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कनाडा आतंकियों का शरणस्थल ? एलन मस्क ने हसन दाइब के प्रोफेसर बनने पर उठाए सवाल

कनाडा में हसन दाइब, जो पेरिस में यहूदी प्रार्थनास्थल पर हमले का दोषी है, एक प्रोफेसर के रूप में कार्यरत है। एलन मस्क और यहूदी समुदाय ने कनाडा के इस रुख पर सवाल उठाए हैं।

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सोनाली मिश्रा

क्या कनाडा आतंकियों के लिए सुरक्षित शरणस्थली बन गया है? भारत के कई खालिस्तान समर्थक आतंकी वहाँ पर शरण लिए हुए हैं, मगर एलन मस्क ने कल एक पोस्ट साझा किया, जिसमें एक बहुत ही चौंकाने वाला समाचार था। उस पोस्ट के अनुसार कनाडा की एक ऐसा व्यक्ति प्रोफेसर के रूप में काम कर रहा है, जिसे फ्रांस में न्यायालय ने एक यहूदी प्रार्थनास्थल पर हुए आतंकवादी हमले का दोषी पाया है। और इतना ही नहीं वह “सामाजिक न्याय” जैसे विषय को पढ़ा रहा है।

फ्रांस ने कई बार कनाडा से हसन दाइब नामक व्यक्ति को वापस भेजने की मांग की है, मगर हर बार कनाडा की ओर से इनकार कर दिया जाता है। इतना ही नहीं जब वर्ष 2023 में जब वर्ष 1980 में पेरिस में हुए यहूदियों के प्रार्थनास्थल पर हमले को लेकर हसन को दोषी ठहराया था तो कनाडियन एसोसिएशन ऑफ यूनिवर्सिटी टीचर्स ने इस निर्णय पर खेद प्रकट किया था।

और कनाडा सरकार से अनुरोध किया था कि वह हसन को फ्रांस को न सौंपे। वर्ष 1980 में पेरिस मे यहूदियों के प्रार्थनास्थल पर बम विस्फोट हुआ था। और उसमें चार लोग मारे गए थे और साथ ही कई लोग घायल हुए थे। इन हमलों को लेकर कई और लोगों सहित करलेटॉन यूनिवर्सिटी में सामाजिक न्याय पढ़ा रहे हसन दाइब को भी दोषी ठहराया था।

जिस समय हमला हुआ था, उस समय वहाँ पर लगभग 300 लोग मौजूद थे और शाम को लगभग 6.30 पर इस प्रार्थनास्थल पर विस्फोट हुआ था। प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया था कि वहाँ पर 20 मीटर तक आग के शोले भड़क गए थे और कारें भी उसकी चपेट में आई थीं। nationalpost नामक पोर्टल के अनुसार उस विस्फोट में चार लोग मारे गए थे और छयालीस लोग घायल हुए थे।

इस हमले में दोषियों का पता लगाने में अधिकारियों को कई साल लग गए थे और मुकदमे को भी चलाने में काफी समय लग गया था। लगभग चालीस वर्ष बाद फ्रांस की एक अदालत ने हसन दाइब को दोषी माना था। मगर जब उसे दोषी पाया गया तो उसके पक्ष में ही कनाडा में प्रोफेसर्स सामने आ गए और यह कहा गया कि उसके मामले में गलत निर्णय दिया गया है।

यह बात पूरे विश्व में फैले यहूदी समुदाय के लिए किसी धक्के से कम नहीं थी कि वर्ष 1980 में उनके प्रार्थनास्थल पर हुए आतंकी हमले का दोषी ठहराया गया व्यक्ति कनाडा में न केवल सुरक्षित जीवन जी रहा है, बल्कि वह एक यूनिवर्सिटी में “सामाजिक न्याय” जैसा विषय भी पढ़ा रहा है।

ऐसे में प्रश्न उठता है कि क्या ऐसा व्यक्ति जो खुद ही किसी समुदाय के धार्मिक अस्तित्व को लेकर दुराग्रह से ग्रसित रहा हो, क्या वह सामाजिक न्याय जैसा विषय पढ़ा सकता है? या किसी भी यूनिवर्सिटी आदि को उसे लेकर इस सीमा तक पूर्वाग्रही होना चाहिए कि वह किसी देश की न्यायपालिका पर विश्वास ही न कर सके?

सोशल मीडिया पर एलन मस्क ने यह प्रश्न किया कि एक कातिल कनाडा में प्रोफेसर के रूप में स्वतंत्र जीवन जी रहा है?

यह भी देखा गया है कि कनाडा केवल भारत या कहें हिन्दू विरोधी खालिस्तान समर्थकों का ही केंद्र बनकर नहीं उभरा है, यहूदियों के खिलाफ भी कनाडा में हिंसा में वृद्धि हुई है। कनाडा में यहूदियों के साथ हो रहे हमलों पर अक्टूबर 2024 में एक रिपोर्ट सामने आई थी। जिसमें लिखा था कि कनाडा में यहूदियों के प्रति हिंसा में तेजी से वृद्धि हुई है।

इजरायल के Diaspora Affairs and Combating Antisemitism मंत्रालय ने कनाडा में यहूदियों के खिलाफ हो रहे हमलों और बढ़ रही हिंसक घटनाओं पर सोमवार को एक रिपोर्ट जारी की थी।

इस रिपोर्ट में बताया गया था कि कैसे सोशल इंफ्लुएंसर्स और कुछ नेता तक इजरायल या कहें यहूदियों के अस्तित्व के प्रति दुराग्रह से ग्रसित थे और लगातार फिलिस्तीन के समर्थन में विमर्श उत्पन्न कर रहे थे।

अब जब एक और नई घटना सामने आई है तो क्या यह समझा जाए कि कनाडा में यहूदियों और हिंदुओं के प्रति हिंसा का विमर्श उत्पन्न किया जा रहा है और अकादमिक स्तर पर भी उसे पोषित किया जा रहा है? जहां भारत के दुश्मन और काल्पनिक खालिस्तान के समर्थक कनाडा की धरती पर फल फूल रहे हैं तो वहीं वर्ष 1980 में पेरिस में यहूदियों के प्रार्थनास्थल पर हुए हमले का दोषी कनाडा में यूनिवर्सिटी में “सामाजिक न्याय” पढ़ा रहा है।

 

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सोनाली मिश्रा