पाञ्चजन्य के 78वें स्थापना वर्ष पर बात भारत की अष्टायाम कार्यक्रम में भाजपा के राज्यसभा सांसद सुधांशु त्रिवेदी ने महाकुंभ को लेकर कहा कि ये महाकुंभ कई सौ सालों के बाद आया है, और ये पहली बार है, जब ये महाकुंभ इलाहाबाद में नहीं, बल्कि प्रयागराज में हो रहा है।
प्रश्न: आप कभी पत्रकार भी रहे हैं, तो अपने इस छोटे से कैरियर के बारे में बताएं?
उत्तर: बचपन से पाञ्चजन्य के संपादकीय को पढ़कर वास्तविक ज्ञान का अनुभव हुआ। क्योंकि किताबों में तो कुछ और ही पढ़ाया गया। हम इस बात को सामान्य रूप से सुनते आए हैं कि महाभारत का युद्ध शुरू हुआ था तो युधिष्ठिर ने अनंत विजय, अर्जुन ने देवदत्त और भीष्म ने पौंड और भगवान श्रीकृष्ण ने पाञ्चजन्य शंख बजाया था। अब उस शंखनाद का नाद भारत की जनता के कानों में धीरे-धीरे पहुंचने लगा है।
1991 में जब मैं इंजीनियरिंग करके आया तो दो विश्व संवाद केंद्र स्थापित किए गए थे। एक दिल्ली और दूसरी लखनऊ में। जहां से विश्व संवाद केंद्र पत्रिका निकलनी शुरू हुई थी। उसमें मुझे संपादक होने का दायित्व दिया गया था। उसके प्रधान संपादक डॉ दिनेश शर्मा थे। महत्वपूर्ण ये है कि जो पौधा उस वक्त शुरू हुआ था, वो आज विराट वट वृक्ष धारण करता चला जा रहा है। इसी पर एक पंक्ति है-
रहिमन सुख उपजत है, बढ़त देख निज गोत्र
ज्यो बड़री अंखिया निरख, आखिन को सुख होत
प्रश्न: जब हम राष्ट्र हित की बात करते हैं कल से महाकुंभ शुरू हुआ है। महाकुंभ को लेकर विपक्ष एक नैरटिव गढ़ रहा है कि वहां गंदगी होती है, भीड़ होती है भाजपा पर अनाप शनाप खर्च करने का आरोप लगा। सनातन संस्कृति की जो परंपरा रही है महाकुंभ को लेकर विपक्ष के आक्षेपों को लेकर आप क्या कहेंगे?
उत्तर: आज महाकुंभ का प्रथम अमृत स्नान है। कहा जा रहा है कि 144 वर्षों के बाद ये महाकुंभ आया है, लेकिन मैं कहूंगा कि कई सौ सालों के बाद आया है क्योंकि शताब्दियों के बाद ये पहला महाकुंभ है, जो इलाहाबाद में नहीं, प्रयागराज में हो रहा है। ये महाकुंभ भी तब हो रहा है, जब भगवान राम की जन्मभूमि के जिले का नाम फैजाबाद नहीं, अयोध्या है। ये तब हो रहा है जब औरंगजेब के नाम पर बने जिले का नाम औरंगाबाद न होकर क्षत्रपति संभाजीनगर है।
दूसरी दृष्टि से देखें तो फिल्मों में एक नरैटिव दिखाया जाता है कि कुंभ मेले में दो भाई बिछड़ जाते हैं, भीड़ होती है और बाबा लोग अजीब कार्य करते हैं। मैं स्पष्ट करता हूं कि 12 वर्ष में ये कुंभ होता है। ज्यूपिटर के घूर्णन के ऊपर, यानि कि अगर भारतीय व्यवस्था से मानें तो जब आप वृष राशि अपने अंतिम चतुर्थांश में आता है, यदि आप आकाश को 12 भागों में बांटें तो 47 डिग्री पर वृहस्पति होता है और सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है यानि 270 डिग्री ट्रांजिट करके 11वें हिस्से में प्रवेश कर रहा होता है। अगर धरती अगर सीधी होती तो ट्रांजिशन साउदर्न से नॉर्दर्न हेमेस्फियर में होता ही नहीं। लेकिन, 23.5 का जो झुकाव है, तो जब धरती घूमती है तो दक्षिण से उत्तर की ओर जाता है। तो बताइए के एक्चुअल टिल्ट इन्हें कितने दिन पहले पता था।
