ली दंगों को भड़काने की साजिश रची थी।
आरोप पत्र में आरोप लगाया गया, “साजिशकर्ताओं ने जो साजिश रची थी उसका अंतिम उद्देश्य था षड्यंत्र, आंतक एवं सांप्रदायिक हिंसा के इस्तेमाल से एक वैध रूप से चुनी हुई सरकार को उखाड़ फेंकना।”
आगे लिखा गया था, “अगर साजिशकर्ता पूरी तरह से सफल हो गए होते, तो सरकार की नींव हिल गई होती, जिससे भारतीय लोगों को अनिश्चितता, अव्यवस्था और अराजकता का सामना करना पड़ाता तथा नागरिकों का राज्य से यह विश्वास उठ जाता कि राज्य उनके जीवन और संपत्ति की रक्षा कर सकता है।”
दिल्ली पुलिस ने हाई कोर्ट को बताया कि नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के खिलाफ शाहीन बाग में चल रहा प्रदर्शन प्राकृतिक या स्वतंत्र आंदोलन नहीं था।पुलिस ने कहा कि पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) और सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (एसडीपीआई) शाहीन बाग और विभिन्न स्थानों के पीछे थे।
दिल्ली में हिंसा भड़काने में षड्यंत्र एवं व्यक्तियों की भूमिका निर्धारित करने के लिए मामले की पुलिस जांच में इस बात के पर्याप्त साक्ष्य सामने आए हैं, जो बताते है कि भारत की राजधानी को दहलाने वाले दंगे पूर्व-नियोजित थे, बड़े पैमाने पर योजनाबद्ध थे और एक व्यापक साजिश का हिस्सा थे।
आरोप पत्र में उल्लिखित एक आरोपी के फोन से प्राप्त व्हाट्सएप संदेश बिना किसी संदेह के दिल्ली में दंगे भड़काने की साजिश की योजना बनाने और उसे क्रियान्वित करने में उनकी संलिप्तता को साबित करता है। “घर में गरम खौलता हुआ पानी और तेल का इंतजाम करें, तेजाब की बोतल घर में रखे, कार-बाइक से पेट्रोल निकालकर रखे, बॉलकनी और छत पर ईंट-पत्थर रखें, लोहे के दरवाजों में स्विच से करंट का इस्तेमाल करें।” ये कुछ वे मेसेज हैं जो दिल्ली में हिंसा की तैयारी के तहत व्हाट्सएप ग्रुपों में प्रचारित किए गए थे। दंगे की योजना को बेहद खुफिया और सुनियोजित तरीके से अंजाम दिया गया था।
मिश्रित आबादी वाला है उत्तर-पूर्वी दिल्ली
उत्तर पूर्वी दिल्ली में हिंदू और मुस्लिम की मिश्रित आबादी है। इस दंगे का एक उद्देश्य हिंदुओं को क्षेत्र से भागने के लिए मजबूर करके क्षेत्र की जनसांख्यिकी को बदलना भी था। हिंदू-मुस्लिम मोहल्ले की सीमा पर रणनीतिक तौर पर सीएए विरोधी टेंट लगाए गए। उत्तर पूर्वी दिल्ली में रहने वाला समाज साम्प्रदायिक सौहार्द में विश्वास करने वाला समाज था, उसे यकिन नहीं था कि ‘उनके बीच से’ कुछ लोग ‘उनके’ खिलाफ षडयंत्र कर रहे हैं। इस षडयंत्र का खुलासा दिल्ली पुलिस की जांच से हुआ। वर्ना ताहिर हुसैन, फैजल फारुकी, सफूरा जरगर, मीरान हैदर, आसिफ इकबाल, इशरत जहां, खालिद सैफी, शरजील इमाम, गुलिस्ता फातिमा, शफी-उर-रहमान, नताशा नरवाल, देवांगना कलीता पर दंगा होने से पहले दंगाई होने का संदेह भी किसी ने नहीं किया था। संदेह तो उत्तर पूर्वी दिल्ली के लोगों ने उस समय भी नहीं किया जब समुदाय विशेष के बच्चे अचानक छुट्टी होने से पहले स्कूलों से निकाल कर घर ले जाए गए। जो बच्चे उन स्कूलों में शेष रह गए, वह दंगों के बीच फंस गए थे। जब सड़क पर दंगा हो और आपका बच्चा स्कूल में हो तो माता पिता पर क्या बीतती है, यह बात कोई उत्तर पूर्वी दिल्ली जाकर उन अभिभावकों से पूछे जिनके बच्चे उस दिन स्कूल में फंसे हुए थे।
भीम मीम के खोखले दावे
दिनेश कुमार खटीक अपने बच्चे के लिए दूध लाने के लिए निकले थे। बताया जाता है कि फैजल फारुकी के राजधानी स्कूल की छत से चली गई गोली ने उनकी जान ले ली। भीम और मीम की राजनीति करने वालों का कोई एक प्रतिनिधि अब तक दिनेश के घर पर नहीं गया। इन नेताओं को भीम से प्रेम नहीं है या मीम के बिगाड़ से डरते हैं?
