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होम तथ्यपत्र

सरदार पटेल को भारत रत्न देने में क्यों हुई देरी ?

by WEB DESK
Dec 15, 2024, 09:00 am IST
in तथ्यपत्र
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आर.के. सिन्हा

लौह पुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल भारत के उन महान जननेताओं से थे, जिन्हें कभी उनका हक नहीं मिला। देश की स्वतंत्रता के पश्चात सरदार पटेल देश के उप-प्रधानमंत्री के साथ प्रथम गृह, सूचना तथा रियासत विभाग के मंत्री बने। सरदार पटेल को उनके निधन के दशकों बाद 1991 में भारत के सर्वोच्च राष्ट्रीय सम्मान भारतरत्न से नवाजा गया। उन्हें भारत रत्न देने में इतने साल क्यों लगे? क्या कांग्रेस का कोई नेता बताएगा कि केन्द्र की कांग्रेस सरकारों ने सरदार पटेल को भारत रत्न देने में इतना वक्त वक्त क्यों लगाया?

सरदार पटेल महान देशभक्त, दूरदर्शी एवं लोकप्रिय जननेता थे। इतने लोकप्रिय कि जब कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक प्रधानमंत्री के चुनाव के लिये बुलाई गई थी तब सारे मत सरदार पटेल के पक्ष में ही पड़े थे I मात्र एक नेहरू जी ने अपने लिये वोट डाला था पर गांधी जी ने सबके सामने पटेल को बुलाकर नेहरू का नाम प्रस्तावित करने को कहा था जो उन्होंने किया I सरदार पटेल ने किसानों के हितों के लिए जीवन भर संघर्ष किया। वे अखिल भारतीय प्रशासनिक सेवाओं के भी जनक थे। सरदार पटेल ने बारदौली में किसानों के आंदोलन का नेतृत्व किया तथा अंग्रेजों को झुकने पर मजबूर कर दिया था। अंग्रेजों ने वर्ष 1947 में भारत को स्वतंत्र तो कर दिया था परंतु, 562 से अधिक रियासतों को उनकी मर्जी पर छोड़ दिया। सरदार पटेल ने अपनी सूझबूझ से एक कश्मीर को छोड़कर सभी रियासतों को भारत के तिरंगे के नीचे विलय करवा दिया तथा अखंड भारत का निर्माण किया। उन्होंने जिस प्रकार से आजादी के बाद देश में मौजूद चुनौतियों का सामना करके राष्ट्र की एकता में अहम भूमिका निभाई उसके लिए देश हमेशा उनका कृतज्ञ रहना होगा। मात्र एक रियासत कश्मीर को नेहरू ने जिद करके अपने जिम्मे रखा और हम अभी तक उसके साथ जूझ रहे हैं I

हैदराबाद रियासत का भारतीय संघ में विलय 

बेशक, सरदार पटेल के फैसले के कारण ही हैदराबाद रियासत का भारतीय संघ में विलय 17 सितंबर, 1948 को हुआ। उससे पहले ‘ऑपरेशन पोलो’ चलाया गया। जिसके बाद ही हैदराबाद का दुष्ट नवाब घुटनों के बल पर आया था। भारत की स्वतंत्रता के बाद जब भारतीय संघ का गठन हो रहा था, तब हैदराबाद के निजाम ने भारत से विलय में आनाकानी करनी शुरू कर दी थी। हालांकि, वहां हिन्दू बहुमत में थे और वह राज्य का मुसलमान शासक था । आखिरी निजाम ओस्मान अली खान ने अपनी सेना के बल पर राज करने का फैसला किया था। निजाम ने ज्यादातर मुस्लिम सैनिकों वाली रजाकारों की सेना बनाई। सरदार पटेल चाहते थे कि हैदराबाद के निजाम खुद भारत संघ में सम्मिलित हो जायें। लेकिन निजाम के अड़ियल रवैये के कारण सरदार पटेल ने हैदराबाद में पुलिस एक्शन का फैसला किया। इस काम में सिर्फ पांच दिन लगे। इसमें करीब 40 हजार जानें गईं थी। हालांकि जानकार ये आंकड़ा दो लाख से भी ज्यादा बताते हैं।

भारतीय प्रशासनिक सेवाओं के जनक

सरदार पटेल भारत की भारतीय प्रशासनिक सेवाओं के जनक भी थे। राजधानी के सिविल लाइंस पर स्थित मेटकाफ हाउस का लौह पुरुष सरदार पटेल से एक बेहद करीबा नाता रहा है। इधर ही सरदार पटेल ने 21 अप्रैल, 1947 स्वतंत्र होने जा रहे भारत के नौकरशाहों को सुराज के महत्व पर संबोधित किया था। अपने भाषण में उन्होंने सिविल सेवकों को भारत का स्टील फ्रेम कहा। इसका मतलब यह था कि सरकार के विभिन्न स्तरों पर कार्यरत सिविल सेवक देश की प्रशासनिक व्यवस्था के सहायक स्तंभों के रूप में कार्य करते हैं। इसलिए वर्ष 2006 से 21 अप्रैल को राष्ट्रीय नागरिक सेवा दिवस के रूप में मनाया जाता है| इस दिन लोक प्रशासन में विशिष्टता के लिए प्रधानमंत्री पुरस्कार भी देते हैं।

