नई दिल्ली । विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर ने मंगलवार को लोकसभा में भारत-चीन संबंधों पर विस्तार से बयान दिया। उन्होंने कहा कि चीनी कार्रवाई के चलते सीमावर्ती क्षेत्रों में शांति भंग होने के कारण भारत-चीन संबंध 2020 के बाद से सामान्य नहीं रहे थे। हमारे निरंतर राजनयिक प्रयासों से हाल ही में संबंधों में कुछ सुधार आया है। सीमा क्षेत्रों में शांति और सौहार्द्र की बहाली ही दोनों देशों के रिश्तों को सामान्य बनाने की पहली शर्त है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि भारत और चीन को एलएसी (वास्तविक नियंत्रण रेखा) का सख्ती से पालन और सम्मान करना चाहिए। किसी भी पक्ष को यथास्थिति को एकतरफा बदलने का प्रयास नहीं करना चाहिए।
उन्होंने कहा कि सीमा से जुड़े मुद्दों के समाधान के लिए निष्पक्ष, उचित और पारस्परिक रूप से स्वीकार्य ढांचे पर पहुंचने के लिए द्विपक्षीय चर्चाओं के माध्यम से चीन के साथ जुड़ने के लिए भारत प्रतिबद्ध है। दोनों देशों के बीच कुछ क्षेत्रों के बारे में वास्तविक नियंत्रण रेखा को लेकर समझ का अभाव है।
सीमा विवाद सुलझाने के हालिया प्रयास
चीन के कब्जे और ऐतिहासिक संदर्भ
विदेश मंत्री डॉ. जयशंकर ने सदन को याद दिलाया कि- चीन ने अक्साई चिन के 38,000 वर्ग किमी क्षेत्र पर अवैध कब्जा किया हुआ है।1963 में पाकिस्तान ने 5,180 वर्ग किमी भारतीय क्षेत्र चीन को अवैध रूप से सौंप दिया। उन्होंने बताया कि सीमा विवाद के समाधान के लिए कई दशकों से बातचीत चल रही है, लेकिन दोनों पक्षों के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) को लेकर स्पष्टता का अभाव है।
सेना और कूटनीति की भूमिका
विदेश मंत्री जयशंकर ने भारतीय सशस्त्र बलों की तारीफ करते हुए कहा कि कोविड और रसद संबंधी चुनौतियों के बावजूद सेना ने चीनी तैनाती का प्रभावी जवाब दिया। उन्होंने यह भी कहा कि सीमा विवाद का समाधान निष्पक्ष, उचित और पारस्परिक रूप से स्वीकार्य ढांचे के तहत होना चाहिए।
विदेश मंत्री ने जोर देकर कहा कि भारत और चीन के बीच संबंधों को सामान्य बनाने के लिए सीमा पर शांति और स्थिरता अनिवार्य है। हाल की चर्चाओं से संबंधों में प्रगति के संकेत मिले हैं, लेकिन यह प्रगति स्थायी तभी हो सकती है जब सीमा विवाद का निष्पक्ष समाधान किया जाए।
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