Delhi Assembly Election-2025: दिल्ली में चुनावी माहौल अपने चरम पर है। दिल्ली विधानसभा की 70 सीटों के लिए 5 फरवरी को वोटिंग होगी और 8 फरवरी को नतीजे आएंगे। आम आदमी पार्टी लगातार तीसरी बार सत्ता पाने के लिए संघर्ष कर रही है। वहीं, बीजेपी और कांग्रेस इस बार सत्ता में वापसी के लिए प्रयासरत हैं। 2020 में हुए विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने 62 सीटें जीती थी। वहीं बीजेपी को महज 8 सीटों पर जीत मिली थी। कांग्रेस का लगातार दूसरी बार दिल्ली से सफाया हो गया था। इस बार चुनाव से कुछ समय पहले अरविंद केजरीवाल ने अपने सीएम पद से इस्तीफा दे दिया था। उसके बाद आतिशी मार्लेना राज्य की सीएम बनी थीं।
चुनाव को नजदीक देखकर आम आदमी पार्टी (आप) के मुखिया अरविंद केजरीवाल ने ‘पुजारी ग्रंथी सम्मान योजना’ का वादा कर एक और बड़ा चुनावी दांव चल दिया है। केजरीवाल ने इस बार चुनाव जीतने पर दिल्ली के मंदिरों और गुरुद्वारों में सेवा करने वाले सभी पुजारियों और ग्रंथियों को हर महीने 18 हज़ार रुपये सम्मान राशि देने का वादा किया है। 1984 सिख दंगा पीड़ितों के लिए नौकरियों में आयु एवं योग्यता में छूट, धार्मिक कार्यक्रमों और त्यौहारों के लिए वित्तीय अनुदान, सिख विरोधी दंगों के पीड़ितों को मुआवजा, मुफ्त चिकित्सा, सिख धार्मिक संगठनों को अनुदान और सिख इतिहास और विरासत को संरक्षित करने के लिए विशेष योजनाएं लाने का वादा किया है। लेकिन, केजरीवाल ने पुजारियों और ग्रंथियों से यह वादा ऐसे समय पर किया है, जब दिल्ली वक्फ बोर्ड से जुड़े करीब 250 इमाम 17 महीने से बकाया वेतन की मांग कर रहे हैं।
आमतौर पर नेताओं और राजनीतिक दलों की घोषणाएँ आने वाले चुनाव की दस्तक होती है। इस घोषणा को भी इसी नज़रिए से देखा जा रहा है। इस घोषणा का मतलब सीधा है कि जनवरी-फ़रवरी में चुनाव है, तो पुजारियों को भी ख़ुश कर लो। परंतु इस तरह के लोक लुभावन वादों से प्रश्न उठता है कि क्या दिल्ली में इससे पहले पुजारी नहीं थे? जबकि आम आदमी पार्टी सरकार बने तो दस वर्ष हो गए हैं। यदि आप सरकार में राजनीतिक इच्छा शक्ति है तो फिर मौलवियों का वेतन क्यों नहीं दिया गया? वास्तव में यह अब सिर्फ इसलिए हो रहा है कि दिल्ली में आगामी चुनाव है। दिल्ली के इमामों का कहना है कि उन्हें पिछले 17 महीनों से हर महीने मिलने वाली 16-18 हजार रुपये सैलरी नहीं मिली है। परंतु यदि इमामों को वेतन नहीं दिया गया तो मंदिरों के पुजारियों और गुरुद्वारों के ग्रंथियों को 18 हज़ार रुपए प्रति माह की सम्मान राशि किस आधार पर दी जाएगी। यहां तक कि दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के अध्यक्ष हरमीत सिंह कालका ने अरविंद केजरीवाल की घोषणा को लेकर शंका जाहिर की है। उन्होंने कहा, “इससे पहले भी अरविंद केजरीवाल चुनावी वादे कर चुके हैं। लेकिन, वो किसी घोषणा पर पूरे नहीं उतरते हैं। यह भी एक तरह से उनका चुनावी स्टंट है।”
फ्रीबीज कल्चर पर लेखक और वैज्ञानिक आनंद रंगनाथन कहते हैं, “फ्रीबीज वोट बैंक की राजनीति का एक साधन हैं, जो देश की अर्थव्यवस्था पर बोझ बनती हैं। कल्याणकारी योजनाएं आवश्यक हैं, जैसे उज्ज्वला योजना या शौचालय निर्माण, जो समाज का भला करती हैं। लेकिन मुफ्त बिजली, हज सब्सिडी और वक्फ बोर्ड को ब्याज मुक्त ऋण जैसी घोषणाएं लंबे समय में देश को नुकसान ही पहुंचाती हैं।”
