सुप्रीम कोर्ट ने एलिमनी मांग पर जताई आपत्ति, कहा- पत्नी को पति की संपत्ति के बराबर दर्जा पाने का अधिकार नहीं
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सुप्रीम कोर्ट ने एलिमनी मांग पर जताई आपत्ति, कहा- पत्नी को पति की संपत्ति के बराबर दर्जा पाने का अधिकार नहीं

सुप्रीम कोर्ट ने पत्नी द्वारा पति की संपत्ति के बराबर एलिमनी मांगने पर नाराजगी जताई। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि पत्नी को वैवाहिक जीवन में आदी जीवनशैली के आधार पर ही गुजारा भत्ता मिलेगा, न कि पति की वर्तमान संपत्ति के अनुसार।

by WEB DESK
Dec 21, 2024, 08:29 pm IST
in भारत, दिल्ली
supreme court

भारत का सर्वोच्च न्यायालय

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नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले में पत्नी द्वारा एलिमनी की बड़ी डिमांड पर सख्त नाराजगी जताई है। महिला जज जस्टिस बी. वी. नागरत्ना ने स्पष्ट किया कि पत्नी को पति की वर्तमान संपत्ति और स्टेटस के आधार पर समान दर्जा पाने का अधिकार नहीं है। कोर्ट ने कहा कि पत्नी को केवल उसी गुजारे भत्ते का अधिकार है, जिसकी वह अपने वैवाहिक जीवन में आदी थी।

क्या है 5000 करोड़ रुपये की संपत्ति में हिस्सा मांगने का मामला

यह सुनवाई पत्नी की उस याचिका पर हो रही थी, जिसमें उसने पति की 5000 करोड़ रुपये की संपत्ति में से गुजारे भत्ते की मांग की थी।पति ने अपनी पहली पत्नी को एलिमनी के तौर पर 500 करोड़ रुपये दिए थे। कोर्ट ने दूसरी पत्नी को केवल 12 करोड़ रुपये गुजारे भत्ते के तौर पर देने का निर्देश दिया। याचिका में पति की संपत्ति और इनकम को आधार बनाकर बड़ी राशि की मांग की गई थी।

जस्टिस नागरत्ना का कड़ा रुख

सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस बी. वी. नागरत्ना ने पत्नी द्वारा पति की संपत्ति के बराबर दर्जा पाने के लिए एलिमनी की बड़ी मांग पर सख्त नाराजगी व्यक्त की और विस्तृत टिप्पणी की। उनका पूरा वक्तव्य इस प्रकार था-

1. पत्नी के अधिकार पर स्पष्टता : जस्टिस नागरत्ना ने कहा-  “पत्नी को केवल उसी गुजारे भत्ते का हक है, जिसकी वह अपने वैवाहिक जीवन में आदी थी। अगर पति तलाक के बाद अपनी संपत्ति बढ़ा लेता है या उसका आर्थिक स्तर ऊंचा हो जाता है, तो पत्नी को यह अधिकार नहीं है कि वह समान दर्जा पाने के लिए परमानेंट एलिमनी के नाम पर बड़ी डिमांड करे।”

2. एलिमनी के उद्देश्य पर टिप्पणी : उन्होंने यह भी कहा- “गुजारे भत्ते का कानून पत्नी को सशक्त बनाने, सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने और व्यक्ति की गरिमा बनाए रखने के लिए है। यह पति पर अपनी पत्नी का भरण-पोषण करने का कानूनी दायित्व स्थापित करता है।”

3. वर्तमान संपत्ति पर मांग का विरोध : जस्टिस नागरत्ना ने आगे कहा- “हमें इस प्रवृत्ति पर गंभीर आपत्ति है कि पत्नियां पति की वर्तमान संपत्ति और स्टेटस को देखकर बराबरी के लिए एलिमनी मांगती हैं। यह केवल उन मामलों में देखा जाता है जहां पति की आय अधिक होती है। परंतु जहां पति की आय कम होती है, वहां ऐसी मांगें नहीं उठाई जातीं। आय और संपत्ति के आधार पर दोहरी अप्रोच सही नहीं है।”

4. सवाल उठाने पर तल्ख टिप्पणी : जस्टिस नागरत्ना ने तल्खी के साथ कहा- “हमें आश्चर्य है कि अगर पति तलाक के बाद कंगाल हो जाए, तो क्या पत्नी इस तरह की मांग करेगी? एलिमनी का उद्देश्य पति की वर्तमान संपत्ति पर समान दर्जा दिलाना नहीं है, बल्कि पत्नी को वैवाहिक जीवन में आदी जीवनशैली का अधिकार देना है।”

5. भरण-पोषण के लिए गाइडलाइन्स : जस्टिस नागरत्ना ने एलिमनी की सीमा पर भी बात की और कहा, “हमें केवल पति की आय पर ध्यान केंद्रित नहीं करना चाहिए। पत्नी की आय, उसकी जरूरतें, आवासीय अधिकार और अन्य फैक्टर्स को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए। एलिमनी की मांग केवल पति की संपत्ति के आधार पर नहीं होनी चाहिए।”

6. कानूनी प्रक्रिया की पारदर्शिता : जस्टिस नागरत्ना ने अंत में कहा- “हमारी प्राथमिकता कानून के तहत सामाजिक न्याय और पारदर्शिता सुनिश्चित करना है। पत्नी को उसकी वास्तविक जरूरतों के अनुसार गुजारा भत्ता मिलना चाहिए, न कि पति की संपत्ति या पहले दी गई एलिमनी की तुलना के आधार पर।”

Topics: Supreme Courtसुप्रीम कोर्टLegal NewsCJI Sanjiv Khannaमहिला जज जस्टिस बी. वी. नागरत्नाएलिमनी मांगWoman Judge Justice B.V. NagarathnaAlimony demand
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