पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के दासका शहर में प्रशासन ने एक ऐतिहासिक अहमदी मस्जिद को गिरा दिया, जिसे पाकिस्तान के पहले विदेश मंत्री सर जफरुल्लाह खान ने बनवाया था। यह मस्जिद सात दशक पुरानी थी और अहमदिया समुदाय के लिए मजहबी और ऐतिहासिक महत्व रखती थी। स्थानीय प्रशासन ने इसे अतिक्रमण बताते हुए गिराने की कार्रवाई की। मस्जिद के ध्वस्तीकरण के बाद पाकिस्तानी मुस्लिमों ने जश्न मनाया। इसके पीछे का कारण मस्जिद का अहमदियों से जुडाव था।
मस्जिद पर बुलडोजर चलाकर खत्म की गई विरासत
16 जनवरी को पुलिस बल के साथ पहुंचे प्रशासन ने मस्जिद को गिराने के लिए चार घंटे तक बुलडोजर चलाया। स्थानीय लोगों का कहना है कि प्रशासन ने अतिक्रमण के नाम पर कार्रवाई की, हालांकि समुदाय के सदस्य खुद 13 फीट का कथित अतिक्रमण हटाने को तैयार थे। इसके बावजूद, प्रशासन ने किसी भी सहमति को अनदेखा करते हुए पूरी मस्जिद को गिरा दिया। इस दौरान क्षेत्र की बिजली आपूर्ति काट दी गई, ताकि स्थानीय अहमदी समुदाय के लोगों को विरोध करने से रोका जा सके।
पाकिस्तान में अहमदियों के साथ अत्याचार
अहमदिया मुस्लिम समुदाय पर मजहबी उत्पीड़न पाकिस्तान में कोई नई बात नहीं है। 2024 में, पंजाब प्रांत में ही समुदाय की कम से कम 22 इबादतगाहों को निशाना बनाकर गिराया गया। अहमदिया समुदाय के लोग खुद को मुस्लिम मानते हैं, लेकिन पाकिस्तान का कानून उन्हें गैर-मुस्लिम घोषित करता है।
1974 में पाकिस्तान की संसद ने एक संवैधानिक संशोधन के तहत अहमदियों को गैर-मुस्लिम करार दिया था। इसके बाद से समुदाय पर अत्याचार और भेदभाव बढ़ता ही गया। अहमदिया समुदाय के खिलाफ हिंसा, संपत्तियों पर कब्जा, और धार्मिक स्थलों को तोड़ने जैसी घटनाएं आम हो गई हैं।
कमजोर अल्पसंख्यकों की रक्षा में पाकिस्तान सरकार विफल
अहमदिया जमात पाकिस्तान के प्रवक्ता आमिर महमूद ने प्रशासन की कार्रवाई की निंदा की है। उन्होंने कहा, “सरकार लगातार हमारी मजहबी और इस्लामिक धरोहर को निशाना बना रही है। यह मस्जिद जफरुल्लाह खान परिवार की विरासत थी, जिसमें कभी कोई बदलाव नहीं किया गया था। ऐसे में अतिक्रमण का दावा निराधार है।”
अंतरराष्ट्रीय हस्तक्षेप की आवश्यकता
अहमदिया समुदाय ने बार-बार अंतरराष्ट्रीय समुदाय से अपील की है कि पाकिस्तान में उनके साथ हो रहे मजहबी उत्पीड़न पर ध्यान दिया जाए। इस समुदाय के साथ होने वाला अन्याय न केवल उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है, बल्कि यह धार्मिक स्वतंत्रता की भावना पर सीधा हमला है। पाकिस्तान में अहमदी मुसलमानों के खिलाफ उत्पीड़न की यह घटना एक बार फिर यह सवाल खड़ा करती है कि अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा में पाकिस्तान कब तक असफल होता रहेगा।
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