2020 में दिल्ली में हुए दंगे आधुनिक भारत के सबसे दर्दनाक और विवादित अध्यायों में से एक हैं। गहराई से देखने पर ‘दिल्ली’ को दहलाने का यह षड्यंत्र बांग्लादेश में हुई घटनाओं की तरह प्रतीत होता है। ये दंगे नागरिकता संशोधन कानून (CAA) एवं राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) के विरोध के दौरान शुरू हुए, एक ऐसा कानून जिसका उद्देश्य भारत के उन अल्पसंख्यकों (हिंदू, सिख, बौद्ध, पारसी, एवं ईसाई) को नागरिकता प्रदान करना था, जो 31 दिसंबर 2014 से पहले पाकिस्तान, बांग्लादेश, और अफगानिस्तान जैसे इस्लामी मुल्कों से प्रताड़ित होकर भारत में प्रवेश कर चुके थे। उत्पीड़ित अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने वाले इस कानून का विरोध उत्तर-पूर्वी दिल्ली से धर्मनिरपेक्षता के नाम पर शुरू हुआ और बड़े पैमाने पर हिंसा में बदल गया। इन दंगों में 50 से अधिक भारतीय नागरिकों की मौत हुई, सैकड़ों घायल हुए, महिलाओं के साथ दुष्कर्म और हिंदू मंदिरों पर हमले जैसी घटनाएं भी सामने आईं। यह दंगे केवल साम्प्रदायिक विवाद नहीं थे बल्कि इनके पीछे बड़ी राष्ट्र-विरोधी शक्तियों का हाथ था, फ़िल्म ‘2020 दिल्ली’ इन्हीं विषयगत गंभीरताओं को बड़ी बेबाकी से प्रस्तुत करती है
क्यों अलग है फिल्म ‘2020 दिल्ली’
फिल्म 2020 दिल्ली, जिसका ट्रेलर इस सप्ताह शुक्रवार, 24 जनवरी को रिलीज हुआ, भारत की पहली वन-टेक फ़ीचर लेंथ फिल्म है। देवेंद्र मालवीय द्वारा निर्देशित यह फिल्म दंगों के पीछे की साजिशों, इस्लामिक कट्टरपंथ और बामपंथी राजनीतिक पहलुओं को उजागर करती है। शाहीन बाग में महीनों तक चले धरने और इसके पीछे की राजनीति को फिल्म में गहराई से दिखाया गया है। फिल्म का कथानक 24 फरवरी 2020 को दिल्ली में हुए दंगों के इर्द-गिर्द घूमता है। यह भारतीय सिनेमा की ऐसी पहली फीचर फिल्म है जिसे वन-शॉट में फिल्माया गया है, जो न केवल तकनीकी दृष्टि से चुनौतीपूर्ण है, बल्कि अत्यंत खर्चीला भी है। मिडास टच फिल्म प्रोडक्शन द्वारा विजुअल बर्ड्स स्टूडियो के सहयोग से निर्मित इस फिल्म का लेखन और निर्देशन देवेंद्र मालवीय ने किया है, जबकि निर्माता नंदकिशोर मालवीय, आशु मालवीय और अमित मालवीय हैं। फिल्म की रचनात्मक निर्देशक विकास कल्पना द्विवेदी हैं और कार्यकारी निर्माता सैय्यद फराज़ हैं। इसमें बृजेंद्र काला, चेतन शर्मा, आकाशदीप अरोड़ा, सिद्धार्थ भारद्वाज, भूपेश सिंह और समर जय सिंह ने महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाई हैं।
जाने वन-शॉट फिल्मों का इतिहास, आखिर क्यों इसे फिल्माना है मुश्किल?
वन-शॉट फिल्म एक ऐसी टेक्निकल कला है जिसमें पूरी फिल्म को एक ही शॉट में, बिना किसी कट के, फिल्माया जाता है, जिससे कहानी वास्तविक समय में चलती है। इसे फिल्माना बहुत मुश्किल होता है क्योंकि हर कलाकार, कैमरा, मिस-ओन-सिन, लाइटिंग, प्रॉप्स, और साउंड का सटीक समन्वय जरूरी होता है; एक गलती से पूरी प्रक्रिया को दोबारा शुरू करनी होती है।
विश्व में पहली बार वन-शॉट शार्ट फिल्म शूट करने और इस तकनीक को खोजने का श्रेय 1948 में ‘अल्फ्रेड हिचकॉक’ की ‘रोप’ को जाता है, हालांकि इसमें सीमित कट्स छिपाए गए थे इसलिए फ़िल्म स्कोलर्स के बीच ये डिबेट का विषय रहता है। वहीं विश्व की पहली वास्तविक वन-शॉट फीचर फिल्म “रसियन अर्क” थी, जिसे 2002 में रूसी फिल्मकार ‘अलेक्जेंडर सोकुरोव’ ने बनाया था। यह फिल्म 96 मिनट लंबी है और इसे एक ही शॉट में फिल्माया गया था वहीं फिल्म को डीओपी सेंट पीटर्सबर्ग के हर्मिटेज संग्रहालय में शूट किया था। इसे फिल्माने में लगभग 4 घंटे 30 मिनट का समय लगा, जिसमें केवल एक टेक का उपयोग किया गया।फिल्म की शूटिंग से पहले 2 साल तक इसे फिल्माने का प्लान हुआ और 3 महीने व्यापक रिहर्सल किए गए थे ताकि कोई भी कैमरा कट न लगाना पड़े।
‘जब फिल्म कई शॉट की होते हैं और तकनीकी सहायता से कट्स छुपा दिए जाते है’
वहीं दूसरा उदाहरण 2019 में बनी सैम मेंडेस की फ़िल्म “1917” है जिसे देखने पर यह पूरी तरह ‘वन-टेक फिल्म’ लगती है, लेकिन वास्तव में इसे कई शॉट्स में फिल्माया गया था। सिनेमैटोग्राफर रोजर डीकिंस बताते हैं निर्देशक सेम फ़िल्म को वन-टेक में ही शूट करना चाहते थे मगर फिल्म में मल्टी कासटिंग ओर वीएफएक्स होने के कारण संभव नहीं हो पाया और उन्होंने इसे इस प्रकार डिज़ाइन किया कि यह एक सतत वन-टेक लगे। फिल्म में यह भ्रम इतनी कुशलता से रचा गया है कि सामान्य दर्शक कट्स को पहचान ही नहीं पाते और फिल्म वन टेक दिखाई देती है।
आखिर बनाया ही क्यों जाता है वन-टेक आर्ट हाउस सिनेमा?
