हरिद्वार: क्या कांग्रेस सरकार के शासनकाल में उत्तराखंड की डेमोग्राफी बदलने की पूरी योजना बनाई गई? क्या इसकी स्क्रिप्ट देवबंद और जमीयत दिल्ली मुख्यालय में लिखी गई? ऐसे कई सवाल उत्तराखंड में हो रहे जनसंख्या असंतुलन के साथ जुड़े थे है। प्रदेश में वक्फ संपत्तियां 2 हजार से बढ़कर 5183 हो गईं। सरकारी जमीनों पर मस्जिद, मजार बनाकर उसे वक्फ बोर्ड में करवा दिया रजिस्टर।
2015 के हरीश रावत सरकार के समय यहां मलिन बस्तियों को रेगुलाइज करने की तैयारी शुरू हुई थी 2016 में इसके लिए अध्यादेश लाया गया, इसी दौरान कांग्रेस सरकार चली गई और बीजेपी सरकार ने इसके नियमितीकरण पर रोक लगा दी। रोक लगाने के पीछे कारण कोई भी बताए गए हो। लेकिन सबसे बड़ा कारण यहां मलिन बस्तियों में राजनीतिक संरक्षण में बसाए गए बाहरी प्रदेशों के मुस्लिम वोटर थे जिनसे कांग्रेस को नहीं बीजेपी को हमेशा से खतरा रहा, क्योंकि ये वोट बीजेपी को नहीं पड़ते है। ये तो थी मलिन मस्तियों के वोट बैंक की बात।
अब वक्फ बोर्ड की संपत्तियों को लेकर बहस छिड़ी हुई है, कि आखिर राज्य बनने के दौरान से लेकर अब तक इनमें ढाई गुना की वृद्धि कैसे हो गई ? वक्फ का मतलब दान में दी गई संपत्ति से होता है, तो क्या वक्फ बोर्ड को ये संपत्तियां दान में मिली? मिली तो किसने दी? कैसे दी? किन हालात में दी ? इस सवाल का जवाब कोई नहीं दे रहा। संभवतः इस सवाल का जवाब शासन स्तर से वक्फ बोर्ड से पूछा ही नहीं गया होगा।
हाल ही में नैनीताल की मस्जिद को लेकर विवाद उठा जिसमें वक्फ बोर्ड से जानकारी दी गई ये संपत्ति वक्फ बोर्ड में दर्ज है ? लेकिन, इसके क्षेत्रफल की जानकारी उसके पास नहीं है। अब संदेह यहीं से पैदा होता है कि वक्फ बोर्ड के पास पंजीकरण तो है, पंजीकरण से पूर्व इसके भू-संबंधी दस्तावेज किसी नाम थे? किसने दान में दी ? ये जानकारी सार्वजनिक नहीं की जा रही है। इन सवालों का जवाब आर टी आई एक्टिविस्ट एडवोकेट नितिन कार्की भी मांग रहे हैं। मुस्लिम वोट बैंक के खेल में देवभूमि में संवेदनशील स्थानों पर रातों रात अवैध मजारें बना दी गई। मस्जिदें और मदरसे खड़े कर दिए गए। अब पुष्कर सिंह धामी सरकार ने अवैध मजारों, मस्जिदों और मदरसों पर शिकंजा कसा तो पता चला कि विशुद्ध रूप से सनातनियोंं के देवों की भूमि उत्तराखंड में 5000 से ज्यादा वक्फ बोर्ड की संपत्तियां घोषित कर दी गई।
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यह सारा खेल हरीश रावत की कांग्रेस सरकार के समय हुआ इसलिए अब देवभूमि उत्तराखंड में डेमोग्राफी चेंज हो रही है, मुस्लिम आबादी के साथ वक्फ बोर्ड की संपत्तियों में भी अप्रत्याशित वृद्धि हो रही है। जो इस बात का सबूत है कि राज्य में बढ़ती मुस्लिम आबादी भविष्य में राजनीतिक, सामाजिक और धार्मिक समस्या पैदा करने जा रही है। वक्फ बोर्ड के आंकड़े बताते हैं कि उसके रिकार्ड में 5000 से ज्यादा वक्फ संपत्तियां दर्ज हैं। इनके अलावा भी सैकड़ों संपत्तियां ऐसी है जो रेलवे, वन विभाग, सिंचाई विभाग और राजस्व विभाग की जमीनों पर अवैध कब्जा कर बनाई हुई है लेकिन उनका उल्लेख वक्फ बोर्ड के रिकार्ड में अभी दर्ज नहीं हैं। लेकिन भविष्य में इन्हें भी वक्फ संपत्ति घोषित किया जा सकता है। इनमें मस्जिदें, मदरसें और मजारें शामिल है। उत्तराखंड में भाजपा सरकार के रहते भले ही वक्फ बोर्ड इन्हें रिकार्ड में दर्ज नहींकर पा रहा हो, लेकिन जिस दिन कांग्रेस की सरकार उत्तराखंड में होगी उस वक्त वक्फ संपत्तियोंंमें किस तेजी से वृद्धि होगी इसकी कल्पना 5000 वक्फ संपत्तियों के रिकार्ड को समझ कर की जा सकती है।
देवभूमि में वक्फ बोर्ड की संपत्तियां
