ईरान में गायिका अहमदी ने यूट्यूब पर एक वर्चुअल कॉन्सर्ट पोस्ट किया था। इस वर्चुअल कॉन्सर्ट मे वे बेपरदा दिखाई दी थीं और उसके बाद उन्हें हिरासत में ले लिया गया। उनके साथ क्या होगा, इसका अनुमान कोई भी सहज लगा सकता है।
अफगानिस्तान में धीरे-धीरे मुस्लिम महिलाएं घरों में ही कैद हो गई हैं और अब नर्सिंग की भी पढ़ाई वे नहीं कर सकती हैं, बिना पुरुष सदस्य के वह किसी पुरुष डॉक्टर को नहीं दिखा सकती हैं और साथ ही उनके पास कोई अधिकार भी नहीं रहे हैं।
इसके साथ ही कई और इस्लामिक देशों में महिलाएं पीड़ित हो रही हैं, उनके निकाह कम उम्र में हो रहे हैं और वे हिजाब आदि के मामलों पर अपने ही लोगों के बीच हिंसा का शिकार हो रही हैं। उन्हें कितने अधिकार मिले हुए हैं, यह भी शोध का प्रश्न है। एक बीवी के रूप में उनके क्या अधिकार हैं, इस पर बात नहीं होती है।
यमन से लेकर सीरिया तक, ईरान से लेकर अफगानिस्तान तक और यहाँ तक कि पाकिस्तान में भी, मुस्लिम लड़कियों के साथ तमाम तरह के दुर्व्यवहार होते हैं। आँकड़े इस बात की गवाही अपने आप देते हैं कि लड़कियों को कहाँ पर कितनी आजादी है। लड़कियां कहाँ पर खुले सिर में घूम सकती हैं, कहाँ पर वे अपने मन से जीवनसाथी चुन सकती हैं, कहाँ पर वे यह तय कर सकती हैं कि उन्हें माँ बनना है या नहीं, और कहाँ पर उन्हें खेती नहीं माना जाता है, मगर फिर भी जब मुस्लिम महिला एक्टिविस्टस कहीं पर भी धरना प्रदर्शन करती हैं तो उनमें इन महिलाओं का कोई जिक्र ही नहीं होता है।
इजरायल का विरोध अमेरिका में करने वाली ये औरतें कभी भी उन मुस्लिम महिलाओं के लिए आवाज उठाने के लिए आगे नहीं आती हैं जो अफगानिस्तान और ईरान में दमन और शोषण का शिकार हो रही हैं। कुर्दिश महिलाओं के लिए ये लोग आवाज नहीं उठाती हैं और यहाँ तक कि अमेरिका और यूरोप में भी मुस्लिमों के हाथों दमन और उत्पीड़न का शिकार हो रही मुस्लिम लड़कियों के लिए भी ये लोग आवाज नहीं उठाती हैं। इसी को लेकर इम्तियाज महमूद ने एक्स पर एक पोस्ट साझा किया, जिसमें कई मुस्लिम महिलाएं हिजाब आदि पहनकर इजरायल का विरोध कर रही थीं।
"While Muslim women and girls suffer brutal oppression under Islamic sharia laws in Gaza, Syria, Yemen, Afghanistan and Iran, Muslims women in the UK use the freedom of the western British society to serve the interests of Hamas, Islamic jihad, Hezbollah and Iran’s regime.… pic.twitter.com/uU274P7nIu
— Imtiaz Mahmood (@ImtiazMadmood) December 15, 2024
उन्होनें यह प्रश्न किया कि “यह देखा गया है कि गाजा, सीरिया, यमन, अफगानिस्तान और ईरान में इस्लामी शरिया कानूनों के तहत मुस्लिम महिलाओं और लड़कियों को क्रूर उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है, ब्रिटेन में मुस्लिम महिलाएं पश्चिमी ब्रिटिश समाज की स्वतंत्रता का उपयोग हमास, इस्लामिक जिहाद, हिजबुल्लाह और ईरान के शासन के हितों की सेवा के लिए करती हैं। ये प्रदर्शनकारी गाजा, लेबनान, सीरिया, इराक, यमन, ईरान आदि से मुस्लिम आतंकवादियों के खिलाफ खुद का बचाव करने की इजरायल की क्षमता को सीमित करने के लिए उसके खिलाफ प्रतिबंधों की मांग कर रहे हैं।
कथित उदारवादी मुस्लिम महिलाएं भी इन महिलाओं की तरफदारी करते हुए दिखाई नहीं देती हैं। ऐसे में एक प्रश्न यह उभरकर आता है कि क्या उम्माह का भाव, बहनापे की स्वाभाविक भावना से बढ़कर है? क्या मुस्लिम महिलाओं के साथ हो रही हिंसा केवल तभी हिंसा मानी जाएगी जब वह हिंसा किसी गैर-मुस्लिम के हाथों हो? वैसे भी गैर-मुस्लिमों के हाथों मुस्लिम महिलाओं का शोषण आंकड़ों में उतना भयावह है नहीं, जितना कि मुस्लिमों द्वारा मुस्लिम महिलाओं का।
कथित उदारवादी महिला एक्टिविस्ट मुत्ता निकाह पर बात नहीं करती हैं और न ही हलाला पर, न ही तीन तलाक और चार निकाह पर। जहां-जहां भी मुस्लिम महिलाएं इस प्रकार के दमन का शिकार हो रही हैं, उनपर कथित उदारवादी मुस्लिम महिलाएं एकदम मौन रहती हैं।
ईरान में जान गँवाने वाली मुस्लिम महिलाओं पर ऐसे प्रदर्शन उन महिलाओं द्वारा देखने को नहीं मिलते हैं जो गाजा को लेकर इजरायल का विरोध करती हैं। अब लोग भी प्रश्न करने लगे हैं कि ऐसा क्यों हैं? मगर इन प्रश्नों के उत्तर शायद ही वे लोग दें और शायद ही लोग खोजें, क्योंकि जबाव सभी को पता है मगर बताना कोई नहीं चाहता, खुलकर बोलना कोई नहीं चाहता है।
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