प्रयागराज महाकुंभ में आए साधु-संतों के बीच बड़ी संख्या में अद्भुत तपस्वी और हठयोगी भी हैं। इनके हठ योग को देखकर हर कोई दांतों तल अंगुली दबाने को मजबूर हो जाता है। हठ योग क्रिया में लगे अधिकांश नागा संन्यासी शैव संप्रदाय के सात अखाड़ों से संबंधित हैं। संगम की रेती पर अपनी योग साधना से आम लोगों का ध्यान आकृष्ट करने वाले इन नागा संन्यासियों का हठ योग किसी निजी स्वार्थ या साधना के लिए न होकर मानव मात्र के कल्याण के लिए है। घर-परिवार के सामाजिक बंधनों से मुक्ति लेकर नागा साधु बने इन संन्यासियों का संकल्प भले ही अलग-अलग है, लेकिन ध्येय मानवता का कल्याण ही है। हठ योग क्रिया में लगे अधिकांश संन्यासी अपनी साधना का सार्वजनिक प्रदर्शन नहीं करते हैं, लेकिन कुछ की योग क्रियाएं जरूर चर्चा में हैं।
शैव संप्रदाय के अंतर्गत आने वाले जूना अखाड़े के महंत राधे पुरी अपना दाहिना हाथ उठाए रहते हैं। महाकाल की नगरी उज्जैन के समीप रहने वाले राधे पुरी 2011 से अपना हाथ उठाए हुए हैं। इस कठोर साधना के कारण उनका हाथ अब जड़वत् हो गया है। वह न तो मुड़ता है और न ही नीचे होता है। हाथ के नाखून न काटने से वे अब 5 से 6 इंच लंबे हो गए हैं। एक नाखून तो लगभग एक फीट का हो गया है। बाबा राधे पुरी बताते हैं, ‘‘संतों का सबसे बड़ा उद्देश्य है मानव का कल्याण करना। इसकी पूर्ति के लिए मैंने अपने दाहिने हाथ को आशीर्वाद की मुद्रा में सदैव उठा कर रखने का संकल्प लिया है। सोते-जागते, खाते-पीते, उठते-बैठते या यात्रा के समय समय थोड़ी समस्या आती है, लेकिन कष्ट के बिना न तो संकल्प पूरा होता है और न ही साधना पूरी होती है।’’
आवाहन अखाड़े के महंत महाकाल गिरि या महाकाल बाबा अपना बायां हाथ उठाए रहते हैं। इस कारण उनका हाथ लकड़ी के समान कठोर हो गया है और नाखून बेतरतीब ढंग से बढ़ गए हैं। हाथ की अंगुलियां भी टेढ़ी-मेड़ी होकर आपस में ही उलझ गई हैं। इस कारण लोग उन्हें हाथ वाले बाबा या नाखून वाले बाबा के रूप में जानते हैं। बाबा कहते हैं,‘‘यह कठोर साधना विश्व कल्याण, विश्व शांति, सनातन धर्म की रक्षा और इसके विस्तार के लिए है। परेशानी के कारण यात्रा बहुत ही कम करता हूं और आवश्यकता होने पर अधिकतर पैदल ही चलता हूं।’’ महाकाल बाबा ने 8 वर्ष की आयु में संन्यास लिया था और आज वे लगभग 30 वर्ष के हैं।
अटल अखाड़े के बाबा भागीरथी गिरि खड़ेश्वरी बाबा के नाम से विख्यात हैं। वे पिछले तीन वर्ष से एक पैर पर खड़े हैं। सहारे के लिए एक झूला बनवाया है और उसी के सहारे रहते हैं और रात्रि में झुक कर उसी पर सो जाते हैं। भागीरथी बाबा पहले भी 12 वर्ष की साधना कर चुके हैं। बीच में दो वर्ष का विश्राम लेकर तीन वर्ष पहले यह नया योग शुरू किया है। उन्होंने बताया, ‘‘देश में जब तक महिलाओं पर अत्याचार और आतंकवाद बंद नहीं होगा, तब तक मैं कठोर साधना करता रहूंगा।’’ बाबा ने संन्यासी जीवन मात्र सात वर्ष की आयु में शुरू किया था। खड़ेश्वरी बाबा के पास दिन भर लोग भीड़ लगाए रहते हैं।
अटल अखाड़े के एक और नागा संन्यासी प्रमोद गिरि का हठ योग एकदम निराला है। वे प्रतिदिन घड़े में रखे ठंडे जल से स्नान करते हैं। ये वर्तमान में सिद्धपीठ श्री हाडी कुंठीवाले नागेश्वर बाबा की धूनी, दीवान नगर, राजस्थान के महंत हैं। प्रमोद गिरि जब कुंभ क्षेत्र में आए तो पहले दिन 51 घड़ों में रखे गंगाजल से स्नान किया। उसके बाद वे प्रतिदिन 2 से 3 घड़े बढ़ाते जा रहे हैं। उनका यह हठ योग 21 दिन का है। अंतिम दिन ये 108 घड़े गंगा जल से स्नान करेंगे। प्रमोद गिरि कहते हैं, ‘‘मेरा यह हठ योग अपने लिए नहीं है, बल्कि हर उस जीव के लिए जो विश्व के कल्याण की कामना रखता है।’’ वे नौ वर्ष से हठ योग कर रहे हैं। इस प्रकार के हठ योग की अवधि 41 दिन की होती है, लेकिन कुंभ में इसे 21 दिन ही रखा गया है। प्रमोद गिरि जिन घड़ों के जल से स्नान करते हैं, उन्हें रात्रि में ही भर कर रख दिया जाता है।
