मुंबई । महाराष्ट्र में हाल ही में संपन्न विधानसभा चुनाव में करारी हार के बाद महाविकास अघाड़ी (मविआ) के सहयोगी दलों में दरारें उभरने लगी हैं। शिवसेना (यूबीटी) और कांग्रेस ने आगामी चुनाव अकेले लड़ने के संकेत दिए हैं। शिवसेना (यूबीटी) की बैठक में कार्यकर्ताओं ने महाविकास अघाड़ी के साथ गठबंधन जारी रखने पर सवाल उठाते हुए स्वतंत्र चुनाव लड़ने की मांग की है। वहीं, कांग्रेस ने भी इसे स्वीकार करते हुए अकेले चुनाव लड़ने की तैयारी का इशारा दिया है।
शिवसेना (यूबीटी) की बैठक में दिखा असंतोष
बुधवार को शिवसेना (यूबीटी) ने बांद्रा स्थित मातोश्री बंगले पर पार्टी पदाधिकारियों की बैठक बुलाई थी। इस बैठक में पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं ने स्पष्ट रूप से कहा कि महाविकास अघाड़ी में रहकर चुनाव लड़ने से शिवसेना (यूबीटी) को नुकसान हुआ है। पार्टी के वरिष्ठ नेता और विधान परिषद में नेता प्रतिपक्ष अंबादास दानवे ने पत्रकारों से बातचीत में बताया कि पार्टी कार्यकर्ताओं ने आगामी चुनाव अपने बल पर लड़ने की मांग की है। हालांकि, पार्टी अध्यक्ष उद्धव ठाकरे ने अभी तक इस पर कोई अंतिम निर्णय नहीं लिया है।
कांग्रेस ने भी जताई अलग चुनाव लड़ने इच्छा
शिवसेना (यूबीटी) के बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए कांग्रेस नेता विजय वडेट्टीवार ने कहा कि महाविकास अघाड़ी को विधानसभा चुनाव में भारी नुकसान हुआ है। उन्होंने कहा “हम इस नुकसान के कारणों पर चर्चा के लिए बैठक करेंगे, लेकिन अगर शिवसेना (यूबीटी) अलग होकर चुनाव लड़ने का विचार करती है, तो कांग्रेस भी इसके लिए तैयार है।” वडेट्टीवार ने आगे कहा कि आगामी चुनाव अलग-अलग लड़ने से कांग्रेस को 288 विधानसभा क्षेत्रों में अपनी पकड़ मजबूत करने का मौका मिलेगा।
महाविकास अघाड़ी में फूट संकेत
महाविकास अघाड़ी के तीन मुख्य घटक दल- शिवसेना (यूबीटी), कांग्रेस और एनसीपी के बीच अब चुनावी हार के बाद खुलकर मतभेद सामने आ रहे हैं। गठबंधन में समन्वय की कमी और अलग-अलग रणनीतियों ने अघाड़ी के भविष्य पर सवाल खड़े कर दिए हैं। शिवसेना (यूबीटी) और कांग्रेस के स्वतंत्र चुनाव लड़ने की घोषणाओं से गठबंधन में बड़ी फूट के संकेत मिल रहे हैं।
क्या अघाड़ी का अंत निकट है?
महाविकास अघाड़ी में बढ़ते असंतोष के बाद अंदर की कलह अब राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि महाविकास अघाड़ी की चुनावी हार के बाद दलों के बीच बढ़ता असंतोष गठबंधन के टूटने का कारण बन सकता है। आगामी लोकसभा और विधानसभा चुनावों से पहले यह स्थिति महाराष्ट्र की राजनीति में बड़ा बदलाव ला सकती है।
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