गत 15 दिसंबर को कोलकाता में श्री बड़ाबाजार कुमारसभा पुस्तकालय ने 35वें डॉ. हेडगेवार प्रज्ञा सम्मान समारोह का आयोजन किया। इसमें प्रसिद्ध संवाद लेखक एवं राष्ट्रवादी चिंतक डॉ. चंद्रप्रकाश द्विवेदी को सम्मानित किया गया। केरल के राज्यपाल श्री आरिफ मोहम्मद खान ने सम्मान-स्वरूप उन्हें एक लाख रुपए का चेक एवं मानपत्र प्रदान किया।
समारोह को संबोधित करते हुए श्री खान ने कहा कि भारतीय संस्कृति का मूल उद्देश्य है आखिरी सांस तक ज्ञान प्राप्ति में लगे रहना। गीता केवल पढ़ने के लिए नहीं है, बल्कि इसके संदेशों को जीवन में उतारने की आवश्यकता है। अत: हमारी सांस्कृतिक धरोहर गर्व करने योग्य है। डॉ. हेडगेवार जैसे व्यक्तित्व ने इसी भाव से जनमानस में चेतना जाग्रत की।
समारोह के मुख्य वक्ता और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख श्री सुनील आंबेकर ने कहा कि 1857 की क्रांति की विफलता के बाद डॉ. हेडगेवार ने राष्ट्र के प्रति समर्पित लोगों की आवश्यकता को समझते हुए 1925 में संघ की नींव रखी। उस समय इसे संभालकर रखना बड़ी चुनौती थी। उन्होंने यह भी कहा कि जब-जब हिंदू समाज राष्ट्रीयता से विमुख हुआ, देश ने विभाजन और आतंकवाद जैसी समस्याएं झेलीं, लेकिन जब भी एकजुट हुआ तो परिणाम राष्ट्र के हित में रहे।
मुख्य अतिथि श्री सज्जन कुमार तुल्स्यान ने डॉ. चंद्रप्रकाश द्विवेदी के कार्यों की सराहना करते हुए कहा कि उन्होंने भारतीय सभ्यता और संस्कृति को जीवित रखा है और उनके कार्य भारतीयता और हिंदुत्व के पर्याय हैं। विशिष्ट अतिथि और ‘पाञ्चजन्य’ के संपादक श्री हितेश शंकर ने कुमारसभा के कार्यक्रमों की सराहना की।
डॉ. चंद्र प्रकाश द्विवेदी ने कहा कि मुझे कई सम्मान मिले हैं, लेकिन डॉ. हेडगेवार प्रज्ञा सम्मान मेरे लिए सबसे बड़ा है। यह सम्मान उस विचारधारा और मार्ग का सम्मान है, जिसके साथ मैंने अपने जीवन की शुरुआत की थी। पुस्तकालय के अध्यक्ष श्री महावीर बजाज ने स्वागत भाषण दिया। कार्यक्रम का कुशल संचालन किया डॉ. तारा दूगड़ ने तथा धन्यवाद ज्ञापन किया कुमारसभा के मंत्री श्री बंशीधर शर्मा ने।
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