दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण ने गंभीर संकट की स्थिति पैदा कर दी है। हवा में घुले जहर की वजह से वायु गुणवत्ता सूचकांक का स्तर 500 के पार पहुंचना किसी भी मानक से कहीं अधिक खतरनाक है। जहरीली हवा के कारण न केवल सामान्य लोग, बल्कि दिल के मरीजों के लिए भी स्वास्थ्य संकट गहरा गया है। आंखों में जलन, खांसी और गले में खराश जैसे लक्षण अब आम हो गए हैं, लेकिन सबसे गंभीर प्रभाव उन लोगों पर पड़ रहा है, जो पहले से ही किसी लाइलाज बीमारी से जूझ रहे हैं।
एक रिपोर्ट के अनुसार, प्रदूषण के कारण 75 प्रतिशत परिवारों के सदस्य गले में खराश, खांसी, सिरदर्द और सांस की समस्याओं से जूझ रहे हैं। प्रदूषण से जुड़ी बीमारियों से पीड़ित परिवारों की संख्या एक महीने में दोगुनी हो गई है। बढ़ते प्रदूषण को देखते हुए दिल्ली ही नहीं, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और पंजाब में स्कूलों को बंद करना पड़ा और गैप-4 लागू करना पड़ा है। दिल्ली में वायु गुणवत्ता स्तर में सुधार के उपायों को लागू करने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान सर्वोच्च न्यायालय ने साफ शब्दों में कहा कि अगर दिल्ली में प्रदूषण घटता भी है तो उसकी अनुमति के बिना ढिलाई नहीं दी जाएगी।
मौत का पांचवां बड़ा कारण
ऐसा नहीं है कि वायु प्रदूषण केवल दिल्ली और इसके आसपास के राज्यों में ही है। आज वायु प्रदूषण गंभीर वैश्विक चिंता का कारण बन गया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के सर्वेक्षण के अनुसार, दिल्ली में वायु का गुणवत्ता स्तर दुनिया के किसी भी प्रमुख शहर से सबसे खराब है। भारत में हर साल लगभग 20 लाख लोग प्रदूषण के कारण अपनी जान गंवाते हैं और यह भारत का पांचवां सबसे बड़ा मौत का कारण बन चुका है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, भारत में पुरानी सांस की बीमारियों और अस्थमा से होने वाली मौतों की दर सबसे अधिक है। खासतौर से दिल्ली में लोग इससे सबसे अधिक प्रभावित हैं।
डॉक्टरों का कहना है कि भारत में वायु प्रदूषण के बढ़ते स्तर के कारण फेफड़े के कैंसर के मरीज बढ़ रहे हैं। लंबे समय तक पीएम 2.5 और जहरीली गैसों जैसे प्रदूषकों के संपर्क में रहने से फेफड़ों के ऊतकों को नुकसान पहुंचता है, जिससे कैंसर का खतरा बढ़ जाता है। दिल्ली की खराब हवा बच्चों के स्वास्थ्य पर भी भारी पड़ रही है। इस वर्ष दिल्ली में लगभग 50 प्रतिशत यानी 22 लाख बच्चे खराब हवा से बीमार हो चुके हैं। जहरीली हवा से उनके फेफड़ों को स्थायी नुकसान हो रहा है। बच्चों की कमजोर रोग प्रतिरोधक क्षमता उन्हें अस्थमा और एलर्जी जैसी बीमारियों के प्रति अधिक संवेदनशील बनाती हैं। इसके अलावा, सांस संबंधी समस्याओं की शिकायतें पिछले माह के मुकाबले 20 प्रतिशत तक बढ़ गई हैं।
एक रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली की हवा रोजाना 40 सिगरेट पीने जितनी खतरनाक हो गई है, जबकि हरियाणा में प्रदूषण का स्तर 29 सिगरेट पीने के बराबर है। आपको याद होगा कि सर्वोच्च न्यायालय ने 25 नवंबर, 2019 को दिल्ली के प्रदूषण पर टिप्पणी करते हुए कहा था, ‘‘दिल्ली नरक से भी बदतर हो गई है।’’ 5 वर्ष बीतने के बाद भी स्थिति में कोई सुधार नहीं आया है। प्रदूषण के घटने के बजाए इसमें वृद्धि देखी जा रही है, जो आने वाले वर्षों में गंभीर स्वास्थ्य संकट का रूप ले सकता है। आलम यह है कि हाल ही में अजरबैजान की राजधानी बाकू में पर्यावरण को लेकर आयोजित कोप-29 सम्मेलन में भी दिल्ली की जहरीली हवा पर चर्चा हुई और इसे गंभीर चिंता का विषय बताया गया।
