देहरादून: देवभूमि उत्तराखंड में सुदूर पहाड़ी क्षेत्रों में भी वक्फ बोर्ड की संपत्तियां कैसे बन गई ? क्या किसी सोची समझी साजिश के तहत कांग्रेस की सरकार में इन्हें पंजीकृत किया गया ? ऐसा जानकारी में आया है कि ज्यादातर मामलों में सरकारी भूमि पर कब्जा कर मस्जिद, मदरसे, ईदगाह कब्रस्तान बनाए गए और फिर उन्हें वक्फ बोर्ड में पंजीकृत कर दिया गया। जिसके बाद से इन संपत्तियों को किसी भी प्रशासनिक अधिकारी ने खाली करवाने अथवा अपने कब्जे में लेने का साहस नहीं जुटाया।
उल्लेखनीय है देवभूमि उत्तराखंड में मुस्लिम आबादी के साथ-साथ वक्फ बोर्ड की संपत्तियों में भी अप्रत्याशित वृद्धि हो गई है। जो कि इस बात का सबूत है कि राज्य में बढ़ती मुस्लिम आबादी भविष्य में राजनीतिक सामाजिक समस्या पैदा करने जा रही है। अभी ये वक्फ बोर्ड के आंकड़े हैं, इनके अलावा भी सैकड़ों संपत्तियां ऐसी भी हैं जो कि सरकारी जमीनों पर कब्जा कर बनाई हुई हैं और उनका जिक्र वक्फ बोर्ड की सूची में किया गया है।
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देवभूमि उत्तराखंड के सनातन क्षेत्र में 5 हजार से अधिक वक्फ बोर्ड की संपत्तियों का जिक्र सामने आया है। जानकारी के अनुसार उत्तराखंड वक्फ बोर्ड ने केंद्रीय वक्फ बोर्ड के सम्मुख राज्य में 5183 संपत्तियों का ब्यौरा प्रेषित किया है, इसके अलावा 205 संपत्तियों के मामले स्थानीय न्यायालय में विचाराधीन होने की बात भी कही जा रही है। कहा जा रहा है जब से धामी सरकार आई है उसके बाद दर्जनों ऐसे अवैध कब्जे हैं जिनमें मजार, मदरसे आदि धार्मिक संरचनाएं शामिल हैं, जो कि सरकारी भूमि पर है और कब्जेदारों को इन्हें खाली करवाने का भय सता रहा है। इसलिए कई फाइलें वक्फबोर्ड में पंजीकरण के लिए विचाराधीन हैं। ये बेशकीमती जमीनों पर अवैध कब्जे हैं। हल्द्वानी बनभूलपुरा, नैनीताल, भवाली, उधम सिंह नगर, कोटद्वार, देहरादून, हरिद्वार रुड़की क्षेत्र की कई ऐसे सरकारी भूमि पर अवैध कब्जे हैं, जिन्हे कांग्रेस शासनकाल में वक्फ बोर्ड की संपत्तियों में सूचीबद्ध किया गया था।
राज्य की वनभूमि में बहुत सी मजारे ऐसी हैं जो कि पिछले पंद्रह साल में बनाई गई और उन्हें वक्फ संपत्ति बताया गया जैसे कालसी वन प्रभाग में भूरे शाह की मजार, भूरे शाह नाम की कई फ्रेंचाइजी मजारें धामी सरकार ध्वस्त कर चुकी है। ऐसे ही कालू सैय्यद की एक फ्रेंचाइजी मजार अल्मोड़ा और नैनीताल जिले में है। ऐसे दर्जनों मजारे हैं जो कि वक्फ बोर्ड में दर्ज करवाई गई है।
वन विभाग ने अपनी भूमि पांच सौ से अधिक अवैध कब्जे जो कि फर्जी मजारें थी, उन्हें पिछले साल में एक अभियान में हटाया था। ये मजारे एक दिन वक्फबोर्ड में दर्ज हो जानी थी। ऐसे ही पावन गंगा नगरी ऋषिकेश के ग्रामीण क्षेत्र में लोगों के घर आंगन में बनी मजारें भी एक दिन वक्फ बोर्ड में शामिल हो जानी थी। कहा जा रहा है कि सनातन नगरी हरिद्वार कुंभ क्षेत्र की मजारें भी इसी योजना का हिस्सा है। इस षडयंत्र का हिस्सा है।
21 साल में हो गई दो गुनी संपत्तियां
मिली जानकारी के अनुसार, जब 2003 में उत्तराखंड वक्फ बोर्ड का गठन हुआ था तब 2078 संपत्तियों की जानकारी आई थी। ये संपत्तियां यूपी वक्फ बोर्ड से उत्तराखंड वक्फ बोर्ड को विरासत में मिली थी। इनमें से 450 फाइल्स यूपी से उत्तराखंड में नही पहुंची।
देवभूमि में कहां-कहां है वक्फ बोर्ड की संपत्तियां
जानकारी ये है कि वक्फ बोर्ड की संपत्ति सूची में मस्जिद से अधिक कब्रस्तानों की संख्या है। पहाड़ी जिलों में चमोली में 1, रुद्रप्रयाग में 1 टिहरी में 4, पौड़ी में 10, उत्तरकाशी में 1, बागेश्वर में 3, चंपावत में 6,अल्मोड़ा में 6 पिथौरागढ़ में 3 मस्जिदें और इनसे ज्यादा कब्रिस्तान होने की जानकारी सामने आई है। इसके अलावा नैनीताल जिले में 48 मस्जिदें, उधम सिंह नगर में 144, हरिद्वार जिले में 322, देहरादून जिले में 155 मस्जिदें है जो कि वक्फ बोर्ड में पंजीकृत हुई हैं। सुदूर पहाड़ी जिलों में भी वक्फ बोर्ड की औकाफ ( दान में दी गई ) संपत्तियों की जानकारी सामने आ रही है।
