1948 में आकाशवाणी का पुनर्गठन किया गया। इसका उद्देश्य सूचना, शिक्षा और मनोरंजन के माध्यम से राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देना था। आकाशवाणी ने स्वतंत्रता के बाद भारत की भाषाई और सांस्कृतिक विविधता को समृद्ध किया। इसकी सेवाएं 23 भाषाओं और 146 बोलियों में उपलब्ध हैं। अंतरराष्ट्रीय प्रसारण सेवा भारतीय संस्कृति और वैश्विक मुद्दों पर भारत के दृष्टिकोण को प्रसारित करती है। यह भारतीय जनमानस के लिए सूचना और शिक्षा का एक विश्वसनीय स्रोत बना हुआ है।
निसंदेह आधुनिक भारत में आज सोशल और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की व्यापकता से आकाशवाणी का आकर्षण प्रभावित हुआ है। लेकिन जन सामान्य के बीच आकाशवाणी का महत्व कम नहीं हुआ है। आकाशवाणी ने भारत की सांस्कृतिक विशेषताओं और विविधता को प्राथमिकता तब भी दी थी, जब भारत स्वतंत्र नहीं था। इस विशेषता को जानकर ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने ‘मन की बात’ कार्यक्रम के लिए आकाशवाणी को प्राथमिकता दी और आधुनिकता के कुछ नए आयाम जोड़े। स्वतंत्रता के बाद भारत ने अपनी आधुनिक यात्रा आरंभ की। नए भारत के निर्माण में उन संस्थाओं की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है, जिन्होंने स्वतंत्रता के पूर्व भी जन सामान्य के बीच भारत की सांस्कृतिक महत्ता को जीवंत रखा। इनमें आकाशवाणी की भूमिका महत्वपूर्ण है।
आकाशवाणी ने भविष्य की दीवार पर उभरते चित्रों को देखकर सांस्कृतिक जागरण का कार्य आरंभ किया था। आकाशवाणी ने भारत की सांस्कृतिक विविधता और विशेषता से जुड़े जो कार्यक्रम प्रसारित किए, उससे सामाज में अपनी संस्कृति और परंपराओं के प्रति आत्मविश्वास का जागरण हुआ। यही जागृति पहले स्वतंत्रता संग्राम में जन भागीदारी और अब राष्ट्र के स्वत्व जागरण का माध्यम है। यह भारतीय समाज जीवन में स्वत्व और सांस्कृतिक चेतना की जागृति ही तो है कि आज भारत पुन: अपने खोए हुए परम वैभव को प्राप्त करने की ओर बढ़ रहा है और संपूर्ण विश्व भारत के सांस्कृतिक और सामाजिक मूल्यों की ओर आकर्षित हो रहा है। परंपराओं के प्रति अपनत्व का भाव जाग्रत करने में आकाशवाणी की भूमिका महत्वपूर्ण रही है।
अंग्रेजी राज में इसने भारत की क्षेत्रीय व आंचलिक विविधता पर जो कार्यक्रम प्रसारित किए, सतही तौर पर तो वे केवल मनोरंजन के लगते थे, लेकिन उन प्रसारणों से समाज जीवन में परंपराओं के प्रति आत्मविश्वास जागा और वही स्वत्व चेतना का आधार बना। आकाशवाणी ने समय के साथ अपने प्रसारणों की विविधता में निरंतर वृद्धि की। भारत का कोई क्षेत्र, कोई भाषा और कोई स्थानीय बोली नहीं है, जिसमें आकाशवाणी के कार्यक्रम प्रसारित न होते हों। आज 23 भाषाओं और 146 बोलियों में आकाशवाणी के कार्यक्रम प्रसारित होते हैं।
राष्ट्र, समाज और जीवन का ऐसा कोई विषय नहीं है, जिसे आकाशवाणी ने अपने प्रसारण में शामिल न किया हो। इसने प्रत्येक विषय को व्यापक बनाया। साहित्य में गीत, कविता, कवि गोष्ठी, लघुकथा, व्यंग्य, कहानी, एकांकी आदि सब प्रसारित हुए। इसने भारत के प्रमुख साहित्यकारों की जीवनी, लेखन शैली तथा कृतियों से परिचित कराया। बदलते मौसम की विशेषता और उसका स्वास्थ्य पर पड़ने वाला प्रभाव, बीमारियां और उनसे बचने के उपाय विशेषज्ञों की वार्ताओं के माध्यम से समझाए। आकाशवाणी पर मनुष्य ही नहीं, पालतू पशु-पक्षी संरक्षण के कार्यक्रम भी प्रसारित होते हैं। किस मौसम में कौन सी फसल, फल-सब्जी उगाएं, उपज बढ़ाने के तरीके, कीट-पतंगों से फसलों के नुकसान की आशंका पर किसानों को सलाह भी दी गई। इस पर छात्र, युवा, महिला, किसान आदि सभी वर्ग समूह के लिए कार्यक्रम और समय निर्धारित किए गए।
आज समाज जीवन में सोशल मीडिया व्यापक हो रहा है, रोज नए न्यूज चैनल आ रहे हैं। इलेक्ट्रॉनिक और सोशल मीडिया की इस व्यापकता से आकाशवाणी का विषय जनचर्चा में तो कम हुआ है, लेकिन इसकी विश्वसनीयता और गुणवत्ता में कोई अंतर नहीं आया है। विश्व में सर्वश्रेष्ठ राष्ट्र होने की स्पर्धा में अग्रणी भारत के 60 प्रतिशत से अधिक लोगों के जीवन में आज भी आकाशवाणी ही उपयोगी है। सुदूर ठेठ ग्रामीण क्षेत्रों, कस्बों और पर्वतीय अंचल में बसी बस्तियों में सूचना या समाचार ही नहीं, मनोरंजन और स्थानीय समस्याओं के समाधान के उपाय जानने का माध्यम आकाशवाणी ही है।