केवल पराली वजह नहीं
वस्तुत: अक्तूबर-नवंबर के महीनों में दिल्ली और एनसीआर के प्रदूषण स्रोतों के साथ-साथ अन्य कारक हवा की गुणवत्ता को प्रभावित करते हैं। इसलिए सिर्फ पराली को जिम्मेदार ठहराना गलत और भ्रामक है। भारतीय उष्णदेशीय मौसम विज्ञान संस्थान के अनुसार, इस वर्ष अक्तूबर में दिल्ली के वायु प्रदूषण में पराली जलाने से उठने वाले धुएं की हिस्सेदारी 5 प्रतिशत से भी कम थी। इसके विपरीत, लगभग 95 प्रतिशत प्रदूषण के लिए स्थानीय स्रोत जिम्मेदार हैं।
सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायरन्मेंट (सीएसई) के ताजा विश्लेषण से स्पष्ट है कि दिल्ली के प्रदूषण में सबसे बड़ा योगदान स्थानीय कारकों का है, जैसे कि गाड़ियों से निकलने वाला धुआं, निर्माण कार्य और अन्य औद्योगिक गतिविधियां। सीएसई के अध्ययन के अनुसार, खेतों में पराली जलाने से होने वाले प्रदूषण का हिस्सा दिल्ली के कुल प्रदूषण में केवल 4.4 प्रतिशत है। इस स्थिति में सर्दियों के दौरान होने वाले प्रदूषण में स्थानीय स्रोतों की भूमिका अधिक है।
इसलिए सिर्फ पराली को दोषी ठहराना वायु प्रदूषण के असली कारणों से ध्यान भटकाने और समस्या से बचने का एक तरीका है। अक्तूबर में पंजाब और अन्य राज्यों में जलने वाली पराली का धुएं के दिल्ली तक पहुंचने का दावा वैज्ञानिक तथ्यों के विपरीत है, क्योंकि हवा की गति इतनी धीमी होती है कि 500 किलोमीटर दूर तक प्रदूषण फैलाना असंभव है। पराली दहन को रोकने के सरकारी प्रयास अब तक अव्यावहारिक और संसाधनहीन साबित हुए हैं। किसानों के लिए पराली को बिना सार्थक उपयोग में लाए बड़े पैमाने पर इकट्ठा करना और भंडारण करना बेहद चुनौतीपूर्ण है। इसके बजाय, पराली को भूमि में समाविष्ट करना, जिसे ‘गहरी जुताई’ द्वारा किया जा सकता है, एक स्थायी और पर्यावरणीय दृष्टिकोण है।
कैसे साबित करेंगे?
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के सदस्य जस्टिस सुधीर अग्रवाल के अनुसार, इस बारे में कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है, जो यह साबित करे कि पंजाब में पराली जलाने से दिल्ली में प्रदूषण बढ़ता है। उन्होंने यह टिप्पणी हाल ही में ‘पर्यावरण अनुकूल धान की खेती’ सम्मेलन में की। उन्होंने स्पष्ट किया कि इस दावे को स्थापित करने के लिए न तो कोई वैज्ञानिक अध्ययन किया गया है और न ही यह साबित करना व्यावहारिक रूप से संभव है कि पंजाब का धुआं दिल्ली में प्रदूषण का कारण बनता है। उन्होंने दिल्ली में वायु प्रदूषण के कारणों का गहन अध्ययन करने की आवश्यकता पर जोर दिया। उनका मानना था कि दिल्ली में प्रदूषण के अन्य कारणों का विश्लेषण किया जाना चाहिए, क्योंकि अब तक इस मामले में केवल राजनीति हो रही है। सही वैज्ञानिक जांच की कोई पहल नहीं की गई है। पर्यावरण विशेषज्ञों ने इस मुद्दे को और अधिक गहराई से देखने की आवश्यकता जताई है।
तो क्या है कारण?
