भारत की संसद में संविधान पर हुई बहस के दौरान लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने एक बार फिर हिंदुओं को निशाने पर लिया। उन्होंने हमेशा की तरह एक हाथ में संविधान की प्रति पकड़ी और दूसरे हाथ में इस बार मनु स्मृति की प्रति पकड़ कर कहा कि देश मनु स्मृति से नहीं चल सकता। उन्होंने हाथरस मामले का हवाला देकर कहा कि बलात्कारी खुले घूमें, यह संविधान में नहीं लिखा, मगर मनुस्मृति में लिखा है।
वैसे तो राहुल गांधी को यह पता ही नहीं है कि मनु स्मृति है क्या या फिर स्मृतियां क्या होती हैं? कोई भी स्मृति एक निश्चित काल के लिए होती है। एक नहीं बल्कि कई स्मृतियां हैं। राहुल गांधी को हिंदुओं और हिंदुओं के ग्रंथों से इस सीमा तक घृणा है कि वे समाचारों पर दृष्टि ही नहीं डालते। बेटी का दुष्कर्म करने वाले पिता को वर्ष 2019 में उज्जैन में पॉक्सो अधिनियम में विशेष न्यायाधीश ने सजा सुनाते समय मनुस्मृति का श्लोक पढ़ा था। वह श्लोक है
पिताचार्य: सुह्न्माताभार्यापुत्र: पुरोहित:।
नादण्डयोनामरोज्ञास्ति य: स्वधर्मे न तिष्ठति।।
अर्थात, जो भी अपराध करे, वह अवश्य दंडनीय है। चाहे वह पिता, माता, गुरु पत्नी, मित्र या पुरोहित ही क्यों न हो? न्यायाधीश ने दोषी पिता को उम्रकैद की सजा सुनाई थी।
मनु स्मृति को लेकर तमाम बातें बार-बार कही जाती हैं। मगर यह भी बात सत्य है कि मनुस्मृति किसी भी हिन्दू परिवार के घर पर शायद ही मिले और न ही हिंदू समाज किसी नियम से बंधकर रहता है। मनु स्मृति में उस समय के अनुसार दंड विधान हैं। इस पुस्तक में दुराचारियों को लेकर कठोर से कठोर दंड की बात की गई है।
मनु स्मृति में कहां पर यह लिखा है कि बलात्कारियों को खुला घूमना चाहिए? राहुल गांधी को पढ़ना चाहिए पढ़ते नहीं हैं, यदि वे पढ़ते तो पता चलता कि बलात्कार को लेकर अत्यंत कठोर दंड मनुस्मृति में वर्णित है। पर-स्त्री गमन पर दंड है, अनिच्छुक स्त्री के साथ संबंध बनाने पर दंड है और यहां तक कि यदि कोई लड़की ही किसी लड़की को किसी भी प्रकार से दूषित करे, उसे लेकर भी दंड है।
मनु स्मृति के आठवें अध्याय में एक समलैंगिक लड़की के द्वारा यदि लड़की का शीलभंग किया जाता है तो उसे लेकर भी दंड है। श्लोक संख्या 369 में लिखा है कि यदि कोई कन्या ही दूसरी कन्या को दूषित करती है तो राजा कन्यात्व नष्ट करने वाली उस कन्या को 200 पण से दंडित करे, दुगुना (400 पण) उस दूषित कन्या के पिता से दिलवाए या दश कोड़े या बेंत से उसे दंडित करे।
मगर राहुल गांधी को शायद पढ़ने की आदत नहीं है। उन्हें यह भी नहीं पता है कि हिन्दू समाज निरंतर स्वयं को परिष्कृत करता रहता है। वह एक काल खंड के कानूनों को काल के अनुसार परिवर्तित करता है। जो अच्छा होता है, उसे सहेजता है और जो त्याज्य होता है उसे त्याग देता है, तभी हिंदुओं में एक ही विषय को लेकर तमाम ग्रंथ होते हैं। संवाद ही हिन्दू धर्म की मुख्य विशेषता है। मनुस्मृति की अच्छी बातें सहेज ली गई हैं और जो कुछ भी काल के अनुसार त्याज्य था, वह त्याग दिया गया है।
