भारत

नदियों को जोड़ने का सपना धरातल पर

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने नदियों को जोड़ने का सपना देखा था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनकी जन्मशती पर नदियों का मायका कहे जाने वाले मध्य प्रदेश में इस महत्वाकांक्षी परियोजना का शिलान्यास किया

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पाञ्चजन्य ब्यूरो

मध्य प्रदेश के खजुराहो में गत 25 दिसंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश की पहली महत्वाकांक्षी केन-बेतवा नदी जोड़ो राष्ट्रीय परियोजना का शिलान्यास किया। नदियों को जोड़ने का सपना पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने देखा था। उनके संकल्प और समृद्धि का सपना अब धरातल पर उतर चुका है। इस परियोजना के तहत छतरपुर और पन्ना जिले के पन्ना टाइगर रिजर्व में केन नदी पर 77 मीटर ऊंचा, 2.13 किलोमीटर लंबा बांध और दो सुरंगें बनाई जाएंगी।

2,853 मिलियन घनमीटर जल भंडारण की क्षमता वाला बांध बनने से प्रदेश के 10 जिले पन्ना, दमोह, टीकमगढ़, छतरपुर, निवाड़ी, सागर, रायसेन, विदिशा, शिवपुरी व दतिया के लगभग 2,000 गांवों की 8.11 लाख हेक्टेयर कृषि भूमि को सिंचाई की सुविधा मिलेगी, जिससे लगभग 7 लाख किसान लाभान्वित होंगे। साथ ही, ओंकारेश्वर फ्लोटिंग सोलर प्लांट का भी लोकार्पण किया गया, जो सूबे का पहला तैरता सौर प्लांट है।

इस महत्वाकांक्षी परियोजना के लिए राजस्थान और मध्य प्रदेश के बीच एक समझौता हुआ है। इस परियोजना की अनुमानित लागत 72,000 करोड़ रुपये है, जिसमें 35,000 करोड़ रुपये मध्य प्रदेश और 37,000 करोड़ रुपये राजस्थान खर्च करेगा। इसमें केंद्र और राज्य की हिस्सेदारी 90:10 की होगी।

सुशासन मतलब सेवा

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि जब हम सुशासन कहते हैं तो शासन के केंद्र में सत्ता नहीं होती, सेवा का भाव होता है। अटल जी के जन्मदिवस पर हर वर्ष 25 दिसंबर को मनाया जाने वाला ‘सुशासन दिवस’ हमें यह याद दिलाता है कि शासन का मतलब केवल प्रशासन नहीं है, बल्कि हर नागरिक के जीवन को बेहतर बनाना है। सुशासन का यह पर्व सुशासन की ‘सु सेवा’ की हमारी प्रेरणा का भी पर्व है। देश के विकास में अटल जी का योगदान हमेशा हमारे स्मृति पटल पर अमिट रहेगा। हमारे लिए सुशासन दिवस सिर्फ एक दिन का कार्यक्रम भर नहीं है। सुशासन भाजपा सरकारों की पहचान है।

उन्होंने कांग्रेस को आड़े हाथ लेते हुए देश के प्रबुद्ध लोगों से स्वतंत्रता के बाद 75 वर्ष में हुए विकास का आकलन करने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि विचारवान लोग विकास, जनहित और सुशासन के 100-200 मानक तय करें और फिर हिसाब लगाएं कि जहां कांग्रेस की सरकारें हैं, वहां क्या काम होता है, क्या परिणाम होता है। जहां वामपंथियों ने सरकार चलाई, वहां क्या हुआ। जहां परिवारवादी पार्टियों की सरकार रही, वहां क्या हुआ। जहां मिली-जुली सरकारें रहीं, वहां क्या हुआ और जहां-जहां भाजपा को सरकार चलाने का मौका मिला, वहां क्या हुआ। उन्होंने दावे के साथ कहा कि देश में भाजपा को जहां भी सेवा करने का अवसर मिला, उसने पुराने सारे रिकॉर्ड तोड़ कर जनहित, जनकल्याण और विकास कार्य किए। निश्चित मानदंडों पर मूल्यांकन हो, तो देश देखेगा कि भाजपा जनसामान्य के प्रति कितनी समर्पित है।

सुशासन का पैमाना

प्रधानमंत्री ने जोर देकर कहा कि सुशासन के लिए अच्छी योजनाएं बनाने के साथ उन्हें अच्छी तरह लागू करना भी जरूरी है। सरकार की योजनाओं का कितना लाभ हुआ, यह सुशासन का पैमाना होता है। अतीत में कांग्रेस सरकारें केवल घोषणाएं करती थीं। उसका फायदा लोगों को कभी मिला ही नहीं। हैरानी की बात है कि 35-40 साल पहले जितने शिलान्यास हुए, उन पर रत्ती भर भी काम नहीं हुआ। कारण, कांग्रेस सरकारों की न तो नीयत थी और न ही उनमें योजनाओं को लागू करने की गंभीरता।