द एनर्जी एंड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट (टेरी) द्वारा हाल में जारी रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली के वायु प्रदूषण के लिए मुख्य रूप से 6 कारक जिम्मेदार हैं, जिनमें सबसे बड़ा कारण वाहनों से निकलने वाला धुआं है। पीएम 2.5 प्रदूषक तत्वों में गाड़ियों से निकलने वाले धुएं का योगदान लगभग 47 प्रतिशत है, जो साल भर में 9.7 किलो टन के बराबर होता है। इस धुएं में नाइट्रोजन आक्साइड और नॉन-मिथेन वोलाटाइल आर्गेनिक कम्पाउंड जैसी खतरनाक गैसें भी होती हैं, जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक साबित हो सकती हैं।
इसके बाद दूसरा बड़ा कारण सड़क पर उड़ने वाली धूल है, जो पर्टिक्यूलेट मैटर 2.5 या पीएम 2.5 में लगभग 20 प्रतिशत योगदान करती है। इन प्रदूषकों के छोटे कण श्वसन तंत्र में घुसकर गंभीर बीमारियों का कारण बन सकते हैं, जैसे अस्थमा, गले की समस्याएं और यहां तक कि कैंसर। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में प्रदूषण का बड़ा हिस्सा औद्योगिक क्षेत्रों से आता है। टेरी के आंकड़ों के अनुसार, उद्योगों से निकलने वाले प्रदूषक पीएम 2.5 में 44 प्रतिशत और पीएम 10 में 41 प्रतिशत योगदान करते हैं। इसके अलावा, स्टोन क्रशर्स भी प्रदूषण फैलाने का एक प्रमुख स्रोत हैं, जो पीएम 2.5 और पीएम 10, दोनों में प्रदूषण बढ़ाते हैं।
पंजाब में फसलों की कटाई के बाद खेतों में कृषि अवशेष जलाने से भी प्रदूषण बढ़ता है, विशेषकर अक्तूबर और नवंबर के दौरान। हालांकि, पंजाब के जलवायु परिवर्तन विभाग के अधिकारियों के अनुसार, इस धुएं और प्रदूषण के कण हवा की धीमी गति के कारण दिल्ली या लाहौर जैसे दूर स्थानों तक नहीं पहुंच पाते। लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि इसका दिल्ली के प्रदूषण पर मामूली असर होता है।
स्वास्थ्य पर असर
हाल में हुए शोधों से पता चलता है कि वायु प्रदूषण दिल के मरीजों के लिए अधिक खतरनाक साबित हो सकता है। प्रदूषण में मौजूद पीएम 2.5 और अन्य हानिकारक कण सीधे रक्त में प्रवेश कर सकते हैं, जिससे रक्त नलिकाओं में सूजन, संकुचन और कड़ापन बढ़ जाता है। इस वजह से रक्त का प्रवाह प्रभावित होता है और दिल पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है, जो दिल की मांसपेशियों को कमजोर कर सकता है। इस प्रकार, प्रदूषण के कारण दिल के दौरे, स्ट्रोक और हृदय गति रुकने जैसा जोखिम काफी बढ़ जाता है।
दिल्ली में वायु प्रदूषण के बढ़ते स्तर के कारण एलर्जिक कंजंक्टिवाइटिस और आंखों से संबंधित अन्य समस्याएं तेजी से बढ़ रही हैं। हाल ही में किए गए शोध और विशेषज्ञों के अनुसार, प्रदूषण में मौजूद सूक्ष्म कण आंखों की सतह को प्रभावित करते हैं, जिससे जलन, खुजली, सूखापन और एलर्जी जैसी समस्याएं होती हैं। दिल्ली की वायु गुणवत्ता के ‘गंभीर’ श्रेणी में रहने के कारण लोग, खासकर वे जो पहले से सूखी आंखों या एलर्जी से परेशान हैं, इन समस्याओं से अधिक प्रभावित हो रहे हैं।
प्रदूषित हवा आंखों के लिए एक गंभीर खतरा है, जो कॉर्निया और कंजंक्टिवा को नुकसान पहुंचा सकता है। यह स्थिति उन लोगों के लिए और भी चिंताजनक है, जो पहले से आंखों में सूखापन या एलर्जी का सामना कर रहे हैं। इसके अतिरिक्त, आंखों को बार-बार रगड़ने से कॉर्निया कमजोर हो सकता है, जिससे केराटोकोनस जैसी स्थिति उत्पन्न हो सकती है, जो दृष्टि की समस्या पैदा कर सकती है।
लापरवाही पर फटकार
सर्वोच्च न्यायालय ने गत 18 नवंबर को एक मामले की सुनवाई के दौरान वायु प्रदूषण पर रोकथाम में लापरवाही बरतने पर दिल्ली सरकार को फटकार लगाई। न्यायालय ने पूछा कि जब दिल्ली में वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) 401 को पार कर गया, तो ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (ग्रैप)-4 लागू करने में इतनी देरी क्यों हुई? न्यायालय ने दिल्ली सरकार से यह भी पूछा कि ग्रैप लागू करने की जिम्मेदारी किस अधिकारी की है और इसके दिशानिर्देश क्या हैं? दरअसल, 12 नवंबर को एक्यूआई 401 के स्तर पर पहुंच गया था, लेकिन दिल्ली सरकार ने इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाया।