महाभारत में भीष्म पितामह इस बात की प्रतीक्षा कर रहे थे कि सूर्य उत्तरायण में जाएगा तो हम अपने प्राण त्यागेंगे। वृहस्पति ग्रह को ही क्यों सबसे प्रभावशाली माना जाता है तो इसे इस प्रकार से समझिए कि इस सोलर सिस्टम में सबसे अधिक गुत्वाकर्षण गुरु का है। इसीलिए गुरुत्वाकर्षण हिंदी शब्द है। इसका अर्थ है गुरु का आकर्षण। विज्ञान को अब जाकर ये बात पता चली है कि जो सोलर सिस्टम के बाहर से एस्टेरॉयड्स आते हैं, उन्हें गुरु अपने मजबूत गुरुत्वाकर्षण से खींच लेता है। ऐसे में गुरु हमारी रक्षा करता है, ये बात आध्यात्मिक नहीं, बल्कि वैज्ञानिक भी है।
सूर्य के बाद सबसे स्ट्रॉन्ग ग्रैविटी वाले गुरु के बीच होने वाले इस पर्व में वैज्ञानिकता की बात होनी चाहिए थी, लेकिन जहां लिखा था कि धरती चपटी है, धरती को स्थिर बताने वालों ने हमारी बुद्धि को ऐसा चपटा कर दिया कि उन्होंने हमें ही अवैज्ञानिक बता दिया।
कुंभ में कितने ही विदेशी लोग आ रहे हैं, मैं पूछता हूं कि बताइए कि दुनिया में ऐसा कोई धर्म है, जिसका व्यक्ति उसे न मानने वाले धर्म के पर्व में जाता हो। कौन गैर ईसाई वेटिकन जाना चाहता है? कौन गैर मुस्लिम हज की यात्रा पर जाना चाहता है? और उससे बड़ी बात कि उससे ये न कहा जाए कि तुम कन्वर्ट हो जाओ। सनातन में ये महानता और उदारता है। आपने देखा ही होगा कि ऐपल के संस्थापक स्टीव जॉब्स की पत्नी भी कुंभ में आई हुई हैं। ये दुनिया के सबसे बड़े तकनीकी कंपनी के संस्थापक की पत्नी आई हुई है और उसे भी कोई कन्वर्ट करने को नहीं कह रहा। इस महानता को समझने की आवश्यकता है। लेकिन, कुछ लोगों के दिमाग में राहु जैसा ग्रहण लगा है कि वो उससे बाहर ही नहीं आ पा रहे हैं। अगर आप कुंभ को सामाजिक तौर पर देखें तो जब कोई गंगा घाटों पर स्नान कर रहा है तो कोई किसी की जाति पूछता है क्या?
एक कहानी है कि अंग्रेजों ने इसी एकता को देखकर तय किया था कि कैसे इसे तोड़ना है और कैसे इस देश का विभाजन करना है। आप देखिए जहां पर सीधे अलग-अलग दिखाई पड़ता है, वहां पर ये नहीं कहते कि अलग है। शिया और सुन्नियों की मस्जिदें अलग अलग अवश्य हैं। अहले हदीस अलग तो हनफी अलग, देवबंदी और बरेलवी की अलग है। यही हाल ईसाइयों का भी है। रोमन कैथोलिक अलग, प्रोटेस्टेंट अलग, एडवेंटिस्ट अलग है। इसलिए मैकाले और मार्क्स के राहु के प्रभाव से मन को अलग कीजिए। मोदी जी के संदेश को समझिए
महाकुंभ का एक ही संदेश, एक रहेगा भारत देश।
गंगा की अवरिल धारा, न बंटे समाज हमारा
प्रश्न: कांग्रेस जातिगत जनगणना की बात कर रही है, लेकिन बीजेपी बंटेंगे तो कटेंगे कह रही है?
