अक्सर ऐसी घटनाएं सामने आती रहती हैं जब कोई मरीज किसी सरकारी अस्पताल में इलाज के लिए जाता है और डॉक्टर वहां से उसे किसी अन्य प्राइवेट अस्पताल में रेफर कर देते हैं। ऐसी घटनाओं पर इलाहाबाद हाई कोर्ट सख्त हो गया है। अब हाई कोर्ट ने प्रदेश सरकार को सरकारी डॉक्टरों की प्राइवेट प्रैक्टिस को रोकने के लिए एक नीति बनाने का निर्देश दिया है।
रिपोर्ट के अनुसार, डॉ अरविंद कुमार गुप्ता बनाम अध्यक्ष एवं सदस्य राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग के मामले में सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट के जस्टिस रोहित रंजन अग्रवाल ने सरकारी डॉक्टरों के द्वारा की जाने वाली प्राइवेट प्रैक्टिस को खतरा करार दिया। उन्होंने कहा कि सरकारी डॉक्टर मरीजों को निजी संस्थानों में रेफर कर रहे हैं।
अगर इस मामले को समझने की कोशिश करें तो इसकी शुरुआत प्रयागराज स्थित मोतीलाल नेहरू मेडिकल के एचओडी और प्रोफेसर डॉ अरविंद गुप्ता से होती है। दरअसल, रुपेश चंद्र श्रीवास्तव नाम के व्यक्ति की पत्नी एकता का डॉ गुप्ता ने फोनिक्स अस्पताल में इलाज किया। लेकिन वो इलाज गलत हो गया। इस पर मरीज ने उपभोक्ता फोरम में डॉक्टर के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई। मामला हाई कोर्ट तक गया। बाद में अरविंद गुप्ता ने भी हाई कोर्ट में एक याचिका दायर की और आपत्ति जताई कि जिला उपभोक्ता फोरम ने कोई आदेश नहीं दिया है।
बावजूद इसके उनके खिलाफ सीधे राज्य उपभोक्ता आयोग में केस किया गया, जो कि पोषणीय नहीं है। ये विवाद महज 1890 रुपए को लेकर है। ऐसे में इस छोटे से मामले को राज्य उपभोक्ता फोरम में नहीं क्लेम किया जा सकता है।
इसी मामले की सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने उस केस से अधिक इस बात को गंभीरता से लिया कि कैसे कोई सरकारी डॉक्टर निजी संस्थानों में जाकर प्राइवेट प्रैक्टिस कर सकता है। इसको लेकर कोर्ट ने प्रशासन को जांच के आदेश दिए थे। अब हाई कोर्ट ने इसे गंभीर मानते हुए प्रदेश के प्रमुख सचिव को नीति बनाने और उसके क्रियान्वयन पर एक व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने सख्त लहजे में कहा है कि निजी प्रैक्टिस पर प्रतिबंध सभी सरकारी डॉक्टरों पर लागू होनी चाहिए।
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