वन-शॉट फिल्म को रियलिज्म (यथार्थवाद) और लॉन्ग टेक सिनेमा की श्रेणी में रखा गया है, जिसका मात्र उद्देश्य दर्शकों को घटनाओं के साथ वास्तविक समय और घटना का अनुभव कर कहानी को दिखाना होता है, जिससे दर्शक फिल्म की भावना को समझ सके। एक कारण यह तकनीक दर्शकों को ‘अनइंटरप्टेड व्यूइंग एक्सपीरियंस’ देती है इसलिए संवेदनशील विषय या घटनाओं की फ़िल्म बनाते वक्त फिल्ममेकर्स इसका चयन किया जाता है चुकी ये मॉर्डनिस्टिक सिनेमा मूवमेंट 20वी सदी में उभरा इसलिए इस पर अभी कम एक्सपेरिमेंट हुए हैं। 2020 दिल्ली के मेकर्स का कहना है उन्होंने इसीलिए इस तकनीक का उपयोग है ताकि दर्शकों को सहिष्णुता के आधार पर हुए राष्ट्रविरोधी दंगों के पीछे के षड्यंत्र को गहराई से समझ सकें।
दिल्ली दंगों के पीछे का बड़ा षड्यंत्र
दिल्ली दंगों की शुरुआत एक सुनियोजित षड्यंत्र का हिस्सा थी, यह दंगे तब शुरू हुए, जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ‘नमस्ते ट्रंप’ कार्यक्रम में भाग लेने के लिए भारत आए थे। यह स्पष्ट होता है कि दंगों का उद्देश्य केवल CAA और NRC का विरोध करना नहीं था, दंगों के दौरान राष्ट्र-विरोधी तत्वों ने बैक-एंड समर्थन प्रदान किया, जिससे यह षड्यंत्र सफल हो सका। चाहे वह शाहीन बाग का महीनों तक जारी विरोध हो या मीडिया के माध्यम से फैलाए गए झूठे नैरेटिव, यह सब एक बड़े एजेंडे का हिस्सा था। वहीं प्रमुख राष्ट्रीय अखबारों ने इन घटनाओं को धर्मनिरपेक्षता के चश्मे से देखने की कोशिश की, और अक्सर एक नॉरेटिव करने की कोशिश करना की दंगाइयों का कोई पंथ नहीं होता, कोई जात नहीं होती लेकिन यह विचार वास्तविकता से कोसों दूर है। इन विरोध प्रदर्शनों के दौरान खुलेआम ‘भारत तेरे टुकड़े होंगे, इंशा*ल्लाह इंशा*ल्लाह’ जैसे नारे लगाए गए। जाने कोन हैं ये लोग जो ‘हिंदूवाद’ का विरोध करते करते अब ‘कानून’ व ‘सरकार’ के विरोध पर उतर आए हैं, इन्हें ‘इंडियन स्टेट से खतरा महसूस होता है मगर इनके बलात्कार और कत्ल करते वक्त हाथ नही कांपते, ‘आजादी’ मांगने के नाम पर भारत के संविधान, आत्मा, राष्ट्रवाद पर प्रहार करते हैं। यह वही ताकतें हैं जो राष्ट्र-विरोधी विचारधाराओं को बढ़ावा देती हैं और हर बार एक नए मुखौटे के साथ सामने आती हैं। इन ताकतों को पहचानना और उनकी साजिशों को समझना जरूरी है, यदि हम सतर्क नहीं रहे, तो दिल्ली में फरवरी 2020 में हुई घटनाएं भविष्य में फिर से हो सकती हैं, और भारत को बांग्लादेश बनने में देर नहीं लगेगी।
राष्ट्रवादी फिल्मों की श्रृंखला में एक रचना: ‘2020 दिल्ली’
जिहादियों एवं मार्क्सवादियों की राष्ट्र-विरोधि राजनीति और वैचारिक षड्यंत्र को उजागर करती, द कन्वर्जन, द कश्मीर फाइल्स, अजमेर 92, बस्तर स्टोरी, के बाद अब ‘2020 दिल्ली’ 2 फरवरी को सिनेमाघर में रिलीज हो रही है, हमे इसे भरपूर समर्थन दे कर फ़िल्म को सफल बनाना चाहिए।
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