एक्यूआई 401 के स्तर तक पहुंचने का मतलब है प्रदूषण का खतरनाक स्तर पर पहुंचना। इसलिए ऐसी स्थिति में ग्रैप-4 लागू किया जाता है। इसमें सबसे कड़े कदम उठाने का प्रावधान है। लेकिन दिल्ली सरकार दोषारोपण करती रही और इसे लागू नहीं किया। इसलिए न्यायालय को नाराजगी जाहिर करते हुए कहना पड़ा कि वह एक आदेश पारित करने पर विचार कर रहा है, जिसमें यह सुनिश्चित किया जाएगा कि ग्रैप-4 लागू होने के बाद बिना उसकी अनुमति के अधिकारी इसे हटा न सकें, भले ही वायु प्रदूषण का स्तर 300 से नीचे क्यों चला जाए।
इसका मतलब यह है कि एक बार गै्रप-4 लागू होने के बाद सरकार को इसे हटाने से पहले न्यायालय की अनुमति लेनी होगी। न्यायालय ने सख्त लहजे में कहा कि वायु प्रदूषण के खिलाफ ठोस कदम उठाने में सरकार की चूक स्वीकार्य नहीं है। साथ ही, दिल्ली सरकार को जवाबदेही तय करने का निर्देश दिया, ताकि भविष्य में प्रदूषण नियंत्रण के उपायों में कोई ढिलाई न हो। यह आदेश प्रदूषण के खतरनाक स्तर पर कड़ी निगरानी और तत्परता की आवश्यकता पर जोर देता है।
ग्रैप-4 में सबसे कठोर कदम उठाए जाते हैं, जैसे- सभी निर्माण कार्यों पर रोक, उद्योग बंद करना, यातायात पर प्रतिबंध लगाना और सार्वजनिक परिवहन को बढ़ाना। इन कदमों का उद्देश्य प्रदूषण के खतरनाक स्तर को शीघ्र नियंत्रित करना होता है।
दिल्ली और एनसीआर में प्रदूषण की समस्या गंभीर होती जा रही है। इस स्थिति से निपटने के लिए आवश्यक है कि प्रदूषण के स्रोतों की पहचान की जाए, सख्त नीतियां लागू की जाएं और जन जागरूकता बढ़ाई जाए ताकि दिल्ली और इसके आसपास के क्षेत्रों में जीने लायक स्थितियां बनी रहें।
… लेकिन बाज नहीं आएंगे
दिल्ली में वायु प्रदूषण पर आम आदमी पार्टी की सरकार की एक ही रट है। पहले जब अरविंद केजरीवाल मुख्यमंत्री थे, तब वे केंद्र सरकार को इसके लिए दोषी ठहराते थे, अब मुख्यमंत्री आतिशी मार्लेना भी वही कर रही हैं।
आरोप-प्रत्यारोप के बीच आतिशी ने दावा किया कि पंजाब में पराली जलाने के मामलों में 80 से 85 प्रतिशत की कमी आई है। दिल्ली में वायु प्रदूषण की रोकथाम कैसे हो, इसके लिए क्या किया जाए, इस पर विचार-विमर्श करने की बजाए वे यह गिनाती रहीं कि उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, बिहार में भी एक्यूआई बढ़ा हुआ है। इन राज्यों में भाजपा की सरकारें हैं, उन्होंने क्या कदम उठाया? वे केंद्र सरकार से सवाल-जवाब करती दिखीं। यही नहीं, उन्होंने यह कहते हुए प्रदूषण का सारा ठीकरा पराली पर थोप दिया कि पराली जलाने की घटनाओं से ‘नेशनल मेडिकल इमरजेंसी’ की स्थिति बन नही है। उन्होंने यह भी कहा कि दिल्ली में पराली नहीं जलती। उनके अनुसार, दिल्ली और पंजाब में उनकी पार्टी की सरकार है, जहां पराली जलती ही नहीं।
आतिशी के दावों के उलट सच यह है कि पंजाब में पराली जलाने के मामले बढ़े हैं। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के मानक प्रोटोकॉल का पालन करते हुए उपग्रह ने जो डेटा उपलब्ध कराए हैं, उसके अनुसार सिर्फ 18 नवंबर को देश के 6 राज्यों में पराली जलाने की 2,211 मामले सामने आए। इनमें 1,251 मामलों के साथ पंजाब सबसे आगे था, जबकि 8 नवंबर को सर्वाधिक 730 मामले दर्ज किए गए। रिमोट सेंसिंग सेंटर के आंकड़ों के अनुसार, 15 सितंबर से 18 नवंबर तक पंजाब में पराली जलाने के 9,655 मामले दर्ज किए गए। वहीं, हरियाणा में 18 नवंबर को 36 और 31 अक्तूबर को 42 घटनाएं दर्ज की गईं।
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