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लोक चिंतन की धारा

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भारत में विभिन्न क्षेत्रों की अलग—अलग भाषाएं, बोलियां, अलग वेशभूषा अलग रीति- रिवाज हैं, लेकिन इन सभी को जोड़ने वाली एक कड़ी भारतीय संस्कृति और पंरपरा।

भारतीय लोक विचार, लोक व्यवहार, लोक व्यवस्था के लोकावलोकन और लोक बोध के लक्ष्य से लोक विषयक चिंतकों का महाकुंभ व विराट परिसंवाद ‘लोकमंथन 2024’ इस बार 21 से 24 नवंबर तक महारानी रुद्रमा देवी की पवित्र भूमि भाग्यनगर (हैदराबाद) के शिल्पकला वेदिका प्रांगण में आयोजित किया गया।

प्रज्ञा प्रवाह और प्रज्ञा भारती द्वारा हर दो वर्ष में आयोजित होने वाले इस संगम में देश भर से विभिन्न विचारक, शिक्षाविद्, कलाकार, विद्वतजन और विशेषज्ञ एक मंच पर एकत्रित होते हैं ताकि राष्ट्र की समृद्ध परंपराओं और उनकी समकालीन प्रासंगिकता पर सार्थक संवाद किया जा सके।

राष्ट्र सर्वोपरि की भावना से प्रेरित तथा भारतीय समाज में व्याप्त कृत्रिम विभाजनों को पाटने और विविध चितंन, परंपरा एवं व्यवस्था वाले लोकमानस के मध्य संवाद, समन्वय व सहकार के माध्यम से एकात्मता का भाव भरने वाले चिंतकों तथा विद्वतजनों के इस सम्मेलन में कुल आठ सत्र थे।

इनके विषय थे- लोक जीवन दृष्टि, लोक जीवन में विज्ञान, लोक साहित्य, भारतीय लोक चेतना में पर्यावरण, लोक अर्थशास्त्र, लोक की सर्वसमावेशी व्यवस्था, लोक सुरक्षा एवं न्याय तथा विकास की लोक अवधारणा एवं प्रक्रिया। इसमें प्रदर्शनी भी लगाई थी।

सम्मेलन में मुख्य अतिथि राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू तथा विशिष्ट अतिथि के रूप में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत, तेलंगाना के राज्यपाल जिष्णु देव वर्मा, केंद्रीय कोयला व खनन मंत्री जी. किशन रेड्डी, तेलंगाना सरकार की प्रतिनिधि तथा पंचायती राज व ग्रामीण विकास मंत्री सीताक्का दानसारी अनसूया, प्रज्ञा प्रवाह के राष्ट्रीय संयोजक जे. नंदकुमार, प्रज्ञा भारती के अध्यक्ष टी. हनुमान चौधरी उपस्थित रहे।

‘राष्ट्र सर्वोपरि की भावना का संचार बेहद अनिवार्य’

 

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