आगामी दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी दिल्ली में खुद के बने गए जाल में उलझती दिख रही हैं. आम आदमी पार्टी इस बार दिल्ली विधानसभा चुनाव में पहले दो चुनावों की तरह आश्वस्त नहीं दिख रही हैं. इस एक बड़ा कारण आप का खुद लोकसभा चुनाव में उठाया गया आत्मघाती कदम हैं. दूसरे शब्दों में कहे तो आप ने खुद को कमजोर करने की पटकथा पार्टी ने खुद ही लिखा हैं.
लगातार 2014 और 2019 के दो लोकसभा चुनाव में दिल्ली आप पार्टी द्वारा खाता तक नहीं खोले जाने के कारण केजरीवाल परेशान थे. यह तब हुआ जब आप लगातार दो विधानसभा चुनावों में उम्मीद से अधिक सीट जीती थी . इस कारण केजरीवाल ने लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी के साथ गठबंधन किया. मगर यह गठबंधन अब खुद केजरीवाल के लिए ही गले की हड्डी बनती दिख रही हैं.
विगत लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी और आप का गठबंधन था जिसके तहत कांग्रेस पार्टी तीन व आप ने चार सीटों पर चुनाव लड़ा. यधपि दोनों दलों में कोई भी दल अपना खाता नहीं खोल सका मगर इस क्रम में कांग्रेस पार्टी का दिल्ली की राजनीति में पुर्नजन्म अवश्य केजरीवाल की राजनीतिक नासमझी के कारण हो गया.
कांग्रेस पार्टी ने गठबंधन में आप से वैसी ही लोकसभा सीटों को अपने लड़ने वास्ते लिया जिनमे मुस्लिम बाहुल्य विधानसभा की सीट थी. कांग्रेस पार्टी का लोकसभा चुनाव में इन मुस्लिम बहुल विधानसभा की सीटों पर उम्मीद से भी अच्छा प्रदर्शन रहा और अब कांग्रेस पार्टी अपने पूर्वति मुस्लिम मतदाताओ को अपने पाले में लाने की और बढ़ती दिख रही हैं. मुस्लिम मतदाताओं का यह कांग्रेस पार्टी में नई ऊर्जा का संचार कर दिया हैं.
कांग्रेस पार्टी ने चांदनी चौक, दिल्ली उत्तर पूर्व व दिल्ली उत्तर पश्चिम की लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ी और इस सीटों के अंतर्गत आनेवाली मुस्लिम बाहुल्य विधानसभा की सीटों चांदनी चौक, मटिया महल, बल्लीमारान, सीलमपुर, बाबरपुर, मुस्तफाबाद विधानसभा सीटों पर आगे रही. इससे यह स्पष्ट होता हैं की मुस्लिम मतदाता जो दिल्ली में हाल के दिनों में कांग्रेस के बदले आप को वोट दे रही थी वो अब मतदाता अब फिर से कांग्रेस पार्टी की और लौटना शुरू कर दिया हैं.
2024 के लोकसभा चुनाव में जहाँ आम आदमी पार्टी को 10 विधानसभा की सीटों पर बढ़त मिली वही कांग्रेस पार्टी भी आप के लगभग बराबर 8 सीटों पर बढ़त बनाने में कामयाब रही. जिस कांग्रेस पार्टी ने विगत दो विधानसभा चुनावों में दिल्ली में अपना खाता भी नहीं खोल सकी वो आप के इस राजनीतिक कदम के कारण अब मुख्य प्रतिस्पर्धा में वापसी करती दिख रही हैं.
आप ने जो कदम दिल्ली में 2024 के लोकसभा चुनाव में उठाया वैसा ही बिहार में 2015 के विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार ने लालू यादव के राष्ट्रीय जनता दल के साथ गठबंधन करके किया था. परिणामतः 2015 में उनका गठबंधन चुनाव जीतकर सरकार बनाने में कामयाब अवश्य रही मगर इस क्रम में लालू यादव का राजनीतिक पुनर्जन्म अवश्य नीतीश कुमार के इस कदम से हो गया. अब नितीश कुमार वो भाजपा गठबंधन को लालू यादव से मजबूती से चुनाव लड़ने को मजबूर होना पड़ रहा हैं.
1993 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में कांशीराम ने मुलायम सिंह यादव के साथ गठबंधन करके मुलायम सिंह यादव को राजनीति के हासिये से मुख्य लड़ाई में ला दिया और मुलायम सिंह यादव उत्तर प्रदेश में मजबूत ताकत बन गए. भारत की राजनीति में ऐसे दर्ज़नो उद्धरण हैं जब एक दल के कारण दुसरा दल मजबूत बन गया और उसी बढ़ने वाले दल को इसका खामियाजा बाद के दिनों में उठाना पड़ा हैं.
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