उन्होंने आगे कहा कि सुशासन का मतलब ही यही है कि अपने हक के लिए लोगों को न तो सरकार के आगे हाथ फैलाना पड़ेऔर न ही सरकारी दफ्तरों के चक्कर न काटने पड़ें। सुशासन का यही मंत्र भाजपा सरकारों को दूसरों से अलग करता है। आज पूरा देश इसे देख रहा है, इसलिए बार-बार भाजपा को चुन रहा है। जहां सुशासन होता है, वहां वर्तमान चुनौतियों के साथ भविष्य की चुनौतियों पर भी काम किया जाता है। लेकिन दुर्भाग्य से देश में लंबे समय तक कांग्रेस की सरकार रही। कांग्रेस सरकार पर अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझती है, पर सुशासन से उसका छत्तीस का नाता रहा है। इसलिए जहां कांग्रेस है, वहां सुशासन हो ही नहीं सकता। इसका खामियाजा दशकों तक बुंदेलखंड के लोगों ने भी भुगता है। वहां के किसानों, माताओं और बहनों ने पीढ़ी दर पीढ़ी बूंद-बूंद पानी के लिए संघर्ष किया है। ये हालात क्यों बने? क्योंकि कांग्रेस ने कभी जल संकट के स्थायी समाधान के बारे में सोचा ही नहीं।

कांग्रेस का ओछापन

देश में नदियों के महत्व को रेखांकित करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि आजादी के बाद भारत की जलशक्ति, जल संसाधन और जल संचय के लिए बांध बनाने का सपना बाबासाहेब आंबेडकर ने देखा था। लेकिन इस सच को दबा कर रखा गया। एक व्यक्ति को श्रेय देने के चक्कर में सच्चे सेवक को भुला दिया गया। भारत में जो भी बड़ी नदी घाटी परियोजनाएं बनीं, उन सबके पीछे बाबासाहेब आंबेडकर की ही दृष्टि थी। आज जो केंद्रीय जल आयोग है, उसके पीछे भी उन्हीं के प्रयास थे। लेकिन जल संरक्षण और बड़े बांधों के लिए बाबासाहेब के प्रयासों के लिए कांग्रेस ने उन्हें कभी श्रेय नहीं दिया। यहां तक कि किसी को पता तक चलने नहीं दिया।

उन्होंने कहा कि आज सात दशक बाद भी देश के कई राज्यों के बीच पानी को लेकर कोई न कोई विवाद है। जब पंचायत से लेकर संसद तक कांग्रेस का शासन था, तब ये विवाद आसानी से सुलझ सकते थे। लेकिन कांग्रेस की नीयत खराब थी, इसलिए उसने इस दिशा में कभी ठोस प्रयास नहीं किए। जब देश में अटल जी की सरकार बनी तो उन्होंने पानी से जुड़ी चुनौतियों को हल करने के लिए गंभीरता से काम शुरू किया। लेकिन जैसे ही उनकी सरकार गई, उनके प्रयासों, उनकी योजनाओं और उनके सपनों को कांग्रेस ने सत्ता में आते ही ठंडे बस्ते में डाल दिया। आज हमारी सरकार देशभर में नदियों को जोड़ने के अभियान को गति दे रही है। केन-बेतवा लिंक प्रोजेक्ट का सपना भी अब साकार होने वाला है। इससे बुंदेलखंड क्षेत्र में समृद्धि और खुशहाली के नए द्वार खुलेंगे।

खुलेंगे समृद्धि के द्वार

इस अवसर पर मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव ने कहा कि अटल जी ने लगभग 20 वर्ष पूर्व नदियों को जोड़ने का सपना देखा था। वे चाहते थे कि देशभर की नदियां आपस में जुड़ें, पानी की एक-एक बूंद का उपयोग समाज व राष्ट्र के लिए हो तथा समृद्धि आए। मध्य प्रदेश देश का पहला राज्य है, जहां नदियों को जोड़ने के महाअभियान के तहत दो परियोजनाएं शुरू की गई हैं। पार्वती-काली सिंध-चंबल व केन-बेतवा लिंक परियोजनाओं के माध्यम से कई नदियां जुड़ेंगी। राजस्थान और मध्य प्रदेश के बीच इस समझौते का बड़ा लाभ उत्तर प्रदेश को भी होने जा रहा है।

हमारा संकल्प है विरासत के साथ विकास। इसी के तहत परियोजना में ऐतिहासिक चंदेलकालीन 42 तालाब भी सहेजे जाएंगे। उन्होंंने कहा कि इस परियोजना से मध्य प्रदेश की 44 लाख और उत्तर प्रदेश की 21 लाख आबादी को पीने का पानी तो मिलेगा ही, बुंदेलखंड को सिंचाई की सुविधा भी मिलेगी। साथ ही, 103 मेगावाट जल विद्युत और 27 मेगावाट बिजली का उत्पादन होगा, जिसका लाभ पूरे प्रदेश को मिलेगा।

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