केरल के अर्नाकुलम जिले में स्थित मुनंबम गांव पर वक्फ बोर्ड के दावे के खिलाफ ईसाई बहुल गांव के लोग लगातार प्रदर्शन कर रहे हैं। जिसके करीब एक माह से अधिक के समय के बाद अब केरल सरकार ने इस मामले की जांच के लिए न्यायिक आयोग को गठन कर दिया है।
रिपोर्ट के मुताबिक, सीएन रामचंद्रन नायर की अध्यक्षता में गठित न्यायिक आयोग के पास ये जिम्मेदारी होगी को वो तीन माह के भीतर वर्तमान हालात, सीमा और स्थिति की पहचान और उसकी जांच करके सरकार को अपनी रिपोर्ट पेश करेगा। इसके साथ ही केरल सरकार ने ये भी कहा है कि वैध दस्तावेजों वाले लोगों को उनकी जमीनों से बेदखल नहीं किया जाएगा। साथ ही वक्फ बोर्ड को भी निर्देशित किए जाने की बात पी विजय़न की वामपंथी सरकार कर रही है।
इस बीच लोगों ने वामपंथी सरकार पर न्यायिक आयोग का गठन करके इस मामले सुलझाने की बजाय और लंबा खींचने की कोशिश करने का आरोप लगाया है। आरोप है कि केरल में वामपंथी सरकार की ये प्रथा सी बन गई है कि जब वो किसी मामले पर फंसती नजर आती है तो न्यायिक आयोग का गठन कर देती है। केरल का इतिहास रहा है कि इन न्यायिक आयोगो ने विवादों को कई बार तो वर्षों तक खींचा जाता है।
क्या है पूरा मामला
गौरतलब है कि दो माह पहले अक्तूबर में केरल वक्फ बोर्ड ने अर्नाकुलम जिले के अंतर्गत आने वाले तटीय गांव मुंनबम के चेराई गांव पर अपना दावा ठोंक दिया था। चेराई गांव मछुआरों का एक खूबसूरत गांव है, जो अपने समुद्र तटीय रिसॉर्ट्स के कारण एक प्रमुख पर्यटक आकर्षण बना हुआ है। लगभग 610 परिवारों की 410 एकड़ भूमि को वक्फ बोर्ड अपना बता रहा है।
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क्या है विवाद
रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 1902 में त्रावणकोर के राजा ने गुजरात से केरल पहुंचे अब्दुल सत्तार मूसा पर दया दिखाते हुए 464 एकड़ जमीन दी थी। वो यहां मछली पकड़ने के लिए आया हुआ था। कहा जा रहा है कि 4 दशकों में समुद्री कटाव के कारण राजा की दी गई अधिकांश भूमि नष्ट हो गई। 1948 में सत्तार के उत्तराधिकारी सिद्दीकी सेठ ने जब जमीन की रजिस्ट्री की तो उसमें स्थानीय मछुआरों की जमीन भी शामिल थी।अब उसी जमीन पर वक्फ बोर्ड अपना दावा ठोंक रहा है।
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