कांग्रेस पार्टी का दिल्ली सहित देश के अन्य राज्यों या केंद्रशासित प्रदेशों में गिरता प्रदर्शन ना सिर्फ पार्टी के लिए बल्कि समीक्षकों के लिए भी चिंतन का विषय है। कांग्रेस के प्रदर्शन की एक ख़ास बात यह भी है कि कांग्रेस पार्टी एक बार जहाँ कमजोर या हासिये पर चली जाती है वहां फिर से मजबूत नहीं हो पाती। यह कांग्रेस पार्टी के साथ 1990 के दशक में उत्तर प्रदेश, बिहार सहित कई राज्यों में देखने को मिला वहीं 2014 के बाद आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल सहित कई राज्यों में यह स्थिति देखने को मिल रही है।
केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली में 1993 से विधानसभा का चुनाव निरंतर होना शुरू हुआ है। पहली बार भारतीय जनता पार्टी ने कांग्रेस पार्टी के साथ सीधा मुकाबला करते हुए मदनलाल खुराना के नेतृत्व में सरकार बनाई थी। मगर 1998 में शीला दीक्षित के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी ने 52 सीटों के साथ अच्छे बहुमत के साथ सरकार बनाई थी। शीला दीक्षित सोनिया गांधी की व्यक्तिगत पसंद थीं और सोनिया गांधी ने उन्हें पार्टी का दिल्ली में चेहरा बनाया था। सोनिया गांधी का यह प्रयोग सफल रहा और शीला दीक्षित स्पष्ट बहुमत के साथ सरकार बनाने में सफल हुई थीं। उस समय कांग्रेस पार्टी राष्ट्रीय स्तर पर काफी कमजोर दौर से गुजर रही थी। मगर दिल्ली में कांग्रेस पार्टी लगातार तीन विधानसभा चुनावों 1998, 2003 वो 2008 में जीतने और सरकार बनाने में सफल रही। यह कांग्रेस पार्टी का दिल्ली में स्वर्ण काल था।
मगर 2013 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी का प्रदर्शन काफी कमजोर रहा और 1993 के बाद उस चुनाव में सबसे कम महज 8 सीट ही कांग्रेस पार्टी जीत सकी। कांग्रेस पार्टी की सबसे बड़ी अरविन्द केजरीवाल की पार्टी आम आदमी पार्टी बन गई। कांग्रेस पार्टी का अधिकतम वोट आम आदमी पार्टी ले गई और आप ने कांग्रेस पार्टी का स्थान दिल्ली की राजनीति में लेती चली गई। कांग्रेस पार्टी, जिसने 2008 में 43 सीट जीती थी वो 2013 में महज 8 सीटों पर ही सिमट गई। कांग्रेस पार्टी की राजनीति की सच्चाई ये है कि कांग्रेस पार्टी का एक बार जहाँ से पैर उखड़ जाता है, वहां फिर से कांग्रेस पार्टी का पैर नहीं जम पाता।
कांग्रेस पार्टी के 2013 में दिल्ली में गिरते प्रदर्शन ने उसे 2015 और 2020 के विधानसभा चुनावों में शून्य सीटों तक पहुंचा दिया। दिल्ली में कांग्रेस पार्टी के हालत इतने बुरे हो जाते हैं कि कांग्रेस पार्टी 2015 में दिल्ली विधानसभा चुनाव में 70 सीटों पर चुनाव लड़कर महज 8 सीटों पर और 2020 में 66 सीटों पर चुनाव लड़कर सिर्फ 3 सीटों पर जमानत बचा पाती। इतना ही नहीं बल्कि विगत तीन लोकसभा चुनावों 2014, 2019 और 2024 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस पार्टी का खाता भी नहीं खुल पाता।
ऐसा नहीं है कि सिर्फ दिल्ली में ही कांग्रेस पार्टी का ऐसा राजनीतिक प्रभाव हुआ है, बल्कि कई ऐसे राज्य है, जहाँ कांग्रेस पार्टी अर्श से फर्श तक सिर्फ एक चुनाव में ही आ गई। पश्चिम बंगाल में 2016 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी 44 सीटें जीतती है और मुख्य विपक्षी दल बनती है, वहीं अगले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी एक भी सीट नहीं जीत पाती है। पंजाब विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी 2017 में 77 सीटें जीतती है, वहीं 2022 में महज 18 सीटें ही जीत पाती है। मणिपुर में 2017 में 22 सीट से 2022 में महज 5 सीटों पर आ जाती है। मेघालय में 2018 में 21 सीट से 2023 में कांग्रेस पार्टी सिमटकर 5 सीटों पर आ जाती हैं। महाराष्ट्र विधानसभा में कांग्रेस पार्टी 2019 में 44 सीटों से घटकर 16 सीटों पर आ जाती है। गुजरात में कांग्रेस पार्टी 2017 में 77 सीटों से 2022 में घटकर17 सीटों पर सिमट जाती है। अरुणाचल प्रदेश में कांग्रेस पार्टी 2014 में 42 सीटों से 2019 में घटकर महज 4 सीटों पर आ जाती है।
दिल्ली वर्तमान में उन पांच राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में शामिल है, जिनमें कांग्रेस पार्टी का एक भी विधायक नहीं है। दिल्ली के अलावा ये राज्य हैं पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, नागालैंड और सिक्किम। लोकसभा चुनाव में दिल्ली सहित इन राज्यों वो केंद्र शासित प्रदेशों अंडमान और निकोबार द्वीप, आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, दादरा और नागर हवेली और दमन और दिउ, हिमाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर, लद्दाख, मध्य प्रदेश, मिजोरम, सिक्किम, त्रिपुरा, उत्तराखंड से कांग्रेस पार्टी का विगत लोकसभा चुनाव में खाता भी नहीं खुल सका था। इनमें कई ऐसे राज्य और केंद्रशासित प्रदेश है, जहाँ कांग्रेस पार्टी का विगत दो और तीन लोकसभा चुनावों में खाता तक नहीं खुल सका है।
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