इंडि गठबंधन में अब दरार चौड़ी होती जा रही है। इंडि गठबंधन में शामिल दलों का आपसी मतभेद समय के साथ और भी उभरता जा रहा है। लोकसभा और कई विधानसभा चुनावों के बाद अलग-अलग मुद्दों पर इंडि गठबंधन में शामिल दलों में अपना खुद का विचार जैसे-जैसे सामने आता जा रहा है, वैसे ही अब इंडि गठबंधन का आपसी विवाद भी गहरा होता जा रहा है।
हम शुरुआत इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) के प्रयोग से करते हैं। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी का उम्मीद से अच्छा प्रदर्शन होने पर कांग्रेस पार्टी ने काफी जश्न मनाया। मगर लोकसभा चुनाव में मिले अच्छे प्रदर्शन को कांग्रेस पार्टी कई राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में नहीं दोहरा सकी और इसका पूरा खामियाजा ईवीएम पर ही उतार दिया।
लोकसभा चुनाव के बाद कई राज्यों जैसे हरियाणा, झारखंड, महाराष्ट्र और केंद्रशासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर सहित कई राज्यों में विधानसभा के उपचुनाव हुए, मगर कांग्रेस पार्टी को इन सभी चुनावों में मुंह की खानी पड़ी। महाराष्ट्र के नांदेड़ लोकसभा सीट को कांग्रेस पार्टी महज 1,457 वोटों से जीत सकी, जबकि 2024 के आम चुनाव में यह सीट कांग्रेस ने लगभग 60 हजार मतों से जीती थी। कांग्रेस पार्टी ने अपने बुरे प्रदर्शन के लिए पूरी तरह से ईवीएम को दोषी ठहराने की कोशिश की, मगर कांग्रेस यह भूल गई कि कई राज्यों में उसके सहयोगी दलों ने इसी ईवीएम से हुए चुनाव में बेहतरीन प्रदर्शन किया।
जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस पार्टी की सहयोगी और इंडि गठबंधन की सदस्य नेशनल कांफ्रेंस ने चुनाव में बहुत अच्छा प्रदर्शन किया। वहीं झारखंड में कांग्रेस पार्टी की सहयोगी झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) ने इंडि गठबंधन के तहत पूर्ण बहुमत से सरकार बनाई।
इतना ही नहीं, झारखंड और महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों के साथ अन्य राज्यों में हुए विधानसभा और लोकसभा उपचुनावों में स्थानीय दलों ने अपनी क्षमता के अनुसार प्रदर्शन किया। पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस ने सभी छह की छह विधानसभा सीटों पर उपचुनाव जीते। कम्युनिस्ट दलों ने भी केरल में अपनी राजनीतिक पकड़ के अनुरूप प्रदर्शन किया।
अब नेशनल कांफ्रेंस और तृणमूल कांग्रेस खुलकर कांग्रेस पार्टी के ईवीएम के राग का विरोध कर रही हैं। इससे इंडि गठबंधन में आपसी मतभेद और भी गहरा होता जा रहा है।
इंडि गठबंधन के घटक दल कांग्रेस पार्टी के एकतरफा अडानी विरोध को भी पचा नहीं पा रहे हैं। इंडि गठबंधन के दलों को अब यह महसूस होने लगा है कि अडानी विरोध कांग्रेस पार्टी की व्यक्तिगत खुन्नस का परिणाम है और इंडि गठबंधन के दल कांग्रेस के इस जाल से खुद को बचाना चाह रहे हैं। शरद पवार ने अडानी के मामले में राहुल गांधी और कांग्रेस पार्टी को खुली नसीहत दी है कि व्यक्तिगत विरोध नहीं होना चाहिए।
हाल के दिनों में कांग्रेस पार्टी की विश्वस्त सहयोगी राष्ट्रीय जनता दल (राजद) ने ममता बनर्जी को इंडि गठबंधन की संयोजक का पद सौंपने की मांग की है। शरद पवार की पार्टी एनसीपी ने भी ऐसी ही मांग की है। आने वाले समय में इंडि गठबंधन के कई दल इस तरह की मांग करते दिख सकते हैं।
इंडि गठबंधन के दलों की इस मांग के पीछे कांग्रेस पार्टी का खुद के लिए महत्वपूर्ण पदों पर दावेदारी है। कांग्रेस पार्टी को लोकसभा में विपक्ष के नेता की कुर्सी मिलने के बाद यह पद अपने किसी वरिष्ठ सहयोगी दल को प्रस्तावित करके देना चाहिए था। इससे कांग्रेस पार्टी का रसूख बढ़ता और साथ ही इंडि गठबंधन का अस्तित्व भी मजबूत बना रहता।
टिप्पणियाँ