संभल । संभल, इन दिनों अपने इतिहास और घटनाओं के कारण चर्चा में है। हाल ही में 24 नवंबर को हुई हिंसा और एक प्राचीन मंदिर के मिलने की खबरें सुर्खियों में रहीं। लेकिन इसके साथ ही 46 साल पहले हुए 1978 के संभल दंगे की दर्दनाक कहानी फिर से लोगों के सामने आई है। इस दंगे में बनवारी लाल गोयल के अहाते में घुसकर दंगाइयों ने 24 निर्दोष हिंदुओं को बेरहमी से काटकर जिंदा जला दिया था।
क्या हुआ था 1978 में?
1978 में हुए संभल के इस दंगे ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया था।
- बनवारी लाल गोयल, जो नखासा क्षेत्र में खंडसारी के बड़े व्यापारी और साहूकार थे, के अहाते को दंगाइयों ने अपना निशाना बनाया।
- कई हिंदुओं ने उनके अहाते में शरण ली थी, क्योंकि उन्हें विश्वास था कि वहां सुरक्षित रहेंगे।
- लेकिन दंगाई ट्रैक्टर-ट्राली से दीवार तोड़कर अंदर घुसे।
- 24 हिंदुओं के हाथ-पांव काटकर उन्हें टायरों के ढेर पर जिंदा जला दिया गया।
- बनवारी लाल गोयल को भी बेरहमी से मारकर आग में झोंक दिया गया।
बेटे विनीत गोयल का दर्द
46 साल बाद, बनवारी लाल गोयल के पुत्र विनीत गोयल संभल पहुंचे।
उन्होंने खग्गूसराय में बातचीत के दौरान उस दर्दनाक घटना को याद किया। उन्होंने बताया कि कैसे उनके पिता और अन्य निर्दोष लोगों की हत्या की गई। उन्होंने उम्मीद जताई कि उस समय के दोषियों में से जो भी जीवित हैं, उन्हें योगी सरकार सजा दिलाएगी।
सीएम योगी का जिक्र
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने विधानसभा में इस सामूहिक हत्याकांड का जिक्र करते हुए बनवारी लाल गोयल की वीरता और उनके परिवार की पीड़ा को साझा किया। उन्होंने इस घटना को हिंदुओं के खिलाफ हुई अमानवीय हिंसा का उदाहरण बताया।
मंदिर और इतिहास का पुनरुद्धार
इस बीच, विनीत गोयल ने संभल में कार्तिकेय भगवान के मंदिर के दर्शन किए। उन्होंने मंदिर के मिलने को एक ऐतिहासिक घटना बताते हुए इसे हिंदू संस्कृति का प्रतीक कहा।
क्या थे 1978 के दंगे
1978 के संभल दंगे को अब तक का सबसे बड़ा सामूहिक हत्याकांड माना जाता है। यह घटना न केवल स्थानीय लोगों के लिए बल्कि पूरे देश के लिए एक काला अध्याय है।
विनीत गोयल की मांग
विनीत गोयल ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से अपील की है कि इस हत्याकांड के दोषियों को सजा दिलाई जाए। उन्होंने विश्वास जताया कि योगी सरकार इस मामले में न्याय दिलाएगी।
1978 का संभल दंगा भारतीय इतिहास का एक दर्दनाक अध्याय है। यह घटना आज भी उन परिवारों की यादों में ताजा है, जिन्होंने अपनों को खो दिया। अब सवाल यह है कि क्या इन पीड़ित परिवारों को न्याय मिलेगा और क्या दोषियों को सजा दी जाएगी।
शिवम् दीक्षित एक अनुभवी भारतीय पत्रकार, मीडिया एवं सोशल मीडिया विशेषज्ञ, राष्ट्रीय स्तर के पुरस्कार विजेता, और डिजिटल रणनीतिकार हैं, जिन्होंने 2015 में पत्रकारिता की शुरुआत मनसुख टाइम्स (साप्ताहिक समाचार पत्र) से की। इसके बाद वे संचार टाइम्स, समाचार प्लस, दैनिक निवाण टाइम्स, और दैनिक हिंट में विभिन्न भूमिकाओं में कार्य किया, जिसमें रिपोर्टिंग, डिजिटल संपादन और सोशल मीडिया प्रबंधन शामिल हैं।
उन्होंने न्यूज़ नेटवर्क ऑफ इंडिया (NNI) में रिपोर्टर कोऑर्डिनेटर के रूप में काम किया, जहां इंडियाज़ पेपर परियोजना का नेतृत्व करते हुए 500 वेबसाइटों का प्रबंधन किया और इस परियोजना को लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में स्थान दिलाया।
वर्तमान में, शिवम् राष्ट्रीय साप्ताहिक पत्रिका पाञ्चजन्य (1948 में स्थापित) में उपसंपादक के रूप में कार्यरत हैं।
शिवम् की पत्रकारिता में राष्ट्रीयता, सामाजिक मुद्दों और तथ्यपरक रिपोर्टिंग पर जोर रहा है। उनकी कई रिपोर्ट्स, जैसे नूंह (मेवात) हिंसा, हल्द्वानी वनभूलपुरा हिंसा, जम्मू-कश्मीर पर "बदलता कश्मीर", "नए भारत का नया कश्मीर", "370 के बाद कश्मीर", "टेररिज्म से टूरिज्म", और अयोध्या राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा से पहले के बदलाव जैसे "कितनी बदली अयोध्या", "अयोध्या का विकास", और "अयोध्या का अर्थ चक्र", कई राष्ट्रीय मंचों पर सराही गई हैं।
उनकी उपलब्धियों में देवऋषि नारद पत्रकार सम्मान (2023) शामिल है, जिसे उन्होंने जहांगीरपुरी हिंसा के मुख्य आरोपी अंसार खान की साजिश को उजागर करने के लिए प्राप्त किया। यह सम्मान 8 मई, 2023 को दिल्ली में इंद्रप्रस्थ विश्व संवाद केंद्र (IVSK) द्वारा आयोजित समारोह में दिया गया, जिसमें केन्द्रीय राज्य मंत्री एसपी सिंह बघेल, RSS के सह-प्रचार प्रमुख नरेंद्र जी, और उदय महुरकर जैसे गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।
शिवम् की लेखन शैली प्रभावशाली और पाठकों को सोचने पर मजबूर करने वाली है, और वे डिजिटल, प्रिंट और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सक्रिय रहे हैं। उनकी यात्रा भड़ास4मीडिया, लाइव हिन्दुस्तान, एनडीटीवी, और सामाचार4मीडिया जैसे मंचों पर चर्चा का विषय रही है, जो उनकी पत्रकारिता और डिजिटल रणनीति के प्रति समर्पण को दर्शाता है।
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