उत्तर: बंटेंगे तो कटेंगें, एक हैं तो सेफ हैं, ये एक सहज भाव है। इसमें कोई किन्तु परंतु नहीं है। इतिहास भी हमें ये बताता है कि जब राजा आंभि और पोरस आपस में बंटे तो ही यूनानियों के हाथों कटे। पृथ्वीराज चौहान और जयचंद के बीच में बंटे तो मोहम्मद गोरी के हाथों कटे। यही हाल तब हुआ जब महाराणा प्रताप और मानसिंह के बीच में बंटे तो अकबर के हाथों कटे। तब रियासतों के राजा थे, अब जातियों के राजा हैं। आज जातियों के राजाओं को लगता है कि हमने कट्टरपंथियों को साध लिया तो हमारा राज आ जाएगा। लेकिन, ये लोग भूल रहे हैं कि जब गोरी जीता था तो बचे जयचंद भी नहीं थे।
पाकिस्तान में 24 फीसदी हिन्दू रह गए थे। आज के बांग्लादेश में 32 फीसदी था,लेकिन अब 7 प्रतिशत पर आ गया है। उस 32 फीसदी में एससी/एसटी और ओबीसी था। वो बंट गए तो कट गए। यही हाल सिलहट में हुआ, वहां वोटिंग से ये तय हुआ था कि वो इलाका भारत में रहेगा या पाकिस्तान में रहेगा। उस समय जोगिंदरनाथ मंडल जो कि दलित समाज के नेता थे, वो मुस्लिम लीग के साथ मिलकर अधिक स्वतंत्रता और राज मिलेगा। उन्होंने अपनी जाति के, लोगों से मुस्लिम लीग के पक्ष में वोट करवाया। जैसे ही वोट बंटा तो सिलहट भारत से कटा। बांग्लादेश के हालात सभी जानते हैं। भारत के लोगों से ये कहना चाहूंगा कि तोरी गठरी में लागा चोर मुसाफिर मन की आंखें खोल।
प्रश्न: राहुल गांधी कहते हैं मोदी जी शासनकाल में संविधान खतरे में है। क्या आपको लगता है कि पिछले 75-76 सालों में संविधान खतरे में नहीं रहा और अब है?
उत्तर: संविधान एक नजरिए से अवश्य खतरे में है कि जब केंद्र सरकार के द्वारा पारित कानून सीएए के विरोध में राज्य सरकारें अपनी विधानसभाओं में प्रस्ताव पारित करें तो ये संविधान का उल्लंघन है। इस स्थिति में संविधान खतरे में है। जब वो कानून नागरिकता से जुड़ा है और संविधान के अनुसार नागरिकता केवल केंद्र सरकार दे सकती है, लेकिन जब राज्य सरकार अपनी सीमा पार करके प्रस्ताव पारित करे तो संविधान खतरे में है। केंद्रीय एजेंसियों को राज्य सरकारें अपने क्षेत्र में काम करने से रोकें तो संविधान खतरे में है। जिस जमाने में एएसआई की टीम को सर्वे करने से रोकने के लिए हवाला दिया जाए कि इससे माहौल बिगड़ रहा है तो समझ जाइए कि संविधान खतरे में है।
वो लोग जब सत्ता में थे, तो भी उन्होंने ने ही संविधान को खतरे में डाला और आज भी वही संविधान को कुचलने की कोशिश कर रहे हैं। जब 6 दिसंबर को 1992 को उत्तर प्रदेश सरकार को नियमों के विरुद्ध जाकर बर्खास्त कर दिया गया, तब संविधान खतरे में था। लेकिन, हिमाचल, मध्य प्रदेश और राजस्थान की सरकार को क्यों बर्खास्त किया गया। क्या संविधान खतरे में नहीं था।
1980 के एक वाकये का जिक्र करते हुए भाजपा सांसद ने कहा कि उस वक्त जब दोबारा से जीतकर इंदिरा गांधी सरकार में आईं तो उन्होंने यह कहकर 9 राज्यों की सरकारों को बर्खास्त कर दिया था कि आपकी पार्टी केंद्र में चुनाव हार गई है। संविधान का दुरुपयोग करने वाले कहते हैं कि संविधान खतरे में है। इसी दुरुपयोग को देखते हुए 1994 में एस आर बोम्मई के केस में सुप्रीम कोर्ट को ये फैसला देना पड़ा कि किसी भी सरकार का बहुमत है या नहीं ये केवल फ्लोर पर ही तय हो सकता है।
मुगलों के टाइम पर दिए गए प्रावधानों के आधार पर कांग्रेस पार्टी ने वक्फ बोर्ड को जमीन देने का प्रावधान किया है। ये वो सरकारें थीं, जो कि शरिया से चलती थीं। ऐसा कोई बादशाह नहीं रहा, जिसने गाजी की उपाधि न ली हो। मुगलों के शासन के दौरान जिम्मी यानि कि गैर मुस्लिमों का भारत की संपत्ति पर हक नहीं था। इन लोगों ने उस अवधारणा को भारत के संविधान में संसद के जरिए लागू कर दिया। आज संविधान को वास्तविकता में असली सेक्युलर स्वरूप तक पहुंचाना है। जिसके लिए मोदी जी की सरकार ने आने के बाद काम किया है।
प्रश्न: दिल्ली के चुनावों में बीजेपी की स्थिति को आप किस तरह से देखते हैं। केजरीवाल के जो आरोप हैं और उन पर जो आरोप हैं उसको लेकर क्या कुछ बदलाव आएगा?
