डोवल का चीन जाना अपने आप में एक महत्वपूर्ण माना जा रहा है। भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार कूटनीतिक दृष्टि से पैनी नजर रखते हैं। उनका कम्युनिस्ट देश के विदेश मंत्री से आमने—सामने बात होने को कुछ ठोस परिणाम देने वाली माना भी जा रहा है। दोनों ने ही कम से कम छह बिन्दु तलाशे हैं जिनके रास्ते कड़वाहट दूर कर रिश्ते वापस सहज बनाने की कोशिश की जा सकती है।
बीजिंग में भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोवल और चीन के विदेश मंत्रियों के बीच हुई वार्ता को दोनों देशों के बीच संबंधों को वापस पटरी पर लाने की ओर एक बड़े कदम की तरह देखा जा रहा है। दोनों पक्षों का कैलास मानसरोवर यात्रा को एक बार फिर बरास्ते तिब्बत शुरू करने और नाथू ला सीमा से आपसी व्यापार करने को लेकर सहमत होना उस ओर एक बड़ा संकेत करता है।
डोवल का चीन जाना अपने आप में एक महत्वपूर्ण माना जा रहा है। भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार कूटनीतिक दृष्टि से पैनी नजर रखते हैं। उनका कम्युनिस्ट देश के विदेश मंत्री से आमने—सामने बात होने को कुछ ठोस परिणाम देने वाली माना भी जा रहा है। दोनों ने ही कम से कम छह बिन्दु तलाशे हैं जिनके रास्ते कड़वाहट दूर कर रिश्ते वापस सहज बनाने की कोशिश की जा सकती है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग की 23 अक्तूबर को रूस के कजान में हुई औपचारिक चर्चा में विचारों के आदान—प्रदान को और व्यापक करने पर जो सहमति बनी थी उसके बाद से माहौल में सकारात्मकता का पुट दिख रहा है। इसकी पुष्टि खुद भारत और चीन के विदेश मंत्रियों ने अपनी पिछली चर्चा में की थी।
जून 2020 में पूर्वी लद्दाख में गलवान में हुए सैन्य संघर्ष के बाद से अब तनाव छीजता दिख रहा है। डोवल और वांग के बीच जिन छह सूत्रों पर रजामंदी के संकेत मिले हैं, उनमें सीमा पार सहयोग और नदी को लेकर आंकड़ों को आपस में साझा करने की बात विशेष रूप से महत्व रखती है।
भारत की ओर से सीमा विवाद पर खुले मन से चर्चा करके निष्पक्षता के साथ इसका हल निकालने की बात की गई। वास्तविक नियंत्रण रेखा पर सैन्य तैनाती और गश्त को लेकर जो समझौता हुआ है उसके बाद अब दोनों देश इस बात पर तैयार हुए हैं कि कैलास मानसरोवर यात्रा पहले की तरह तिब्बत के अपेक्षाकृत छोटे रास्ते से की जा सकती है।
भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार डोवल की इसके संबंध में व्यक्त चिंताओं को दूर करने के लिए अगर चीनी पक्ष तैयार होता है, तो यह भारत के शिवभक्तों के लिए आनंद का विषय होगा। प्रधानमंत्री मोदी खुद शिव के उपासक हैं और कैलास यात्रा का विषय उनके दिल के निकट रहा है।
चीन के विदेश मंत्री ने अपने बयान में कहा भी कि दोनों पक्ष हर स्तर पर मिलकर काम करने को राजी हुए हैं। भारत के विदेश विभाग द्वारा जारी बयान भी कहता है कि दोनों ही पक्ष धरातल पर स्थिति को शांतिपूर्ण बनाने की जरूरत पर जोर देते हैं। इससे सीमा से जुड़े मुद्दे पर एक तरफ बात चलती रहेगी लेकिन यह द्विपक्षीय संबंधों के आगे बढ़ने में कोई रुकावट नहीं बनेगी। डोवल और वांग, दोनों ने इस बात पर बल दिया कि भारत—चीन संबंधों में सौहार्द होना क्षेत्रीय तथा वैश्विक शांति में विशेष भूमिका रखते हैं।
इसी भाव को ध्यान में रखते हुए भारत और चीन पूर्वी लद्दाख में देमचोक तथा देपसांग में अपनी अपनी सेनाओं के कदम पीछे लौटाने की प्रक्रिया में जुटे हैं। इसमें प्रगति भी हुई है और संभवत: समय के साथ अप्रैल 2020 से पूर्व की स्थिति में जल्दी ही लौटा जा सकेगा।
चीन के विदेश विभाग ने भी एक बयान जारी करके कहा कि डोवल तथा वांग यी के बीच विशेष प्रतिनिधि वार्ता में हुई चर्चा सार्थक रही है। बयान आगे कहता है कि 5 साल के बाद हुई इस पहली वार्ता में दोनों पक्षों ने सीमा से जुड़े मुद्दों पर हुई प्रगति का आकलन करते हुए कहा कि इस ओर प्रयास जारी रहना चाहिए। लेकिन इस मुद्दे को आपसी संबंधों में बाधा नहीं बनने देना चाहिए।
चीन का बयान कहता है कि सीमा पर शांति और स्थिरता रहे और द्विपक्षीय संबंध आगे बढ़ते रहें, यह बहुत आवश्यक है। भारत और चीन के विशेष वार्ताकारों ने सीमा मुद्दे के हल के लिए 2005 में दोनों देशों द्वारा तय गाइडलाइन के हिसाब से इस मुद्दे को निष्पक्षता के साथ देखे जाने पर सकारात्मक रवैया दिखाया।
भारत और चीन प्रतिनिधियों के तंत्र को मजबूत बनाने के साथ ही कूटनीतिक तथा सैन्य वार्ता में समन्वय के साथ सहयोग को बढ़ाने पर सहमत हुए हैं तो यह भी संबंधों को सुधारने की तत्परता की ओर संकेत करता है। दोनों देशों के विशेष प्रतिनिधि आगे इस वार्ता को जारी रखने वाले हैं, जिसका समय आगे तय किया जाएगा। विदेश मंत्री वांग यी के अलावा डोवल चीन के उपराष्ट्रपति हान झेंग से भी मिले।
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