देवभूमि उत्तराखंड के वक्फ बोर्ड ने केंद्रीय वक्फ बोर्ड के सामने राज्य में 5183 संपत्तियों का ब्यौरा प्रस्तुत किया है, इसके अलावा 205 संपत्तियों के मामले स्थानीय न्यायालयों में विचाराधीन होने की बात कही जा रही है। यानी 21 वर्षों में वक्फ बोर्ड की सुंपत्तियां दोगुनी हो गई हैं क्योंकि जब 2003 में जब उत्तराखंड में नारायण दत्त तिवारी के नेतृत्व वाली कांग्रेस थी तब पहली बार उत्तराखंड वक्फ बोर्ड का गठन हुआ था। उस समय वक्फ बोर्ड के पास 2078 संपत्तियां थी। ये संपत्तियां भी यूपी वक्फ बोर्ड से उत्तराखंड वक्फ बोर्ड को विरासत में मिली थी। इनमें से 450 फाइल यूपी से उत्तराखंड पहुंची ही नहीं थी। उत्तराखंड वक्फ बोर्ड की संपत्ति सूची में मस्जिद से अधिक कब्रिस्तानों की संख्या है। पहाड़ी जिलों में चमोली में 1, रुद्रप्रयाग में 1 टिहरी में 4, पौड़ी में 10, उत्तरकाशी में 1 बागेश्वर में 3, चंपावत में 6, अल्मोड़ा में 6 पिथौरागढ़ में 3 मस्जिदें और इनसे ज्यादा कब्रिस्तान होने की जानकारी सामने आई है।
नैनीताल जिले में 48 मस्जिदें, ऊधमसिंह नगर में 144, हरिद्वार जिले में सबसे अधिक 322, देहरादून जिले में 155 मस्जिदें हैं, जो कि उत्तराखंड वक्फ बोर्ड में पंजीकृत की गई हैं। सुदूर पहाड़ी जिलों में भी वक्फ बोर्ड की औकाफ (दान में दी गई) संपत्तियों की जानकारी सामने आ रही है। उत्तराखंड में 2105 औकाफ संपत्तियां हैं, जिनमें अल्मोड़ा जिले में 46, पिथौरागढ़ जिले में 11, पौड़ी में 26, सबसे अधिक हरिद्वार में 865, ऊधमसिंह नगर में 499 और देहरादून में 435 संपत्तियों पर वक्फ बोर्ड का अपना दावा है। पूरे उत्तराखंड में 773 स्थानों पर कब्रिस्तान बना दिए गए हैं, जबकि 704 मस्जिदों को वक्फ बोर्ड के अधीन बताया गया है। उत्तराखंड में वक्फ बोर्ड की सूची से बाहर अभी इतनी ही और मस्जिदों के और होने की सूचनाएं सरकार के पास हैं।
वक्फ बोर्ड के रिकार्ड में 100 मदरसे
उत्तराखंड वक्फ बोर्ड के रिकार्ड में 100 मदरसे भी देवभूमि में चल रहे हैं। जबकि, मदरसा बोर्ड की सूची में चार सौ से ज्यादा मदरसे दर्ज हैं। राज्य के भीतर 201 से अधिक मजारें वक्फ बोर्ड में सूचीबद्ध है। बताया जाता है कि अब मजारों में नमाज भी पढ़ाई जा रही है। जिन्हें धीरे-धीरे मस्जिद और फिर मदरसे का रूप ले लिया है। वक्फ बोर्ड की संपत्तियों में पूरे राज्य में 12 स्कूल और इतने ही मुसाफिरखाने पंजीकृत है, सूची में 1024 मकान और 1711 दुकानें भी हैं। 70 ईद गाह, 32 इमामबाड़े, 112 कृषि भूमि प्लाट और अन्य 253 संपत्तियां है। ऐसा माना जा रहा है कि वक्फ बोर्ड की कई संपत्तियों पर प्रभावशाली और भू माफिया का कब्जे है। उत्तराखंड वक्फ बोर्ड की स्थापना 2003 में हुई थी, तब वक्फ बोर्ड की संपत्तियों की संख्या 2078 के आसपास बताई गई थी। इनमें से 450 संपत्तियों की फाइलें यूपी से अभी तक उत्तराखंड वक्फ बोर्ड को नहीं दी है और ये विषय, एक विवाद के रूप में केंद्र सरकार तक पहुंचा हुआ है। ऐसा माना जा रहा है कि देवभूमि उत्तराखंड में पिछले 21 वर्षों में वक्फ बोर्ड की संपत्तियों की संख्या दो गुना से अधिक हो गई है। जो इस बात को प्रमाणित करता है कि देवभूमि उत्तराखंड में मुस्लिम आबादी में बेतहाशा वृद्धि हुई है।
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अभी ये आंकड़े ऐसे है जो कि वक्फ बोर्ड में दर्ज हैं। जबकि बड़ी संख्या में मुस्लिम धार्मिक स्थल, मदरसे अभी ऐसे भी हैं जो वक्फ बोर्ड में दर्ज नहीं हैं और वे सरकारी जमीनों को घेरकर या अवैध कब्जे कर बनाए गए हैं। वक्फ बोर्ड की संपत्तियों को लेकर भी संशय है कि क्या वो वास्तव में वक्फ बोर्ड की संपत्ति है, अथवा उत्तराखंड सरकार की संपत्ति है? बहरहाल देवभूमि उत्तराखंड में वक्फ संपत्तियों का तेजी से बढऩा चिंता का विषय है, राज्य में डेमोग्राफी चेंज को लेकर बहस छिड़ी हुई है। वक्फ संपत्तियों के बढ़ रहे आंकड़े भी इसी और संकेत दे रहे हैं कि देवभूमि उत्तराखंड के सांस्कृतिक देव स्वरूप के इस्लामीकरण की साजिश तो नहीं हो रही है?