उत्तर: दिल्ली का चुनाव इस वक्त त्रिकोणीय हो रहा है। तीनों पार्टियों की अपनी एक अलग फितरत है। कांग्रेस देश की सबसे पुरानी पार्टी है। जब कोई चीज अधिक पुरानी हो जाए तो कहते हैं कि पुरानी धुरानी हो गई, अब इसे किनारे रख दो। उससे भी अधिक पुरानी हो जाए तो लोग कहते हैं कि कपड़े फटे पुराने हो गए हैं, इसे बाहर फेंक दो। कांग्रेस का यही हाल है। दूसरी पार्टी नई नवेली, अजब और अलबेली पार्टी है, जिसकी फितरत को समझना ही चुनौती है। ये लोग आते हैं और झूठ बोलकर चले जाते हैं। आज सुबह की केजरीवाल कह रहे थे कि भाजपा को पता चल गया है कि उसकी सरकार तो आनी नहीं है। इसे कहते हैं कहते-कहते दिल की आरजू लबों पर आ गई। आपके दिमाग में सरकार और पैसा दोनों छुपा बैठा था। अब केजरीवाल का असली चेहरा जनता के सामने है।
केजरीवाल के असली चेहरे औऱ उनके शीशमहल को देखकर दिल्ली की जनता कहती होगी कि बड़े मासूम लगते थे मेरे सनम, क्या से क्या हो गए देखते देखते। जिन्हें पत्थर से हमने बनाया सनम वो खुदा हो गए देखते देखते। वे ऐसी बातें करते हैं कि जैसे सारी खुदाई उन्हीं की हो।
प्रश्न: केजरीवाल कहते हैं कि दिल्ली में बीजेपी के पास कोई सीएम चेहरा ही नहीं है?
उत्तर: कितनी मजेदार बात है कि जहां मुख्यमंत्री पद पर मुख्यमंत्री बैठी हुई हैं, वहीं चेहरा नहीं है। उनके पास कुर्सी पर बैठा हुआ सीएम सीएम नहीं है। जो केजरीवाल सीएम या डिप्टी सीएम भी नहीं है, उनके नाम पर योजनाएं चल रही हैं। ये लोग दिल्ली की सत्ता में केवल एम फैक्टर के कारण आए थे। लोकसभा में इन्हें लगा था कि उस फैक्टर पर सबको एक रहना चाहिए, फिर जीतने के बाद ऐसा जलवा दिखाया कि उन्होंने इंडि गठबंधन के किसी और को तो कुछ समझा ही नहीं। उनकी स्पीच में अखिलेश, शरद पवार या अन्य का नाम ही नहीं रहा। ऐसे में दूसरी पार्टियों को लगा कि कहीं हमारा एम ये न ले उड़ें।
प्रश्न: इस समय नरैटिव की लड़ाई चल रही है। आने वाले समय में इससे निपटने के लिए क्या किया जाएगा?
उत्तर: नरैटिव की लड़ाई वास्तविक लड़ाई है। आप सत्ता में रहें और नरैटिव नहीं बदला तो कश्मीर फाइल्स का वो डायलॉग याद करें कि सरकार भले ही उनकी है, सिस्टम आज भी हमारा है। नरैटिव को लेकर 13 दिन की सरकार गिरने के वक्त सुषमा स्वराज ने कहा था कि लुटियंस जोन में आप अपने आपको बुद्धिमान तब तक न समझें जब तक कि आप अपने भारतीय होने पर ग्लानि का अनुभव न करने लगें और हिन्दू होने पर शर्म का अनुभव न करें। तब तक आपको बौद्धिक जगत में मान्यता नहीं मिल सकती।
मोदी जी के आने के बाद नरैटिव को बहुत ही भयानक तरीके से आगे बढ़ाने का प्रयास किया कि देश खत्म हो जाएगा। लेकिन, नरैटिव की ये लड़ाई पिछले 50-60 साल से चल रही है।
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