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उत्तराखंड में 2105 औकाफ़ संपत्तियां है जिनमें अल्मोड़ा जिले में 46 पिथौरागढ़ जिले में 11 पौड़ी में 26 सबसे अधिक हरिद्वार में 865 उधम सिंह नगर में 499 देहरादून में 435 संपत्तियों पर वक्फ बोर्ड का अपना दावा है। पूरे देवभूमि उत्तराखंड में 773 स्थानों पर कब्रिस्तान बना दिए गए है जबकि 704 मस्जिदों को वक्फ बोर्ड के अधीन बताया गया है। उत्तराखंड में वक्फ बोर्ड की सूची से बाहर अभी इतनी ही और मस्जिदों के और होने की सूचनाएं है।
वक्फ बोर्ड में 100 मदरसे होने की सूचना सामने लाई जा रही है, जबकि मदरसा बोर्ड में सूची में चार सौ से ज्यादा मदरसे दर्ज है। राज्य के भीतर 201 से अधिक मजारें वक्फ बोर्ड में सूची बद्ध होने की जानकारी सामने लाई गई है। बताया जाता है कि यहां अब नमाज भी पढ़ाई जा रही है। जिन्होंने धीरे-धीरे मदरसे फिर मस्जिद का रूप ले लिया है। वक्फ बोर्ड की संपत्तियों में पूरे राज्य में 12 स्कूल और इतने ही मुसाफिरखाने है, सूची में 1024 मकान और 1711 दुकानें भी है। 70 ईद गाह, 32 इम्मामबाड़े, 112 कृषि भूमि प्लाट और अन्य 253 संपत्तियां है। ऐसा भी माना जा रहा है कि वक्फ बोर्ड की कई संपत्तियों पर प्रभावशाली और भू माफिया तत्वों के कब्जे हैं। जिन्हें राजनीतिक संरक्षण प्राप्त है।
ऐसी खबरे भी हैं कि देवभूमि उत्तराखंड वक्फ बोर्ड की स्थापना 2003 में हुई थी, तब वक्फ बोर्ड की संपत्तियों की संख्या 2078 के आसपास बताई गई थी। इनमें से 450 संपत्तियों की फाइलें यूपी से अभी तक उत्तराखंड वक्फ बोर्ड को नहीं दी गई है और ये विषय एक विवाद के रूप में केंद्र सरकार तक पहुंचा हुआ है। ऐसा माना जा रहा है कि देवभूमि उत्तराखंड में पिछले 20 सालों में वक्फ बोर्ड की संपत्तियों की संख्या दो गुना से अधिक हो गई है। जो इस बात को प्रमाणित करता है कि देवभूमि उत्तराखंड में मुस्लिम आबादी में बेतहाशा वृद्धि हुई है। अभी ये आंकड़े ऐसे हैं जो कि वक्फ बोर्ड में दर्ज है। दरअसल बड़ी संख्या में मुस्लिम धार्मिक स्थल, मदरसे अभी ऐसे भी हैं जो कि वक्फ बोर्ड में दर्ज नहीं है और वे सरकारी जमीनों को घेर या अवैध कब्जे कर बनाए गए हैं। वक्फ बोर्ड की संपत्तियों को लेकर भी संशय है कि क्या वो वास्तव में वक्फ बोर्ड की संपत्ति है अथवा उत्तराखंड सरकार की संपत्ति है ?
बहरहाल देवभूमि उत्तराखंड में वक्फ संपत्तियों का तेजी से बढ़ना भी चिंता का विषय है, राज्य में डेमोग्राफी चेंज को लेकर बहस छिड़ी हुई है और वक्फ संपत्तियों के बढ़ रहे आंकड़े भी इसी और संकेत देते हैं कि देवभूमि उत्तराखंड के सांस्कृतिक देव स्वरूप के इस्लामीकरण की साजिश तो नहीं हो रही है ? बेरीनाग, उत्तरकाशी, धारचूला, हाट कालिका पिथौरागढ़ क्षेत्र ने बन रहे इस्लामिक धार्मिक केंद्रों को लेकर स्थानीय लोगों में गुस्सा ऐसे ही नहीं पनप रहा है। स्थानीय लोगों का कहना है पहले कभी ऐसे धार्मिक स्थल यहां नहीं थे अब देवभूमि में मस्जिद, मदरसे, ईदगाह और मजारें जगह-जगह दिखाई दे रहे हैं।
दर्शन भारती कहते हैं कि उत्तराखंड के देव स्वरूप को हम बिगड़ने नहीं देंगे, सरकारी तंत्र की लापरवाही से मुस्लिम लोग वक्फ बोर्ड का सहारा लेकर सरकार की संपत्तियों पर धार्मिक स्थल बना रहे हैं जिसे सहन नहीं किया जाएगा।
सीएम पुष्कर धामी ने भी कहा है कि किसी भी सूरत में देवभूमि के सनातन स्वरूप से छेड़छाड़ करने की इजाजत, सरकार नहीं देगी। अवैध कब्जे हटाए ही जाएंगे, बेहतर है कि लोग खुद ही अपने कब्जे हटा दें। नहीं तो सख्त कानूनी कारवाई की जाएगी। हम देख और समझ भी रहे हैं कि क्या-क्या और कहां-कहां हो रहा ? हमारा लैंड जिहाद के खिलाफ अभियान जारी है।
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