वंचित समाज के साथ खड़े होने का दावा करने वाले चन्द्रशेखर आजाद इसलिए शायद उत्तर पूर्वी दिल्ली के पीड़ित परिवारों से आज तक मिलने नहीं गए क्योंकि वे पीड़ित के साथ खड़े होते तो नगीना से फिर सांसद कैसे बनते? नगीना सीट पर 16 लाख मतदाताओं में 06 लाख मतदाता मुसलमान भी तो हैं। एक दिनेश खटीक के लिए चन्द्रशेखर अपने छह लाख मतदाताओं को कैसे नाराज कर सकते हैं?
नागरिकता (संशोधन) अधिनियम 2019
11 दिसंबर 2019 को संसद ने नागरिकता (संशोधन) विधेयक 2019 पारित कर दिया।राज्यसभा ने इसे 11 दिसंबर 2019 को पारित किया तथा लोकसभा ने 9 दिसंबर 2019 को विधेयक पारित किया। नागरिकता अधिनियम 1955 में संशोधन करने के लिए यह नागरिकता संशोधन विधेयक पहले 2016 में भी लोकसभा में पेश किया गया था। तब इस विधेयक को एक संयुक्त संसदीय समिति को भेजा गया था, जिसकी रिपोर्ट बाद में 7 जनवरी, 2019 को प्रस्तुत की गई थी। 8 जनवरी, 2019 को नागरिकता संशोधन विधेयक लोकसभा द्वारा पारित किया गया लेकिन 16वीं लोकसभा के विघटन के कारण वह विधेयक स्वतः समाप्त हो गया। इस विधेयक को 9 दिसंबर 2019 को 17वीं लोकसभा में गृह मंत्री अमित शाह द्वारा फिर से पेश किया गया। भारत के राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद यह विधेयक अधिनियम बन गया।
इस अधिनियम में पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश में धार्मिक उत्पीड़न के शिकार हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदायों से संबंधित व्यक्तियों को भारतीय नागरिकता प्रदान करने का प्रावधान है। इस विधेयक का उद्देश्य किसी की नागरिकता छीनना नहीं बल्कि देना है। इस विधेयक को लेकर अफवाहें उड़ाई गईं कि सीएए के बाद मुस्लिम अपनी नागरिकता खो देंगे। जो बिल्कुल झूठ था।
दिल्ली दंगों की पूर्वपीठिका शाहीन बाग
दिल्ली में विरोध प्रदर्शन मुख्य रूप से जामिया, निज़ामुद्दीन, दरियागंज और उत्तर पूर्वी दिल्ली में हुआ लेकिन शाहीन बाग इस विरोध का मुख्य केंद्र और चेहरा बन गया। ये विरोध प्रदर्शन सड़क पर शक्ति के खुले प्रदर्शन के अलावा और कुछ नहीं थे।15 दिसंबर 2019 को शाहीन बाग में मुस्लिम समाज की महिलाएं धरने पर बैठ गईं तथा नोएडा और सरिता विहार को जोड़ने वाली मुख्य सड़क को जाम कर दिया। यह अनिश्चित कालीन जाम सड़क पर शक्ति के माध्यम से केंद्र सरकार को अपनी मांग मानने के लिए मजबूर करने का एक प्रयास था। इसे वामपंथी उदारवादी, शहरी नक्सली और राष्ट्र-विरोधी तत्वों का भारी समर्थन और सहयोग मिला। शाहीन बाग़ ने उन हिंदुओं के बीच भी नाराज़गी पैदा की जो सड़क पर इस अवरोध के कारण समस्या का सामना कर रहे थे। यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट को भी कहना पड़ा कि शाहीन बाग में सीएए विरोधी प्रदर्शनकारी सार्वजनिक सड़क को अवरुद्ध नहीं कर सकते और दूसरों के लिए असुविधा पैदा नहीं कर सकते।
