बांग्लादेश लिब्रेशन वॉर के दौरान भारत ने राशन भेजकर और अपनी सेना भेजकर बांग्लादेश की सहायता की। युद्ध के दौरान ही हज़ारों की संख्या में बांग्लादेशियों ने भारत में शरण ली। 3 दिसंबर को पाकिस्तान ने 11 भारतीय हवाई क्षेत्रों पर हमला कर दिया था। जिसके जवाब में भारत ने पाकिस्तान के पूर्वी और पश्चिमी क्षेत्रों पर हमला कर दिया। इसके बाद भारत सरकार ने ‘पूर्वी पाकिस्तान’ के लोगों को बचाने के लिए भारतीय सेना को पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध का आदेश दे दिया। भारत की ओर से इस युद्ध का नेतृत्व फील्ड मार्शल मानेकशॉ कर रहे थे।
पाकिस्तान के साथ इस युद्ध में भारत के 1400 से अधिक सैनिक शहीद हो गए। इस युद्ध को भारतीय सैनिकों ने पूरी बहादुरी के साथ लड़ा और पाकिस्तानी सैनिकों की एक भी न चलने दी। इस युद्ध में पाकिस्तान को भारी नुकसान हुआ। जिसके बाद यह युद्ध सिर्फ मात्र 13 दिनों में ही समाप्त हो गया। इसके बाद 16 दिसंबर 1971 को पाकिस्तानी सेना के प्रमुख जनरल ए.ए. खान नियाज़ी ने लगभग 93,000 सैनिकों के साथ भारत के सामने समर्पण कर दिया। इसी कारण से हर साल 16 दिसंबर को विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है और हर साल भारत के प्रधानमंत्री के साथ ही पूरा देश भारत के उन वीर सैनिकों को श्रद्धांजलि देता है। जिन्होंने इस युद्ध देश के लिए अपने प्राणों का बलिदान दिया था।
अप्रत्यक्ष रूप से इस युद्ध में अमरीका और सोवियत संघ दोनों महाशक्तियां शामिल हुई थीं। ये सब देखते हुए 14 दिसंबर को भारतीय सेना ने ढाका में पाकिस्तान के गवर्नर के घर पर हमला किया। भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान के खिलाफ इस युद्ध (Indo-Pak War 1971) में कई उड़ानें भरीं और एक हफ्ते के अंदर भारतीय वायु सेना के विमानों ने पूर्वी पाकिस्तान के आसमान पर अपना दबदबा बना लिया था। भारत-पाक युद्ध 1971 के पहले सप्ताह के अंत तक भारतीय वायुसेना ने लगभग पूरी तरह से हवाई वर्चस्व हासिल कर लिया था। इसका एक कारण ये भी था कि पूर्व में पूरी पाकिस्तानी वायु टुकड़ी, PAF नंबर 14 स्क्वाड्रन, तेजगाँव, कुर्मीटोला, लालमोनिरहाट और शमशेर नगर में भारतीय और बांग्लादेश के हवाई हमलों के कारण जमींदोज हो गई थी। भारतीय नौसेना के युद्धपोत आईएनएस विक्रांत के ‘सी हॉक्स फाइटर जेट’ ने चटगाँव, बरिसाल और कॉक्स बाजार पर भी हमला किया जिससे पाकिस्तान नेवी का ईस्ट विंग तबाह हो गया और पूर्वी पाकिस्तान के बंदरगाहों को प्रभावी ढंग से ब्लॉ़क कर दिया। इससे फंसे हुए पाकिस्तानी सैनिकों के बचने के सभी रास्ते भी बंद हो गए थे।
उस समय पाकिस्तान के सभी बड़े अधिकारी मीटिंग करने के लिए इकट्ठा हुए थे। इस हमले से पकिस्तान हिल गया और जनरल नियाजी ने युद्ध विराम का प्रस्ताव भेज दिया। परिणामस्वरूप 16 दिसंबर, 1971 को दोपहर के तकरीबन 2:30 बजे आत्मसमर्पण की प्रक्रिया शुरू हुई और उस समय पाकिस्तानी सेना के लगभग 93,000 सैनिकों ने आत्मसमर्पण किया था। इस प्रकार 16 दिसंबर, 1971 को बांग्लादेश का एक नए राष्ट्र के रूप में जन्म हुआ और पूर्वी पाकिस्तान, पाकिस्तान से आजाद हो गया। ये युद्ध भारत के लिए ऐतिहासिक युद्ध माना जाता है। इसीलिए देश भर में भारत की पाकिस्तान पर जीत के उपलक्ष में 16 दिसंबर को ‘विजय दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि वर्ष 1971 के युद्ध में तकरीबन 3,900 भारतीय सैनिक शहीद हो गए थे और लगभग 9,851 घायल हुए। युद्ध के 8 महीने बाद अगस्त 1972 में भारत और पाकिस्तान ने शिमला समझौता (Shimla Agreement 1972) किया। इसके अंतर्गत बंदी बनाए गए पाकिस्तानी सैनिकों को वापस पाकिस्तान भेज दिया गया था।
विजय दिवस और संघ
भारत की पराक्रमी सेना ने पाकिस्तान की सेना के 97,368 सैनिकों को आत्मसमर्पण के लिए विवश करने के गौरवशाली दिवस पर स्वयंसेवकों के बल और सामर्थ्य में वृद्धि करने हेतु संघ प्रतिवर्ष 16 दिसम्बर को प्रहार महायज्ञ का आयोजन करता है। इस दिन स्वयंसेवकों को यह स्मरण दिलाया जाता है कि महाराणा प्रताप की भुजाओं में इतना बल था कि उन्होंने तलवार के एक ही वार से बहलोल खान को जिरह-बख्तर, घोड़े सहित काट डाला।
रानी दुर्गावती युद्ध के मैदान में घोड़े की लगाम मुँह में थाम कर दोनों हाथों में तलवार लेकर उतरी थीं और शत्रुओं को नाकों चने चबवा दिए। छत्रपति शिवाजी महाराज ने अपनी तलवार के बल पर आदिलशाही और मुगलशाही से टक्कर लेते हुए हिन्दू साम्राज्य की स्थापना की थी। हम उन्हीं महान पूर्वजों के वंशज हैं। हमारी भुजाओं में वैसा ही बल चिर स्थाई रहे, हम क्षमतावान बने रहें।
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