झारखंड के लोहरदगा जिले के महुवरी गांव में एक चौंकाने वाली घटना सामने आई है, जिसमें एक व्यक्ति के कन्वर्जन के चलते उसके अंतिम संस्कार को लेकर गांव में तनाव पैदा हो गया। यह मामला 55 वर्षीय दुखा उरांव से जुड़ा है, जिन्होंने करीब दस साल पहले सरना धर्म छोड़कर ईसाई मत को अपना लिया था। उनकी मृत्यु के बाद उनके शव को दफनाने को लेकर विवाद खड़ा हो गया, जो 36 घंटे तक चलता रहा।
धर्म परिवर्तन बना विवाद का कारण
दुखा उरांव ने लगभग एक दशक पहले सरना धर्म को त्यागकर पैंटीकोस्टल चर्च से जुड़ते हुए ईसाई मत अपनाया था। इसके बाद वह लोहरदगा छोड़कर रांची में बस गए थे। 14 जनवरी को रांची में इलाज के दौरान उनकी मृत्यु हो गई। उनके परिवार ने दुखा के शव को उनके पैतृक गांव महुवरी लाने का फैसला किया। लेकिन गांव में अंतिम संस्कार को लेकर विवाद खड़ा हो गया।
गांव में अधिकांश लोग एनडब्ल्यूजीईएल (नॉर्थ वेस्ट गॉस्पेल एवेंजेलिकल लूथेरन) चर्च से जुड़े हुए थे, जबकि दुखा पैंटीकोस्टल चर्च के अनुयायी थे। इस मतभेद के कारण गांव के ईसाई समुदाय ने उन्हें अपने कब्रिस्तान में दफनाने की अनुमति नहीं दी।
कब्रिस्तान को लेकर पहले से चल रहा विवाद
गांव के कब्रिस्तान को लेकर पहले से ही एनडब्ल्यूजीईएल और पैंटीकोस्टल चर्च के समुदायों में विवाद था। दुखा उरांव के अंतिम संस्कार ने इस मतभेद को और गहरा कर दिया। गांव के ईसाई समुदाय ने पैंटीकोस्टल चर्च के अनुयायियों के शवों को उनके कब्रिस्तान में दफनाने का कड़ा विरोध किया।
प्रशासन की दखलअंदाजी से सुलझा मामला
जब दोनों समुदायों के बीच विवाद बढ़ गया और समाधान नहीं निकल सका, तो प्रशासन को हस्तक्षेप करना पड़ा। 36 घंटे तक शव को गांव में रखा गया। इसके बाद प्रशासन ने अलग स्थान पर दुखा उरांव के शव को दफनाने की व्यवस्था की।
नई जगह पर हुआ अंतिम संस्कार
प्रशासन के हस्तक्षेप के बाद दुखा उरांव का अंतिम संस्कार गांव के बाहर एक नई जगह पर किया गया। प्रशासन ने यह सुनिश्चित किया कि इस मामले से गांव में शांति व्यवस्था भंग न हो।
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