इस दौरान जामिया और दिल्ली गेट में हिंसक विरोध प्रदर्शन और पुलिस और सुरक्षा कर्मियों के साथ प्रदर्शनकारियों की झड़प की सूचना मिलती रही। विरोध प्रदर्शन के ये स्थान विशेष रूप से मुस्लिम बहुल और मिश्रित आबादी वाले क्षेत्र थे। उत्तर पूर्वी दिल्ली में दंगों की जमीन चांद बाग और जाफराबाद में तैयार की गई, जहां मुस्लिम प्रदर्शनकारियों ने शाहीन बाग की कार्यप्रणाली अपनाई और सड़क जाम कर दी। रास्ता बंद करने वाले जानते थे कि इससे टकराव पैदा होगा।
हम नहीं भूलेंगे, 2020 के पीड़ितों को
अंकित शर्मा, 26 साल
इंटेलिजेंस ब्यूरो (आईबी) के अधिकारी अंकित शर्मा की हत्या शायद दिल्ली हिंसा की सबसे हाई-प्रोफाइल दुर्घटना थी। खजूरी खास निवासी 25 फरवरी को यह देखने के लिए अपने घर से बाहर निकले कि उसके पड़ोस में क्या हो रहा है, एक दिन बाद उसका शव पास के नाले में मिला। उस पर कई बार चाकू से हमला किया गया। इस मामले में आम आदमी पार्टी के तत्कालीन पार्षद ताहिर हुसैन मुख्य आरोपी हैं।
हेड कांस्टेबल रतन लाल, 42 वर्ष
रतन लाल दिल्ली पुलिस में हेड कांस्टेबल के रूप में कार्यरत थे और 24 फरवरी को उत्तर पूर्वी दिल्ली के गोकुल पुरी इलाके में हुई हिंसा को नियंत्रित करने की कोशिश के दौरान उन्हें गोली मार दी गई थी। जिस गोली से रतन लाल की मौत हुई वह उनके बाएं कंधे से लगी थी और उनके दाहिने कंधे से बरामद की गई थी। उनके परिवार में उनकी पत्नी और 13, 10 और 8 साल के तीन बच्चे हैं। वह सीकर, राजस्थान से हैं।
दिलबर सिंह नेगी, 20 साल
दिलबर सिंह नेगी हिंसा के दौरान सबसे ज्यादा प्रभावित इलाकों में से एक शिव विहार में एक मिठाई की दुकान पर काम कर रहे थे। 25 फरवरी को दोपहर का भोजन करने के बाद वह एक गोदाम में झपकी ले रहे थे तभी दंगाई आये। हमलावरों ने उसके शरीर के अंगों को काट दिया और आग लगा दी। परिवार का कहना है कि उन्हें दो दिन बाद दिलबर की मौत के बारे में पता चला।
नितिन कुमार, 15 वर्ष
नितिन कुमार दंगों के सबसे कम उम्र के पीड़ित थे। वह एक सरकारी स्कूल में आठवीं कक्षा का छात्र था। 26 फरवरी को वह चाऊमीन खरीदने गया था। आधे घंटे बाद उसके पिता को उसके परिवार के सदस्य का फोन आया और कहा गया कि नितिन नहीं मिल रहा है। वह वापस आया और उसकी तलाश की। स्थानीय लोगों ने उन्हें बताया कि पुलिस घायलों को जीटीबी अस्पताल ले गई है। जब नितिन के पिता जीटीबी अस्पताल पहुंचे तो नितिन की सांसें चल रही थीं, लेकिन कुछ घंटों बाद उनकी मौत हो गई।
राहुल सोलंकी, 26 साल
राहुल सोलंकी एक सिविल इंजीनियर थे। उनके परिवार ने बताया कि 24 फरवरी की शाम करीब 5:30 बजे वह पास की डेयरी से दूध लेने के लिए निकले थे, उनके जाने के 15 से 20 मिनट के भीतर उन्हें खबर मिली कि उन्हें गोली मार दी गई है। उनके गले में गोली लगी थी, परिवार उन्हें एक स्थानीय नर्सिंग होम में ले गया जहां उन्हें जीटीबी अस्पताल जाने के लिए कहा गया, रास्ते में तीव्र हिंसा के कारण परिवार ने उन्हें गाजियाबाद लोनी इलाके के एक अस्पताल में ले जाने का फैसला किया,इससे पहले कि वे अस्पताल पहुंच पातेसोलंकी की मृत्यु हो गई।
विनोद कुमार, 51 साल
