लोकसभा चुनाव के बाद हुए चार विधानसभा चुनावों व कई राज्यों में हुए उपचुनावों के बाद कांग्रेस पार्टी की समस्या कम होने का नाम नहीं ले रही हैं. बल्कि कांग्रेस पार्टी की समस्या समय के साथ साथ बढ़ती ही जा रही हैं. कांग्रेस पार्टी पर उसके सहयोगी दलों द्वारा दवाब बढ़ता ही जा रहा हैं. इस कड़ी में सबसे अंतिम नाम आम आदमी पार्टी का हैं. आम आदमी पार्टी ने खुले स्वर में इंडि गठबंधन के घटक दलों से कांग्रेस पार्टी को इस गठबंधन से निकाले जाने की मांग तक कर दिया हैं. यह कांग्रेस पार्टी के लिए किसी बड़े भूचाल से कम नहीं हैं. आप ने कांग्रेस पार्टी पर अब तक के सहयोगी दलों द्वारा लगाए गए सबसे बड़ा आरोप लागते हुए कांग्रेस पार्टी को किनारे करने की मांग की हैं.
दरअसल कांग्रेस पार्टी के लगभग सभी सहयोगी दलों का पार्टी के प्रति रुख सख्त व टेढ़ा होता जा रहा हैं. कांग्रेस पार्टी व गांधी परिवार की सबसे करीबी सहयोगी राजद व लालू परिवार भी अब कांग्रेस पार्टी के खिलाफ मुखालफत का स्वर बुलंद कर रहा हैं. यह गाँधी परिवार के लिए व कांग्रेस पार्टी के लिए सबसे बड़ा राजनितिक द्वन्द हैं.
सहयोगी दलों का कांग्रेस पार्टी के प्रति टेढ़ी होती इस व्वहार में पार्टी का भी अहम भूमिका हैं. हम शुरुआत जम्मू व कश्मीर विधानसभा चुनाव से करते हैं तो पाते हैं की कांग्रेस पार्टी ने अपने सहयोगी नेशनल कांफ्रेंस से ना सिर्फ ताकत से दुगुनी सीट ली बल्कि सात सीटों पर नेका के खिलाफ उम्मीदवार भी उतार दिए. नेका ने चुपचाप कांग्रेस के इस अपमान का दंश बर्दाश्त किया और चुनाव जीतने के बाद सरकार बनाने में कांग्रेस पार्टी की पूरी अनदेखी की. हरियाणा विधानसभा चुनाव में अनेको सर्वेक्षणों के अनुसार कांग्रेस पार्टी की सरकार बनाने की संभावना के मद्देनज़र कांग्रेस पार्टी ने आम आदमी पार्टी व समाजवादी पार्टी की पूरी अनदेखी किया और परिणामो में कांग्रेस पार्टी भाजपा से पिछड़ गई.
महाराष्ट्र में कांग्रेस पार्टी नित गठबंधन पूरी तरह से विफल रही. झारखंड में कांग्रेस पार्टी ने अपने सहयोगियों के साथ बुरा बर्ताव किया और राजद के खिलाफ उम्मीदवार उतार दिए. यहाँ भी सरकार बनाने में झामुमो ने कांग्रेस पार्टी को अपने इशारों पर नचाया.
आगामी दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने हरियाणा चुनाव में आप के साथ किये गए बुरे बर्ताव का खामियाजा उठा रही हैं. अगर कांग्रेस ने हरियाणा में आप के साथ सीटों का गठबंधन किया होता तो आज आप दिल्ली में कांग्रेस पार्टी के साथ गठबंधन कर सकती थी. मगर आप भी कांग्रेस पार्टी को नज़रअंदाज कर रही हैं. कांग्रेस पार्टी ने लगातार दो लोकसभा चुनाव 2014 और 2019 में एक भी सीट नहीं जितने के बाद 2024 में आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़कर अपनी स्थिति को सुधारने का प्रयास करती हैं. इस गठबंधन में कांग्रेस पार्टी तीन और आप चार सीटों पर चुनाव लड़ती हैं. 2009 लोकसभा चुनाव में दिल्ली में सभी सातो सीटों को जीतनेवाली कांग्रेस पार्टी आम से भी कम सीटों पर गठबंधन कर चुनाव लड़ती हैं मगर फिर भी आप और कांग्रेस पार्टी अपना खाता खोलने में नाकाम रहती हैं.
अब कांग्रेस पार्टी अपनी राजनीति ईवीएम और अडानी के विरोध के मुद्दे पर कर रही हैं. वही कांग्रेस पार्टी के सहयोगी दलों को इन मुद्दों से परहेज हैं. नेका के उमर अब्दुलाह ने ईवीएम पर कांग्रेस पार्टी को आड़े हाथो लेते हुए कांग्रेस को ही कड़ी नसीहत तक दिया हैं. अखिलेश यादव लोकसभा में बैठने की व्यस्थता में बदलाव पर कांग्रेस पर काफी नाराज़ हैं.
लालू यादव ने खुले स्वर में ममता बनर्जी को इंडि गठबंधन की कमान सौंपने की वकालत की हैं. कांग्रेस पार्टी के कई अन्य क्षेत्रीय दल भी गाहे बगाहे इंडि गठबंधन की कमान ममता बनर्जी को सौपने की मांग कर दी हैं.
हाल के दिनों में ममता बनर्जी अब गैर कांग्रेस भाजपा विरोधी दलों की धुरी बनती दिख रही हैं. जिस तरह 80 के दशक के अंत में राष्ट्रीय मोर्चा का नेतृत्व एन टी रामाराव ने किया था उसी तर्ज़ पर ममता बनर्जी अब गैर कांग्रेस विपक्षी दलों की धुरी बनती दिख रही हैं. आने वाले समय में गैर कांग्रेस विपक्षी दलों की बैठक कर ममता बनर्जी को नेता चुना जा सकता हैं.
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