विश्लेषण

छोटी श्वेत बच्चियों के ग्रूमिंग गैंग्स के बीच UK के वेल्स में एनजीओ वेलिश रेफ्यूजी काउंसिल की हैरान करने वाली तस्वीरें

प्रश्न यही है कि कथित उदारवादी या कहें कट्टर कम्युनिस्ट लोग अपने देश की श्वेत लड़कियों के प्रति इस सीमा तक संवेदनहीन क्यों हैं कि वे उन्हें चेहरा बनाकर अशांत देशों से लोगों को अपने यहाँ शरण के लिए आमंत्रित कर रहे हैं।

Published by
सोनाली मिश्रा

यूके में ब्रिटेन में जहां हर दिन अब ग्रूमिंग गैंग्स की खौफनाक कहानियाँ सामने आ रही हैं और यह सामने आ रहा है कि कैसे श्वेत लड़कियों को उनके रहन सहन और उनके कपड़ों के आधार पर नीचा समझकर उन्हें देह के व्यापार में धकेला गया, तो वहीं इन्हीं कहानियों के बीच यूके के ही एक और देश वेल्स में शरणार्थियों के लिए बने एक गैर सरकारी संगठन की चौंकाने वाली तस्वीरें सामने आई हैं।

वेल्स में वेल्श रेफ्यूजी काउंसिल नामक एक गैर सरकारी संगठन है। उसने वेल्स में शरणार्थियों को बुलाने के लिए जो विज्ञापन बनाया है, उसमें दो श्वेत बच्चियाँ शरणार्थियों को आमंत्रित कर रही हैं।

हालांकि, यह विज्ञापन 2023 का है और तब भी इसका विरोध कुछ ऐसे लोगों ने किया था, जो बच्चियों की पीड़ा को समझते हैं। कुछ हैंडलर्स ने इस तरफ ध्यानाकर्षित करते हुए लिखा था कि “वेल्श सरकार और शरणार्थी परिषद छोटी लड़कियों का उपयोग शरणार्थियों को वेल्स, जो एक ‘शरणार्थी देश’ है, में लाभ और आवास का दावा करने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए कर रही है।

बिल्कुल घृणित और पूरी तरह से निंदनीय आचरण।“

उस समय भी लोगों ने इस पर आपत्ति व्यक्त की थी, कि आखिर बच्चियों का प्रयोग कैसे किया जा सकता है? ऐसा नहीं हैं कि वेल्स में शरणार्थियों द्वारा छोटी लड़कियों के साथ बलात्कार के मामले हुए नहीं हैं। बीबीसी में वर्ष 2018 के एक मामले का उल्लेख है, जिसमें शरण चाहने वाले ने एक छात्रा के साथ बलात्कार किया था और उसे जेल भी हुई थी।

वेल्स में वर्ष 2018 में हुए इस मामले में वेल्स में शरण चाहने वाले 39 वर्षीय मोहम्मद अमीन ने एक छात्रा को निशाना बनाया था। वह अपने दोस्तों से अलग हो गई थी और अमीन ने उसे बहला लिया था। अमीन यूके में वर्ष 2012 में आया था और वह मिस्र का था। जब उसने देखा कि एक अट्ठारह साल की लड़की का फोन एक नाले में गिर गया है और वह नाले से अपना फोन निकालने की कोशिश कर रही है, तो उसने उसकी मदद का दिखावा किया।

उसने नाले से फोन निकाला और फिर उसे घर छोड़ने के बहाने से लेकर गया। वहाँ से वह उसे अपने घर ले गया और फिर उसे शावर के नीचे धकेला और उसका बलात्कार करने से पहले उसे साफ किया।

वह यूके से भाग गया था, मगर उसे डबलिन में पाया गया और उसे मुकदमा चलाने के लिए वापस लाया गया। पीडिता का बयान था कि वह अपनी इस स्थिति के लिए खुद को जिम्मेदार मानती थी और अपने आप को मारने की भी कोशिश करती थी।

उसे 14 वर्ष की सजा सुनाई गई थी। जज ने उससे कहा था कि उसने एक मुसीबत में फंसी लड़की की मदद का दिखावा करते हुए यह कुकृत्य किया।

ऐसी ही तमाम घटनाओं को लोगों ने साझा किया और पूछा कि आखिर वेल्स रेफ्यूजी काउंसिल लड़कियों को लेकर इस प्रकार संवेदनहीन क्यों है और क्यों छोटी बच्चियों का प्रयोग वह अपने विज्ञापन में कर रही है।

एक यूजर ने जर्मनी में भी इस प्रकार के प्रयोगों को लेकर एक पोस्ट किया था। उसने लिखा था कि जर्मनी में जो हो रहा है, वह वेल्स में हो रहा है। आखिर छोटी लड़कियों को अवैध शरणार्थियों को लुभाने के लिए इस्तेमाल क्यों किया जा रहा है?

प्रश्न यही है कि कथित उदारवादी या कहें कट्टर कम्युनिस्ट लोग अपने देश की श्वेत लड़कियों के प्रति इस सीमा तक संवेदनहीन क्यों हैं कि वे उन्हें चेहरा बनाकर अशांत देशों से लोगों को अपने यहाँ शरण के लिए आमंत्रित कर रहे हैं। जबकि इन अशांत देशों के शरणार्थियों का व्यवहार श्वेत लड़कियों के प्रति बहुत ही घृणा से भरा हुआ होता है।

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