एक ही किताब से चलने वाला जड़ समाज हिन्दू समाज नहीं है। और हिन्दू समाज के लिए तो संविधान ने तमाम व्यक्तिगत और उन मामलों के लिए भी नियम बना रखे हैं, जो दूसरे समुदायों के लिए नहीं हैं। हिंदुओं को तमाम धार्मिक अधिकारों से वंचित रखा गया है।
राहुल गांधी कभी भी मुस्लिम पर्सनल लॉ के विषय में बात क्यों नहीं करते हैं, जो अपने मजहबी मामलों में संविधान की नहीं सुनता है? चार निकाह जहां पर जायज है, जबकि हिन्दू पुरुष के लिए एक ही विवाह संविधान ने तय कर रखा है। तीन तलाक, हलाला आदि मामलों पर राहुल गांधी चुप क्यों रहते हैं? यहां तक कि मुस्लिम समुदाय में जिस प्रकार से एक जाति से बाहर निकाह करने पर लड़कियों की हत्याएं होती हैं, राहुल उन सभी मामलों में चुप रहते हैं।
जब संविधान के अनुसार लड़की के विवाह की उम्र 18 वर्ष है, तो वहीं मुस्लिम पर्सनल कानून के अनुसार मुस्लिम लड़की की शादी 15 वर्ष पर हो सकती है। उत्तराधिकार, तलाक आदि के मामले संविधान के अनुसार तय न होकर मुस्लिम पर्सनल लॉ के अंतर्गत निर्धारित होते हैं। राहुल गांधी से यह प्रश्न पूछना ही चाहिए कि आखिर वे इस पर क्यों कुछ नहीं कहते हैं कि इस देश में संविधान और मुस्लिमों का विधान दोनों एक साथ कैसे चल सकते हैं? मुस्लिमों के लिए उनके मामलों के लिए उनका कानून और हिंदुओं के लिए संविधान? हिन्दू अपने विवाह जैसे धार्मिक मामलों के लिए भी संविधान पर विश्वास करता है और उसी हिन्दू समाज को लेकर राहुल गांधी मनुस्मृति दिखाकर अपमानित करते हैं?
हिन्दू समाज ने ही संविधान के प्रति अपनी अगाध आस्था का प्रदर्शन बार-बार किया है, फिर चाहे वह मंदिरों पर सरकारी नियंत्रण हो, या फिर विवाह और उत्तराधिकार कानून। प्रश्न दूसरा है और दूसरा ही होना चाहिए कि भारत में एक संविधान होते हुए भी मुस्लिम पर्सनल लॉ क्यों?
राहुल गांधी को मनु स्मृति को हाथ लेकर नहीं बल्कि मुस्लिम पर्सनल लॉ हाथ में लेकर प्रश्न करना चाहिए कि इस देश के मुस्लिमों की लड़कियों के साथ संविधान के अनुसार व्यवहार होना चाहिए अर्थात उनकी शादी 18 वर्ष पर होनी चाहिए या फिर 15 साल पर? आखिर उस समाज की लड़कियां हलाला जैसी कुरीतियों से कब आजाद होंगी? कई मुस्लिम लड़कियां इसे लेकर अपनी आवाज उठा रही हैं, राहुल गांधी उनके लिए कब आवाज उठाएंगे?
हाथरस वाले मामले पर निर्णय न्यायालय से आया है और उसमें दोषी को सजा भी हुई है। ऐसे में राहुल गांधी द्वारा इस मामले पर राजनीति करने से एक प्रश्न फिर उठता है कि क्या उन्हें भारतीय न्यायपालिका पर विश्वास नही है?
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