आकाशवाणी मनोरंजन या सनसनी फैलाने वाले समाचारों से ‘टीआरपी’ बढ़ाने की जुगत में नहीं रहता, वह भारत की संस्कृति और स्थानीय एवं क्षेत्रीय विशेषताओं से पूरे भारत को परिचित कराने की महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आकाशवाणी के इस महत्व को समझा। इसीलिए उन्होंने ‘मन की बात’ के प्रसारण के लिए आकाशवाणी को माध्यम बनाया। वे भारत को संसार के विकसित राष्ट्रों की पंक्ति अग्रणी बनाने का संकल्प लेकर कार्य कर रहे हैं। उनका चिंतन व्यापक और बहुआयामी है। उनकी प्राथमिकताओं से चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर भारतीय यान पहुंचा है, भारत ने आधुनिक आयुध निर्माण में आत्मनिर्भर होने की दिशा में कदम बढ़ाए हैं।
आधुनिकीकरण की इस स्पर्धा के साथ संसद की सीढ़ियों को दंडवत, नए संसद भवन में संगोल की स्थापना सांस्कृतिक परंपराओं का सशक्तिकरण है। मोदी उन परंपराओं और विधाओं का संरक्षण भी कर रहे हैं, जिनसे भारत की पहचान है। इन्हीं प्राथमिकताओं में से एक आकाशवाणी भी है। उन्होंने ‘मन की बात’ के लिए आकाशवाणी को प्राथमिकता देकर उसे आधुनिक स्वरूप प्रदान करने की पहल भी आरंभ की। अब देश के 20 राज्यों में 91 स्थानों पर 100 वाट की क्षमता के लो पावर एफएम ट्रांसमीटर स्थापित हो गए हैं। इससे आकाशावाणी के ट्रांसमीटरों के नेटवर्क की संख्या 524 से बढ़कर 615 हो गई है।
विषय कोई भी हो, मनोरंजन का हो या शिक्षा, साहित्य, स्वास्थ्य, कृषि, युवा, महिला, लोक संस्कृति, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर के किसी सामयिक विषय या घटनाओं का हो— इससे संबंधित संगोष्ठियों और अपने प्रसारण के अन्य स्वरूप में आकाशवाणी सदैव क्षेत्रीय भाषा और स्थानीय बोली का ही समावेश करता है। इससे स्थानीय एवं विषय से संबंधित जन मानस अपनी आत्मीयता अनुभव करता है। देश के सुदूर पर्वतीय और वन क्षेत्र की बस्तियों में केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा लिए गए निर्णयों की जानकारी जन सामान्य तक पहुंचाने का भी आकाशवाणी महत्वपूर्ण साधन है। स्वतंत्रता के बाद जन कल्याण की अनेक योजनाएं बनीं, लेकिन क्रियान्वयन का जो कीर्तिमान स्वच्छता अभियान, हर घर नल, हर घर शौचालय, आयुष्मान कार्ड, उज्ज्वला योजना आदि ने बनाया, वैसा पहले किसी का नहीं रहा। इसका कारण प्रधानमंत्री मोदी द्वारा ‘मन की बात’ में बार-बार इन योजनाओं को दोहराना है।
आकाशवाणी ने केवल मन की बात के ‘सीधे’ प्रसारण के बाद अपना कर्तव्य पूरा नहीं कर लिया, अपितु उनमें वर्णित योजनाओं एवं बिंदुओं पर विशेषज्ञों के साथ विमर्श भी किया। यही कारण है कि इन योजनाओं का क्रियान्वयन उन क्षेत्रों में भी देखने को मिला, जहां समाचारपत्र अथवा टेलीविजन की पहुंच नहीं है।
भारत में रेडियो 1924 में आया। इसकी शुरुआत मद्रास प्रेसीडेंसी क्लब ने की। क्लब ने अपने स्तर पर रेडियो का प्रसारण 1927 तक किया था। समय के साथ रेडियो के प्रसारण से बम्बई और कलकत्ता के कुछ व्यवसायी जुड़े और 1927 में इन दोनों शहरों में रेडियो प्रसारण आरंभ हुआ। 23 जुलाई, 1927 को बम्बई में भारत का पहला रेडियो स्टेशन आरंभ हुआ। वर्ष 1932 में अंग्रेज सरकार ने इसका प्रसारण अपने हाथ में ले लिया और संचालन के लिए अपने आधीन इंडियन ब्रॉडकास्टिंग सर्विस नामक विभाग गठित किया। 1936 में इसका नाम आल इंडिया रेडियो हुआ। आकाशवाणी का अंग्रेजी में यह नाम आज भी है।
1957 में इसका नाम ‘आकाशवाणी’ हुआ। आकाशवाणी संस्कृत का शब्द है। भारतीय पुराणों के लगभग हर प्रसंग में आकाशवाणी शब्द मिलता है। रेडियो के लिए आकाशवाणी शब्द का सबसे पहले उपयोग 1936 में हुआ था। यह कर्नाटक में एक निजी रेडियो स्टेशन की स्थापना का अवसर था। अपने समय के सुप्रसिद्ध साहित्यकार एमवी गोपालस्वामी ने रेडियो को आकाशवाणी कहा, जो जन सामान्य के उच्चारण में आया और 1957 में अधिकृत नाम के रूप में सामने आया। भारत में 1995 में इन्टरनेट रेडियो आरंभ हुआ। ल्ल
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