महाकुंभ में अनाज वाले बाबा छाए हुए हैं। ये किसी अखाड़े से तो नहीं जुड़े हैं, लेकिन इनकी तपस्या किसी हठ योग से कम नहीं है। उत्तर प्रदेश के जनपद सोनभद्र की विख्यात मारकुंडी पहाड़ी के रहने वाले इन बाबा का असली नाम अमरजीत है। बाबा पिछले 14 वर्ष से अपने सिर पर जौ, गेहूं और चना जैसी फसलें उगा रहे हैं। उन्होंने बताया, ‘‘फसल उगाने से पहले सिर पर पगड़ी बांधी जाती है, फिर उसमें पर्याप्त मिट्टी भरी जाती है। इसके बाद उसमें बीज डाले जाते हैं। इस फसल में किसी प्रकार की खाद नहीं डाली जाती है। जब फसल पक जाती है तो उसे प्रसाद के रूप में भक्तों में बांट दिया जाता है। हालांकि सिर पर फसल उगाना बहुत कठिन कार्य है। मिट्टी का लगातार बोझ रहने से सिर में दर्द होने लगता है। फिर भी फसल पकने तक उसे सिर पर रखना होता है। सोते समय सिर दीवार से टिका रहता है।’’ बाबा अमरजीत का यह योग जैविक खेती, पर्यावरण को बढ़ावा देने और विश्व में शांति स्थापित करने के लिए है।
आवाहन अखाड़े के नागा संन्यासी गीतानंद गिरि अपने सिर पर 45 किलो की रुद्राक्ष माला पहनने के कारण आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं। पंजाब के रहने वाले नागा संन्यासी गीतानंद बताते हैं, ‘‘मैंने सवा लाख रुद्राक्ष पहनने का संकल्प लिया था, लेकिन भक्तों द्वारा दिए जा रहे रुद्राक्ष को भी मैं धारण करता जा रहा हूं। इस कारण अब रुद्राक्ष की संख्या सवा दो लाख हो गई है।’’ अपने बचपन के बारे में वे कहते हैं, ‘‘मेरे माता-पिता को संतान नहीं हो रही थी। गुरु जी की कृपा से तीन संतानें हुईं। मैं दूसरे स्थान पर था। मां ने मुझे गुरु जी को सौंप दिया। गुरु जी ने ही संस्कृत विद्यालय में शिक्षा दिलवायी और 12 वर्ष की उम्र में हरिद्वार में मेरा संन्यासी संस्कार हुआ।’’ रुद्राक्ष मुकुट धारण करने का संकल्प उन्होंने 2019 के प्रयागराज कुंभ में लिया था। यह संकल्प 12 वर्ष के लिए है, जिसमें 6 वर्ष बीत गए हैं। अगले प्रयागराज कुंभ में यह संकल्प पूरा हो जाएगा और रुद्राक्ष की माला को त्रिवेणी में प्रवाहित कर दी जाएगी। उनका यह संकल्प देश में शांति, सद्भावना और सकल मानव कल्याण के लिए है।
महाकुंभ में कबीर पंथ के लोगों ने भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है। कबीर पंथियों की एक टोली ने मकर संक्रांति पर अमृत स्नान भी किया था। रायबरेली से आए कबीर पंथी हरिश्चंद्र विश्वकर्मा उर्फ चाबी वाले बाबा भी मेले में अध्यात्म का संदेश बांट रहे हैं। वे 16 वर्ष की उम्र से ही समाज में फैली बुराइयों और कुरीतियों से लड़ने का संदेश बांटने के लिए 20 किलो की चाबी लेकर देश भ्रमण पर निकले हैं। उनकी चाबी पर संदेश लिखा है, ‘‘हे मानव, सत्य न्याय व धर्म के मार्ग पर चलो… मैं आ गया हूं।’’ हरिश्चंद्र अपने साथ एक रथ लेकर चलते हैं, जिसको वे स्वयं खींचते हैं। बाबा का चाबी से इतना प्रेम है कि वे जिस भी धर्म स्थल पर जाते हैं, वहां की स्मृति के लिए एक चाबी बना कर रख लेते हैं। महाकुंभ में आने से पहले वे अयोध्या गए थे। स्वामी विवेकानंद को अपना आदर्श बताने वाले हरिश्चंद्र कहते हैं, चाबी ही हमारे मन के अंदर के दरवाजे खोलती है, आध्यात्मिक ज्ञान की ओर ले जाती है।
बिहार से आए बाबा रमेश कुमार मांझी अपनी अलग प्रकार की साधना में लीन रहते हैं। रमेश बाबा ने कांटों को ही अपना बिस्तर बना रखा है। शरीर पर लंगोटी, सिर पर पगड़ी, कांटों का बिस्तर, हाथ में डमरू लिए बाबा आंखें बंद कर साधना में लीन रहते हैं। बाबा ऐसा क्यों कर रहे हैं? इसके जवाब में वे कहते हैं, ‘‘ईश्वर की प्रेरणा हुई कि कुछ अलग करो। फिर मैंने कांटों को ही बिस्तर बना लिया। मानव के जीवन में कांटें ही कांटें हैं तो मैंने कांटों पर ही जीवन बसा लिया।’’ बाबा के बिस्तर में ऐसे-ऐसे चुभन वाले कांटें हैं कि देख कर सिहरन होती है, लेकिन वे उस पर आराम से लेटे रहते हैं, और उन्हें किसी तरह का दर्द भी नहीं होता है। बाबा रमेश का दावा है कि वे पिछले 50 वर्ष से ऐसा कर रहे हैं। बाबा कुंभ के अतिरिक्त प्रयागराज माघ मेले में भी आते रहते हैं।
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