सुदूर पहाड़ों में इस्लामिक षड्यंत्र
उत्तराखंड के कण-कण में देवों का वास है इसलिए इसे देवभूमि कहा जाता है। लेकिन, सुदूर पहाड़ी बस्तियों में क्या एक व्यापक षड्यंत्र के तहत इस्लामिक धार्मिक स्थलों का विस्तार किया जा रहा है? ऐसा इसलिए कहा जा रहा कि जिस तरह से वन विभाग के जंगल में सैकड़ों अवैध मजारे बनाई गई उसी तरह से क्या मस्जिदों का भी विस्तार हो रहा है? हाल ही में उत्तरकाशी मस्जिद को लेकर एक विवाद शुरू हुआ है। ऐसा कहा जा रहा है कि ये अवैध रूप से बनाई गई है। क्योंकि पहले ये घर था और मुस्लिम परिवार रहता था, लेकिन पिछले कुछ समय से यहां मुस्लिम लोग इकट्ठा होकर जुम्मे की नमाज पढऩे लगे और धीरे-धीरे इसे मस्जिद का रूप दे दिया गया। इस बारे में आरटीआई के जरिए मिली जानकारी के अनुसार, इस भूमि के दस्तावेजों में हेरा फेरी की गई है, इसलिए उत्तरकाशी में हिंदू संगठनों का आंदोलन हुआ और हालात बिगड़े।
उत्तराखंड राज्य बनने के बाद देवभूमि में बड़ी संख्या में मस्जिदें बनी है। इनमें से ज्यादातर सरकारी भूमि पर कब्जा कर बनाई गई है। देहरादून और हरिद्वार जिले में सौ से अधिक मुस्लिम धार्मिक स्थलों की संख्या ऐसी है, जिन्हें सरकारी भूमि पर अवैध कब्जा कर इमारत को विस्तार दिया गया और फिर उसे वक्फ बोर्ड में पंजीकृत करवा दिया। देहरादून, सेलाकोई, रामपुर मंडी विकास नगर, हरबर्टपुर आदि कई क्षेत्रों में यदि मस्जिदों की भूमि के दस्तावेजों की जांच की जाए तो सच सामने आ जाएगा। कुछ ऐसे मामले भी हैं जो पहले सरकारी भूमि पर कब्जे कर मदरसे बने फिर उनमें नमाज होने लगी और बाद में ये मस्जिद का आकार लेने लगी। हल्द्वानी के बनभूलपुरा में अतिक्रमण हटाने को लेकर जो बवाल हुआ उसके पीछे भी फर्जी मदरसा था, जो मलिक के बगीचे में नजूल की जमीन पर कब्जा कर बनाया गया था। लेकिन उसे मस्जिद बता कर प्रचारित किया गया।
बहरहाल उत्तराखंड की पुष्कर धामी सरकार के सामने इस तरह के प्रकरण इसलिए भी सामने आ रहे है, क्योंकि उनका साफ कहना है कि वे उत्तराखंड के देव स्वरूप को किसी भी सूरत में बदलने नहीं देंगे। सीएम धामी को लगातार खुफिया एजेंसियों की रिपोर्ट भी पहुंच रही है, कि राज्य में सरकारी भूमि पर अतिक्रमण करके डेमोग्राफी चेंज की जा रही है और यहां इस्लामिक धार्मिक स्थल बनाए जा रहे हैं। खुफिया एजेंसियों की रिपोर्ट में भी कहा गया है कि जब राज्य में वक्फ बोर्ड का गठन हुआ था तब उत्तर प्रदेश से 2078 संपत्तियां मिली थी जो अब बढ़कर 5183 हो चुकी हैं। ये इजाफा कैसे हुआ? इसका उत्तर खोजना बाकी है। क्योंकि उत्तराखंड में ही नहीं, बल्कि पूरे देश में वक्फ बोर्ड के पास असीमित अधिकार है। अभी तक वक्फ बोर्ड जिस भूमि पर अपका हक बता देता है वो उसकी हो जाती है। इसके खिलाफ वन विभाग, राजस्व विभाग और रेलवे जब तक आपत्ति करता है या अपनी भूमि खाली कराना चाहता है तब तक देर हो चुकी होती है।
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