“वेलफेयर (कल्याणकारी योजनाएं) समाज का भला करती हैं, जबकि फ्रीबीज (मुफ्त उपहार) केवल वोट बैंक की राजनीति का साधन हैं। हज पर सब्सिडी, मुफ्त बिजली, तीर्थ यात्रा और वक्फ बोर्ड जैसी संस्थाओं को ब्याज मुक्त ऋण देना देश को कोई फायदा नहीं पहुंचाता। राजनीतिक दलों को मुफ्त का चलन खत्म कर जनता के पैसे को विकास कार्यों में लगाना चाहिए, क्योंकि देर-सबेर इसका खामियाजा हमें ही भुगतना होगा।” आनंद रंगनाथन, वैज्ञानिक एवं लेखक
तथ्य यह है कि केजरीवाल को ग्रंथियों और पुजारियों की अभी ही क्यों याद आयी जबकि पिछले दस साल से दिल्ली में केजरीवाल सरकार है तो तब से लेकर अब तक यह क्या कर रहे थे। इनको यदि यह योजना लागू करनी थी तो अभी से लागू कर सकते थे। चुनाव के बाद ही क्यों, दिल्ली में आपकी सरकार है, सब कुछ आप ही हैं, तो आप अभी कर सकते हैं। दिल्ली में वक़्फ़ बोर्ड के तहत आने वाली मस्जिदों में कार्यरत मौलवियों-इमामों को 18 हज़ार रुपए महीने के हिसाब से सैलरी मिलती रही है। मगर, हाल ही में कुछ मौलवियों ने भी दिल्ली की आम आदमी सरकार के ख़िलाफ़ प्रदर्शन किया था। दिल्ली में वक़्फ़ बोर्ड के तहत आने वाली मस्ज़िदों में जो इमाम पाँच बार नमाज़ पढ़ाते हैं और तालीम देते हैं, उनको 18 हज़ार रुपए महीना सैलरी मिलती है, जो दिल्ली सरकार ने पिछले 17 महीनों से नहीं दी है। वो विश्वासघात कर रही है यह हमेशा मिलता आया। भाजपा सरकार में भी मिलता रहा है। जब इमामों सैलरी नहीं दे पा रहे हैं, तो पुजारियों-ग्रंथियों को सम्मान राशि कहां से दे पाएंगे? ज़ाहिर है इन सभी लफ़्फ़ाज़ी बयानबाजी का कोई औचित्य नहीं है।
दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने बीते दिनों दो योजनाओं की घोषणा की थी। पहली है, ‘महिला सम्मान योजना’, जिसके तहत महिलाओं को हर महीने 2100 रुपये देने का वादा है। दूसरी है, ‘संजीवनी योजना’, जिसके तहत दिल्ली के सभी (निजी और सरकारी ) अस्पतालों में 60 वर्ष से अधिक आयु के लोगों का मुफ़्त इलाज किया जाएगा। ऑटो रिक्शा चालकों के लिए कई लोक-लुभावनी घोषणाएं की थीं। दिल्ली के स्वास्थ्य और परिवार-कल्याण विभाग और महिला एवं बाल विकास विभाग ने इन योजनाओं से ख़ुद को अलग कर लिया। दोनों विभागों ने अख़बारों में नोटिस जारी किए। इसमें कहा गया कि लोग किसी भी अनाधिकृत व्यक्ति की बातों में आकर किसी तरह के फॉर्म पर दस्तख़त न करें। इस बीच, दिल्ली के उपराज्यपाल ने इस योजना के नाम पर महिलाओं की निजी जानकारी इकट्ठा करने वाले व्यक्तियों के ख़िलाफ़ जांच के आदेश दिए।
परंतु यहां एक बहुत ही गंभीर प्रश्न है कि क्या एक स्वस्थ लोकतंत्र में राजनीति दलों और सरकार द्वारा फ्री की योजनाएं लागू करने से देश के लोकतंत्र पर आघात नहीं होगा? क्या यह एक परिपक्व लोकतंत्र की पहचान है? क्या इससे नागरिक शिष्टाचार समाप्त नहीं होगा? वास्तव में इस तरह मुफ़्त योजनाएं लागू करने से नागरिकों में कर्त्तव्य बोध का अभाव होगा और देश के लोकतंत्र को गहरी चोट लगेगी । निश्चित तौर पर इसके दीर्घकालिक नकारात्मक परिणाम सामने आयेंगे।
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