दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी की राहें काफी दुष्कर और चुनौतीपूर्ण होती जा रही हैं। भाजपा ने ऐसे उम्मीदवारों को आम आदमी पार्टी के बड़े नेताओं के खिलाफ मैदान में उतारा है, जिससे उनकी राहें काफी मुश्किल होती जा रही हैं।
2013 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में जो राजनीतिक चतुराई का उपयोग अरविंद केजरीवाल ने खुद किया था, उसी को भाजपा इस बार आप और केजरीवाल के खिलाफ आजमा रही है। 2013 के विधानसभा चुनाव में केजरीवाल ने सीधे तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के खिलाफ चुनावी शंखनाद किया और नई दिल्ली सीट से खुद चुनाव मैदान में उतरकर अपनी उम्मीदवारी की। केजरीवाल की यह राजनीतिक चाल सफल रही और उन्होंने बड़े अंतर से शीला दीक्षित को पराजित किया। ऐसा ही राजनीतिक रणनीति केजरीवाल ने 2014 के लोकसभा चुनाव में वाराणसी लोकसभा सीट पर अपनाने का प्रयास किया, जहां वे भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी के खिलाफ अपनी उम्मीदवारी पेश की, मगर नई दिल्ली सीट वाली उनकी चाल वाराणसी में सफल नहीं हो सकी।
वर्तमान दिल्ली विधानसभा चुनाव में भाजपा ने जहां अरविंद केजरीवाल के खिलाफ प्रवेश वर्मा को उम्मीदवार बनाकर उनकी रातों की नींद उड़ा दी है, वहीं भाजपा ने मुख्यमंत्री आतिशी के खिलाफ कालकाजी विधानसभा सीट से रमेश बिधूड़ी को चुनावी मैदान में उतारकर उनकी राहें काफी मुश्किल कर दी हैं। रमेश बिधूड़ी दिल्ली की राजनीति के बहुत ही मंझे हुए खिलाड़ी हैं। रमेश बिधूड़ी लगातार तीन बार तुगलकाबाद विधानसभा सीट से विधायक रहे हैं। साथ ही रमेश बिधूड़ी लगातार दो बार दक्षिणी दिल्ली सीट से सांसद रहे हैं।
भाजपा ने यह रणनीति एक खास योजना के तहत अपनाई है। भाजपा की योजना में आप के सभी बड़े नेताओं को उनके अपने क्षेत्र में ही इतना व्यस्त कर देना है, जिससे कि उन्हें दूसरे क्षेत्रों में प्रचार करने के लिए समय ही न मिल सके। केजरीवाल के खिलाफ इसी रणनीति के तहत प्रवेश वर्मा को और मुख्यमंत्री आतिशी के खिलाफ रमेश बिधूड़ी जैसे बड़े और धुरंधर नेताओं को चुनावी मैदान में उतारा गया है।
भाजपा ने जो राजनीतिक चाल ओडिशा में 2024 के विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री नवीन पटनायक और बीजू जनता दल पर अपनाई थी, उसी को दिल्ली विधानसभा चुनाव में दोहराना चाहती है। भाजपा ने ओडिशा के तत्कालीन मुख्यमंत्री नवीन पटनायक के खिलाफ कांटाबांजी विधानसभा सीट से ऐसे ज़मीन से जुड़े लक्ष्मण बाग को उम्मीदवार बनाया, जिससे नवीन पटनायक को अन्य क्षेत्रों में चुनाव प्रचार का कम मौका मिला। भाजपा ने कांटाबांजी सीट से नवीन पटनायक को 16,344 मतों से पराजित भी कर दिया।
भाजपा ने 2021 के पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में यही रणनीति राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के खिलाफ इस्तेमाल की। भाजपा ने नंदीग्राम विधानसभा सीट से सुवेंदु अधिकारी को उम्मीदवार बनाकर ममता बनर्जी को पराजित किया। यह ममता बनर्जी के राजनीतिक जीवन का सबसे दुष्कर क्षण था।
2023 में तेलंगाना राज्य में भाजपा ने तत्कालीन मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव के खिलाफ कामारेड्डी सीट से के. वी. रमन्ना रेड्डी को उम्मीदवार बनाया। भाजपा ने इस सीट पर तत्कालीन मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव को पटखनी देने में सफलता प्राप्त की। इतना ही नहीं, इस सीट पर कांग्रेस पार्टी के रेवंत रेड्डी भी उम्मीदवार थे, जिनको भाजपा ने हराया। रेवंत रेड्डी चुनाव के बाद राज्य के मुख्यमंत्री बने।
आतिशी अगर चुनाव हार जाती हैं तो यह बहुत बड़ी और चौंकाने वाली घटना नहीं होगी, क्योंकि भूतकाल में कई मुख्यमंत्री अपने पद पर रहते हुए चुनावी मैदान में हार का सामना कर चुके हैं। ओमप्रकाश चौटाला, पुष्कर सिंह धामी, भुवन चंद्र खंडूरी सहित कई ऐसे मुख्यमंत्री रहे हैं।
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