इंडि गठबंधन अब एक कदम आगे बढ़ते हुए महत्वपूर्ण निर्णय लेने की ओर बढ़ रही है। अब कांग्रेस पार्टी को इंडि गठबंधन किनारे लगाते हुए नए नेता की खोज में लग गई है। अभी तक सबसे बड़ी पार्टी होने के नाते कांग्रेस पार्टी इंडि गठबंधन का स्वाभाविक नेतृत्व कर रही थी। कांग्रेस पार्टी की सबसे बड़ी ग़लतफ़हमी थी कि उसे लगता था कि इंडि गठबंधन के अन्य दल उनके अपने भाजपा विरोध के कारण उनके नेतृतव में काम करने को विवश रहेंगीं।
समाजवादी पार्टी के नेता रामगोपाल यादव और तृणमूल कांग्रेस के कई नेताओं ने इंडि गठबंधन के अंतर्गत राहुल गांधी और कांग्रेस पार्टी के खिलाफ खुली बगावत का ऐलान कर दिया है। कांग्रेस पार्टी के लिए सपा का यह संदेश उपचुनाव में ही मिल गया था, जब कांग्रेस पार्टी को उत्तर प्रदेश में सपा ने एक भी सीट नहीं दी थी। पश्चिम बंगाल में छह सीटों पर होने वाले उपचुनाव में तृणमूल कांग्रेस का सीधा मुकाबला भाजपा से रहा और कांग्रेस पार्टी और कम्युनिस्ट दलों को अपने वजूद बचाने के लिए भी मशक्कत करनी पड़ रही है।
कांग्रेस पार्टी ने अपने सहयागियों के बल पर लोकसभा में अपने सीटों की संख्या बढ़ाने में सफल अवश्य रही। पार्टी अपनी सीट 52 से 99 तक ले जाने में अवश्य सफल रही मगर वह यह भूल गई कि कांग्रेस की राजनीतक जमीन नहीं बढ़ी है।
लोकसभा चुनाव जीते दूसरे पायदान सीधी लड़ाई
2014 44 224 268
2019 52 209 261
2024 99 168 267
कांग्रेस पार्टी का विगत तीन लोकसभा चुनावों में 261 से 268 सीटों पर ही सीधा मुकाबला रहा। मगर 2024 में नेता विपक्ष का पद प्राप्त करने के बाद कांग्रेस पार्टी अपने इंडि गठबंधन के सहयोगियों के साथ बुरा बर्ताव करने लगी। लोकसभा चुनाव के बाद होने वाले राज्यों के विधानसभा चुनावों और उपचुनावों में कांग्रेस पार्टी ने अपने सहयोगियों के कनिष्ठ पार्टी होने का आचरण दर्शाने लगी। कांग्रेस पार्टी का 99 सीट जीतने के बाद अभिमान सातवें आसमान पर पहुंच गया और वो अपने सहयोगियों का तिरस्कार करने लगी।
कांग्रेस ने हरियाणा चुनाव में आम आदमी पार्टी के साथ सीट साझा करने से इंकार कर दिया। जम्मू और कश्मीर विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने अपनी ताकत से लगभग दुगुनी सीट लेकर इंडि गठबंधन को भरसक कमजोर ही किया। जम्मू कश्मीर में कांग्रेस पार्टी की सहयोगी नेशनल कांफ्रेंस के उमर अब्दुल्लाह ने कांग्रेस पार्टी को कमजोर तरीके से चुनाव लड़ने का आरोप लगाया। राहुल गाँधी ने अपना चुनावी प्रचार जम्मू क्षेत्र में करने के बदले नेशनल कांफ्रेंस का मजबूत गढ़ कश्मीर घाटी में करके अपने को हार के दंश से बचने का भरसक प्रयास किया। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस पार्टी का रवैया अपने सहयोगियों के प्रति नम्र नहीं बल्कि जबरदस्ती का रहा।
यद्यपि कांग्रेस पार्टी ने ममता बनर्जी को मनाने की पूरी कोशिश की है। ममता बनर्जी को खुश करने वास्ते कांग्रेस पार्टी ने अपने पश्चिम बंगाल प्रदेश अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी को हटा दिया। इसके बावजूद भी ममता बनर्जी का कांग्रेस पार्टी के प्रति नजरिया नम्र नहीं हुआ और तृणमूल कांग्रेस ने कांग्रेस पार्टी के खिलाफ बगावत का बिगुल बजा दिया।
अगर हम इंडि गठबंधन के अंदर इस बगावत पर गौर करे तो पाते हैं कि यह कांग्रेस पार्टी नहीं वरन गांधी परिवार के खिलाफ बिगुल का स्वर हैं। गांधी परिवार ने सबको गलफत में रखकर राहुल गांधी को विपक्ष का नेता बना दिया। गाँधी परिवार ने वरिष्ठ नेता और पिछले संसद में पार्टी के नेता अधीर रंजन चौधरी की हार का जश्न मनाया, क्योंकि अगर वो अपना चुनाव जीत गए होते तो गाँधी परिवार को मजबूरन उनको विपक्ष का नेता नियुक्त करना पड़ता। इतना ही नहीं बल्कि असम के धुबरी लोकसभा सीट से देश में सबसे अधिक मतों से विजयी रकीबुल हुसैन को कांग्रेस पार्टी ने संसदीय दल की कोई भी महत्वपूर्ण पद नहीं दिया हैं। रकीबुल हुसैन के एकलौते जीत का अंतर कांग्रेस पार्टी के एक तिहाई से अधिक सांसदों की जीत के अंतर के जोड़ से भी अधिक है।
कांग्रेस पार्टी ने रकीबुल हुसैन को कोई भी पद नहीं दे रही हैं क्योंकि कांग्रेस पार्टी को लालच है कि आने वाले समय में कांग्रेस पार्टी बदरुद्दीन अजमल की पार्टी से असम में गठबंधन करेगी। रकीबुल हुसैन ने रिकॉर्ड मतों से बदरुद्दीन अजमल को ही हराया है। बदरुद्दीन अजमल को खुश करने वास्ते कांग्रेस पार्टी रकीबुल हुसैन की राजनीतिक क्षमता की बलि ले रही है। कांग्रेस संसदीय दल में शशि थरूर सहित कई सांसद हैं जो राहुल गांधी से प्रभावी ढंग से पार्टी का पक्ष संसद और जनता के बीच पार्टी की बात को रख सकते थे। अगर गाँधी परिवार से इतर कोई व्यक्ति विपक्ष का नेता होता तो आज इंडि गठबंधन में इस तरह का संकट नहीं होता।
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