विनोद एक पेशेवर डिस्क जॉकी (डीजे) थे। 24 फरवरी को रात करीब 10:00 बजे वह और उनका बेटा 25 वर्षीय नितिन कुमार पास की दुकान से दवा खरीदने के लिए मोटरसाइकिल पर घर से निकले, रास्ते में नितिन को एक पत्थर लगा और वे अपने वाहन से गिर गए। जल्द ही उन्हें दंगाईयों की भीड़ ने घेर लिया और लाठियों और पत्थरों से लैस मुस्लिमों भीड़ ने उन पर हमला कर दिया, मोटरसाइकिल को आग के हवाले कर दिया गया। जब भीड़ चली गई, तो एक स्थानीय व्यक्ति ने उनकी मदद की, जो उन्हें स्थानीय अस्पताल ले गया, कुछ घंटे बाद पिता की मृत्यु हो गई।नितिन के सिर में 42 टांके लगाए गए।
राहुल ठाकुर, 23 साल
राहुल बृजपुरी में रहता था जहां वह कर्मचारी चयन आयोग की परीक्षा की तैयारी कर रहा था। 25 फरवरी को हिंसा शुरू हो गई थी। वह यह देखने के लिए अपने घर से बाहर निकला कि क्या हो रहा है, कुछ ही मिनटों में उसके सीने में गोली मार दी गई।
वीरभान, 45 वर्ष
वीरभान 27 फरवरी को अपने बेटे के साथ मोटरसाइकिल पर काम से घर लौट रहे थे, वह मौजपुर में जींस और अन्य कपड़े बनाने वाली एक फैक्ट्री में काम करते थे। गोली लगने से वह शिव विहार के पास अपनी गाड़ी पर गिर पड़े। मूल रूप से राजस्थान के रहने वाले वीरभान पिछले 5 वर्षों से उत्तर पूर्वी दिल्ली में रह रहे थे, उनके परिवार में उनकी पत्नी, 22 वर्षीय बेटा और 15 वर्षीय बेटी है।
प्रेम सिंह, 27 साल
प्रेम सिंह अपनी गर्भवती, पत्नी और तीन बेटियों के साथ बृजपुरी इलाके में किराए के मकान में रहते थे। वह उत्तर प्रदेश के कासगंज का रहने वाले थे और 5 साल से उत्तर पूर्वी दिल्ली में रिक्शा चालक के रूप में काम कर रहे थे। 25 फरवरी को वह काम के लिए घर से निकले लेकिन वापस नहीं लौटे। उनके पड़ोसियों ने जीटीबी अस्पताल के शवगृह में उनके शव की पहचान की।
दंगे के खलनायक
उमर खालिद
जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय का पूर्व छात्र उमर खालिद दिल्ली दंगों का मुख्य साजिशकर्ता है। दिल्ली दंगे का पूरा षडयंत्र उमर खालिद ने रची। इसके पिता का भी प्रतिबंधित स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सीमी) से संबंध रहा हैं। उमर खालिद उस समय चर्चा में आया जब 2016 में अफजल गुरु की फांसी के विरोध में उसने जेएनयू में भड़काऊ भाषण दिया था। 2018 में भीमा कोरेगांव हिंसा में भी उसका नाम प्रमुखता से आया था। वह दो समुदाय के बीच नफरत फैलाने के लिए जाना जाता है।
ताहिर हुसैन
ताहिर हुसैन साल 2017 के MCD चुनाव में आम आदमी पार्टी के टिकट पर जीता था। दिल्ली दंगा 2020 के मुख्य साजिशकर्ता के रूप में ताहिर हुसैन का नाम सामने आया है तथा इसके ऊपर दंगों के लिए फंडिंग करने का भी आरोप है।ताहिर हुसैन के घर के छत पर पत्थर, पेट्रोल बम, इट, इत्यादि इकट्ठा करके रखा गया था। हिन्दू बस्तियों के अन्दर तक हमले करने के लिए इसके छत पर एक गुलेल भी लगाया हुआ था।चाँदबाग में हुए दंगों के दौरान ताहिर हुसैन का घर दंगा भड़काने का केंद्र बना हुआ था। आई बी अधिकारी अंकित शर्मा की हत्या में ताहिर हुसैन मुख्य आरोपी है।
शरजील इमाम
