विश्लेषण

दिल्ली विधानसभा चुनाव में मुस्लिम मतों की बढ़ती भूमिका

Published by
अभय कुमार

दिल्ली विधानसभा चुनाव में मुस्लिम बाहुल्य सीटों पर अत्यधिक मतदान मुस्लिम मतदाताओं के जोश वो उनकी भाजपा को हारने की उत्कंठा को दर्शाता है। विगत 2020 के विधानसभा चुनाव में दिल्ली विधानसभा चुनाव में सबसे अधिक मतदान प्रतिशत को देखें तो मटिया महल, बल्लीमारान, ओखला, सीलमपुर, बाबरपुर और मुस्तफाबाद की सीटें सबसे ऊपर आती हैं। ये सभी मुस्लिम बाहुल्य  विधानसभा की सीटें हैं। ये सीटें अधिक मतदान प्रतिशत के लिए दिल्ली के अन्य विधानसभा सीटों के लिए एक उदाहरण की तरह हैं। ये सीटें लगभग हर विधानसभा चुनाव में अधिकतम मतदान के लिए सुर्ख़ियो में रही हैं।

2020 विधानसभा चुनाव में ये सीटें मतदान प्रतिशत में क्रमवार रही

सीट                    2020        
बल्लीमारान          71.64
सीलमपुर              71.42
गोकलपुर (सु )      70.92
मुस्तफाबाद         70.75
मटिया महल        70.43
आम आदमी पार्टी के चुनावी मैदान में आने के बाद मुस्लिम मतदाताओं का रुख एकदम से कांग्रेस पार्टी को छोड़कर आम आदमी पार्टी की और मुड़ गया। मुस्लिम बाहुल्य सीटों पर एक बड़ा परिवर्तन देखा गया कि जिन सीटों पर कांग्रेस पार्टी 2013  तक भाजपा से बड़े अंतर से चुनाव जीतती थी, उन्ही सीटों पर कांग्रेस पार्टी का बुरी तरह से जमानत जब्त होने लगी है।       ओखला विधानसभा की सीट पर कांग्रेस पार्टी 1998, 2003, 2008 और 2013 के विधानसभा चुनाव में लगातार कांग्रेस पार्टी चुनाव जीतती थी। लेकिन, 2015 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी ना इस सीट से सिर्फ चुनाव हारी, बल्कि एक तिहाई वोटों के साथ तीसरे पायदान पर खिसक जाती है।

मटिया महल विधानसभा की सीट जो की चांदनी चौक लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा है। उस पर 1993 से लगातार पांच बार शोएब इक़बाल आसानी से अलग-अलग पार्टियों से जीत दर्ज़ करते हैं। इन दलों में जनता दल, देवगौड़ा की पार्टी जनता दल (सेक्युलर), जनता  दल  (यूनाइटेड) शामिल हैं। मगर 2015 का विधानसभा चुनाव इसी सीट से आम आदमी पार्टी के असीम अहमद खान के बुरी तरह हार जाते हैं। फिर 2020 का चुनाव शोएब इक़बाल आम आदमी पार्टी से लड़कर पूरे दिल्ली विधानसभा की सभी सीटों में सबसे अधिक 75.96  प्रतिशत मत प्राप्त कर चुनाव जीतते हैं। प्रतिशत और कुल पड़े मतों के हिसाब से शोएब इक़बाल को 2020 में 2015 चुनाव के मुकाबले तीन गुना मत प्राप्त हुआ।

बल्लीमारान विधानसभा सीट से कांग्रेस के दिल्ली के वरिष्ठ नेता हारुन युसूफ 1993 से लगातार पांच बार 2013 तक अच्छे मतों के अंतर से चुनाव जीते थे। लेकिन, 2015  में अपने परम्परागत सीट से युसूफ आप के इमरान हुसैन से बड़े मतों के अंतर से चुनाव हार जाते हैं। 1993  से 2013 तक कभी भी चुनाव नहीं हारने वाले हारुन युसूफ की 2015 विधानसभा चुनाव में जमानत तक जब्त हो गई थी। उनके मत प्रतिशत में 22 प्रतिशत से भी अधिक की कमी आई। 2020 के विधानसभा चुनाव में हारून युसूफ का मत प्रतिशत घटकर पांच से भी नीचे चला जाता हैं।

सीलमपुर विधानसभा सीट से चौधरी मतीन अहमद 1993 से लगातार पांच बार विधायक बने। इसमें वो 1993 में जनता दल, 1998 में निर्दलीय और फिर कांग्रेस पार्टी से 2003, 2008 और 2013 में बड़े मतों के अंतर से चुनाव जीते थे। मगर 2015 और 2020 में आम आदमी पार्टी के अलग-अलग उम्मीदवारों से बुरी तरह चुनाव हार जाते हैं। चौधरी मतीन अहमद का आखिरी 2020 विधानसभा चुनाव में जमानत तक जब्त हो जाता हैं। मुस्तफाबाद विधानसभा की सीट का गठन 2008 के परिसीमन में किया गया। प्रथम दो विधानसभा चुनावों में इस सीट से चुनाव पार्टी के हसन अहमद चुनाव जीतते हैं। मगर 2015 में कांग्रेस पार्टी चुनाव हारती हैं और 2020 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी का मत प्रतिशत घटकर 2.89  प्रतिशत तक आ जाता है।

दिल्ली के विधानसभा चुनावों में मुस्लिम बाहुल्य सीटों पर अधिक मतदान सिर्फ यही तक सीमित नहीं है। बल्कि, मुस्लिम बहुल सीटों पर अधिक मतदान देशव्यापी प्रचलन है। विगत तीन लोकसभा चुनाव में असम के धुबरी लोकसभा सीट पर सबसे अधिक 2014 में 88. 36, 2019 में 90.66 और 2024 में 92.08 प्रतिशत मतदान हुआ था। बिहार में 2024 के लोकसभा चुनाव में मुस्लिम बहुल सीमांचल की चार सीटें पूरे राज्य में मतदान में प्रथम चार सीटों में शामिल थी। ये सीटें हर लोकसभा चुनाव में बिहार में मतदान प्रतिशत में सबसे आगे ही रहती हैं। बिहार में 2024 के लोकसभा चुनाव में सर्वाधिक मतदान के क्रम में ये सीटें थी कटिहार, सुपौल, पूर्णिया और किशनगंज थी। वहीं उत्तर प्रदेश में 2024 के लोकसभा चुनाव में मत प्रतिशत के मामले में मुस्लिम बाहुल्य सहारनपुर दूसरे और अमरोहा चौथे पायदान पर थी। 2019 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में अमरोहा मत प्रतिशत में मामले में प्रथम पायदान पर था।

इन उद्धरणों से स्पष्ट हैं कि मुस्लिम समुदाय अपने मतदान के प्रति सबसे ज्यादा सक्रिय होते हैं। 2014 के लोकसभा चुनावों के बाद भाजपा के उभार के बाद वे और भी सक्रियता से मतदान कर रहे हैं। धुबरी लोकसभा सीट इसका ज्वलंत उदाहरण है, जहाँ 2009 में इस सीट पर 76. 31 मतदान हुआ था। वहीं 2014 में 88.36, 2019 में 90.66 और 2024 में 92.08 प्रतिशत मतदान हुआ। 2009 की अपेक्षा 2014 में 12 प्रतिशत मतदान का उछाल एक बड़ा राजनीतिक संकेत है।

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