जब निधन हुआ, तब बैंक खाते में सिर्फ 260 रुपये थे

सरदार पटेल सदैव देशहित में फैसले लेते थे। वे ईमानदारी की मिसाल थे। उनके पास खुद का मकान भी नहीं था। 15 दिसंबर, 1950 को जब उनका निधन हुआ, तब उनके बैंक खाते में सिर्फ 260 रुपये थे। सरदार पटेल 1, एपीजे अब्दुल कलाम रोड (पहले औरंगजेब रोड) पर स्थित एक निजी बंगले के एक हिस्से में रहते थे। यह बंगला था बनवारी खंडेलवाल का। वे सरदार पटेल के मित्र थे। सरदार पटेल ने इस बंगले में रहते हुए ही देश को आजादी मिलने के बाद 562 रियासतों का भारत में विलय करवाया। यहां पर ही रहते हुए उन्होंने हैदराबाद रियासत में पुलिस एक्शन की रणनीति अपने सलाहकारों के साथ मिलकर बनाई थी।

पिता-पुत्री की जोड़ी भारत के स्वतंत्रता संग्राम में अद्वितीय जोड़ी थी

सरदार पटेल के साथ दिल्ली में उनकी पुत्री मणिबेन पटेल भी रहती थीं। सरदार पटेल की बेटी और जवाहर लाल नेहरू-इंदिरा गांधी की तरह ही सरदार पटेल-मणिबेन पिता-पुत्री की जोड़ी भारत के स्वतंत्रता संग्राम में अद्वितीय जोड़ी थी। मणिबेन ने सुखी जीवन को छोड़कर अपने पिता के पदचिह्नों पर चलने में जीवन का अर्थ देखा। जब तक सरदार पटेल जीवित रहे, मणिबेन ने उनकी निरंतर सेवा की। उनकी आशाओं और निराशाओं, दुखों और खुशियों को बेहद करीब से देखा। सरदार की मृत्यु के बाद, मणिबेन राजनीति में सक्रिय हुईं और लगभग तीन दशकों तक एक सांसद के रूप में समाज सेवा करती रहीं। इस दौरान सादगी के गांधीजी-सरदार पटेल से मिले संस्कारों का आजीवन पालन किया।

शिला पट्ट तक लगाने की किसी ने कोशिश नहीं की

अफसोस कि जिस घर में रहते हुए आजाद भारत के इतिहास से जुड़े इतने अहम फैसले सरदार पटेल ने लिए, उस स्थान के बाहर कोई शिला पट्ट तक लगाने की किसी ने कोशिश नहीं की, ताकि देश की युवा पीढ़ी को पता चलता कि भारत के लिए सरदार पटेल का दिल्ली का घर कितनी अहमियत रखता है। गांधी जी के भी विश्वासपात्र रहे थे सरदार पटेल। गांधी जी 2 अक्टूबर 1947 को अपने अंतिम जन्म दिन पर राजधानी के तीस जनवरी मार्ग पर स्थित बिड़ला हाउस में थे। उन्होंने उस दिन उपवास, प्रार्थना और अपने चरखे पर अधिक समय बिताकर मनाया। वे उस दिन बहुत निराश और असहाय थे। देश की तब की परिस्थितियों के कारण गांधीजी अकेले और अलग-थलग महसूस करने लगे थे। गांधीजी की निराशा स्पष्ट थी । उस दिन उनसे सरदार पटेल भी मिलने आए थे। गांधी जी ने सरदार पटेल से खुलकर बात की और उनसे पूछा, “मैंने ऐसा क्या अपराध किया है कि मुझे यह दुखद दिन देखने के लिए जीवित रहना पड़ रहा है?” सरदार पटेल की बेटी मणिबेन पटेल ने कहा, “हम वहां उत्साह के साथ गए थे; लेकिन हम भारी मन से लौट आये।” गांधी जी से 30 जनवरी 1948 को भी मिलने वाले अंतिम शख्स सरदार पटेल ही थे। लेकिन, पटेल का त्याग और गांधी के अत्यधिक नेहरू प्रेम का खामियाजा जो देश ने भुगता वह तो सबको पता है ही !

(लेखक, वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं। लेख -साभार आर्काइव)

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