शरजील इमाम दिल्ली दंगा 2020 के मुख्य साजिशकर्ताओं में से एक है। पुलिस के अनुसार उमर खालिद ने कई बैठकों में शरजील इमाम को अपना भाई बताया था।बिहार के जहानाबाद के काको गांव का रहने वाला शारजील ने जवाहरलाल नेहरू विश्वविधालय से पीएचडी तथा आई आई टी मुंबई से कंप्यूटर साइंस में इंजीनियरिंग की है। सीएए प्रदर्शन के दौरान एक वीडियो आया था जिसमें इमाम ने असम को इंडिया से काट कर अलग करने की बात कही थी।
मीरान हैदर
सीएए का विरोध करने वाली जामिया कोऑर्डिनेशन कमेटी का संयोजक मीरान हैदर ही था। वह राजद की युवा ईकाइ का भी नेता है। दिल्ली पुलिस ने उसे पूर्वी दिल्ली के दंगों का सरगना बताया है। उसने दिसंबर 2019 में जामिया के छात्रों के साथ संसद मार्च का भी ऐलान किया था। वह पिंजरा तोड़, पीएफआई और यूनाइटेड अगेंस्ट हेट जैसे अलगावादी संगठनों के संपर्क में था। वह बिहार के सिवान जिले का रहने वाला है।
खालिद सैफी
यूनाइटेड अगेंस्ट हेट नामक संगठन चलाने वाले खालिद सैफी को पुलिस ने दंगा फैलाने वाले ग्रुप का अहम हिस्सा बताया है। पुलिस ने उसे कई मामलों में आरोपी बनाया है। नार्थ-ईस्ट दिल्ली के कई इलाकों में वह सक्रियता के साथ सीएए के विरोध प्रदर्शनों में शामिल हुआ था। पुलिस का कहना हैं कि लोगों को भड़काने के लिए इस ग्रुप ने एक ही पैटर्न का इस्तेमाल किया था। पुलिस का आरोप हैं कि वह उमर खालिद सहित कई अन्य दंगा भड़काने वाले लोगों के संपर्क में था।
फैजल फारुखी
फैजल फारुखी के पूर्वी दिल्ली में राजधानी पब्लिक स्कूल और विक्टोरिया पब्लिक स्कूल हैं।दंगों के समय इन स्कूलों से पेट्रोल बम, तेजाब की बोतले और गुलेल बरामद की गई थी। पुलिस ने दयालपुर थाने में उसके खिलाफ दंगा भड़काने का केस दर्ज किया है। दंगों के दौरान उस पर फंडिंग का भी आरोप है। पुलिस का कहना हैं कि दंगाईयों के लिए उसने अपने स्कूल को बेसकैंप की तरह इस्तेमाल किया।
आसिफ इकबाल तन्हा
जामिया मिलिया से बीए पर्शियन की पढ़ाई करने वाले आसिफ इकबाल तन्हा के खिलाफ दिल्ली पुलिस ने 16 सितंबर 2020 को पहले चार्जशीट अदालत में दाखिल की थी। उसे दंगों के आरोप में मई 2020 में गिरफ्तार किया गया था। तन्हा स्टेडेंट इस्लामिक ऑर्गेनाइजेशन का सक्रिय सदस्य है। वह उमर खालिद, मीरान हैदर और सफूरा जरगर के साथ मुस्लिम बस्तियों में लोगों को भड़काने के लिए सक्रिय था। वह झारखंड के हजारीबाग का रहने वाला है।
सफूरा जरगर
जामिया मिलिया की छात्रा रही सफूरा जरगर को लेकर पुलिस चार्जशीट में कहा गया हैं कि वह दंगा फैलाने वाले नेटवर्क का अहम हिस्सा थी। दंगों से पहले वह चांदबाग इलाके के लोगों के बीच जाकर भड़ाऊ भाषण देकर आई थी। वह जम्मू कश्मीर के किश्तवाड़ की रहने वाली है।
इशरत जहां
कांग्रेस की पार्षद रही इशरत जहां भी नार्थ-ईस्ट दिल्ली में दंगा फैलाने वाले ग्रुप की सक्रिय सदस्य थी। पुलिस के अनुसार उसने सीएए के विरोध के दौरान पुलिस पर हमला करने के लिए भीड़ को उकसाने का काम किया। पुलिस ने उसके खिलाफ यूएपीए के तहत मामला दर्ज किया है। पुलिस के अनुसार इशरत जहां जामिया कोऑर्डिनेशन कमेटी की सदस्य सफूरा जरगर के साथ दंगाईयों को भड़का रही थी।
यह सावधानी बरतने का समय है
दंगाइयों के इको सिस्टम को जानकर दिल्ली का आम आदमी हैरान हो सकता है। इस इको सिस्टम में प्रोफेसर, पत्रकार, बुद्धीजीवी सामाजिक कार्यकर्ता, मानवाधिकार कार्यकर्ता, स्त्रीवादी संगठन सब शामिल हैं।
जामिया समन्वय समिति (जेसीसी)
यूएपीए के आरोपी मीरान हैदर, सफूरा जारगर, आसिफ इकबाल तन्हा और शिफा-उल-रहमान जेसीसी के सदस्य हैं। दिल्ली पुलिस ने कोर्ट को बताया कि जेसीसी लोगों को सड़क जाम करने और दंगों के लिए उकसाने के लिए जिम्मेदार थी। पुलिस ने यह बात तब कही जब कोर्ट 30 मई 2020 को सफूरा जारगर की जमानत याचिका पर सुनवाई कर
रही थी।
जामिया समन्वय समिति का गठन दिसंबर 2019 में नागरिकता संशोधन अधिनियम के पारित होने के मद्देनजर किया गया था। इसमें जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के वर्तमान छात्र और पूर्व छात्र शामिल हैं। 14 दिसंबर 2019 को जामिया के बाहर सीएए विरोधी प्रदर्शन हुआ था और इसके कारण 15 दिसंबर 2019 को परिसर में हिंसा भी हुई थी क्योंकि दंगाई/पत्थरबाज विश्वविद्यालय की लाइब्रेरी में घुस गए थे। जामिया समन्वय समिति, जो सीएए विरोधी प्रदर्शनों के दौरान दिल्ली की सड़कों पर हिंसा भड़काने में सबसे आगे थी, ने दिल्ली के मुस्लिम बहुल इलाकों में बड़े पैमाने पर एक तथाकथित ‘जागरूकता अभियान’ चलाया था, जहां दिल्ली में हिंदू विरोधी दंगे भड़क उठे थे।
यूनाइटेड अगेंस्ट हेट
यह संगठन भारत में घृणा अपराधों में मुसलमानों की पीट-पीट कर हत्या के खिलाफ काम करने का दावा करता है। यूनाइटेड अगेंस्ट हेट ने सीएए के खिलाफ कई कार्यक्रम आयोजित किये थे। इसके संस्थापक खालिद सैफी को दिल्ली दंगों के मामले में इशरत जहां और साबू अंसारी के साथ 26 फरवरी 2020 को उत्तर पूर्वी दिल्ली के खुरेजी खास से गिरफ्तार किया गया था।
पिंजरा तोड़
दंगों के जांच के दौरान नताशा नरवाल और देवांगना कलिता का नाम प्रमुखता से सामने आया। नताशा और देवांगना दोनों “पिंजरातोड़ ग्रुप” से हैं और जाफराबाद मेट्रो स्टेशन के पास दंगे कराने की साजिश रचने में सक्रिय रूप से शामिल थीं। वे भी एक बड़ी साजिश का हिस्सा थे और ‘इंडिया अगेंस्ट हेट’ ग्रुप और उमर खालिद से जुड़े पाए गए थे। पिंजरा तोड़ पहली बार अगस्त 2015 में सुर्खियों में आया था, जब जामिया मिलिया इस्लामिया के कुलपति को एक गुमनाम खुला पत्र भेजा गया था, जिसमें महिला छात्रों के देर रात तक बाहर रहने के अधिकार को रद्द करने का विरोध किया गया था। इसके चलते दिल्ली भर में छात्र सड़कों पर उतर आए। वे महिलाओं को कैद करने वाली संस्थाओं के खिलाफ बोलना चाहते थे।
पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई)
जांच के दौरान इस्लामिक कट्टरपंथी संगठन के कई पदाधिकारियों को गिरफ्तार किया गया। यह एक ऐसा संगठन है जिस पर आतंक, बम बनाने और अन्य गतिविधियों के आरोप हैं। पीएफआई का केरल में भीषण हिंसा का इतिहास रहा है।
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