क्या चीन के विदेश विभाग का मोदी और शी जिनपिंग के बीच ‘सहमति’ की बात करना संकेत है कि चार साल पहले गलवान संघर्ष से उपजे तनाव और खटास के बाद संबंधों के पटरी से उतरने को दुरुस्त करने की ओर है? चीन का कहना है कि भारत के नेताओं के साथ जो बात हुई और उसमें जिन बातों को लेकर आपसी सहमति हुई वह महत्वपूर्ण है। अब संवाद तथा सहयोग के साथ आगे बढ़ने की बात करनी है।
चीन ने भारत के साथ अपने संबंधों के संदर्भ में एक महत्वपूर्ण बयान दिया है। बीजिंग ने कहा है कि वह भारत के साथ सहयोग करने, वार्ता के माध्यम से आम सहमति बनाने को राजी है। अक्खड़ चीन का यह राजी होना कूटनीतिक गलियारों में पिछले दिनों रूस में ब्रिक्स बैठक के दौरान प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति शी के बीच हुई द्विपक्षीय वार्ता में खोजा जा रहा है। विशेषज्ञ मान रहे हैं कि मोदी की सहयोग और साझे विकास की बात संभवत: बीजिंग को समझ आ रही है, इसलिए उसने ऐसा बयान दिया है। लेकिन सवाल है कि क्या इस बयान मात्र से दोनों देशों के रिश्तों पर जमी बर्फ पिघलेगी!
कल चीन के विदेश मंत्रालय की ओर से कहा गया कि गत दिनों राष्ट्रपति शी जिनपिंग और प्रधानमंत्री मोदी के बीच कजान में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के मौके पर जो बात हुई, उसके अनुसार ही दोनों नेताओं के बीच बनी सहमति को हम लागू करने को तैयार हैं। बीजिंग ने कहा कि आपस में वार्ता तथा सहयोग में विस्तार तथा रणनीतिक विश्वास को मजबूत करने की ओर बढ़ा जाएगा।
क्या चीन के विदेश विभाग का मोदी और शी जिनपिंग के बीच ‘सहमति’ की बात करना संकेत है कि चार साल पहले गलवान संघर्ष से उपजे तनाव और खटास के बाद संबंधों के पटरी से उतरने को दुरुस्त करने की ओर है? चीन के विदेश विभाग के प्रवक्ता लिन ज्यान का कहना है कि भारत के नेताओं के साथ जो बात हुई और उसमें जिन बातों को लेकर आपसी सहमति हुई वह महत्वपूर्ण है। अब संवाद तथा सहयोग के साथ आगे बढ़ने की बात करनी है।
रूस के कजान में पिछले दिनों दोनों नेताओं के बीच हुई 50 मिनट की चर्चा में पूर्वी लद्दाख और वास्तविक नियंत्रण रेखा पर निगरानी, पैट्रोलिंग का विषय उठना ही था। वहां दोनों ने अप्रैल 2020 से पूर्व की स्थिति बहाल करने के लिए दोनों सेनाओं के सैनिकों को उनकी पूर्व जगहों पर लौटाने की सहमति बनी थी, जिस पर अमल होता दिखा भी है। इसी प्रकार दोनों के बीच संवाद की व्यवस्था को बहाल करने सबंधी बात तय हुई थी, जिसके तौर—तरीके भी तय हुए हैं। उस बैठक के बाद दोनों नेताओं के चेहरे के भावों से झलका भी था कि वार्ता सकारात्मक रही और संबंधों को पटरी पर लाने की कोशिश की जाएगी।
उस मौके पर प्रधानमंत्री मोदी की तरफ से साफ कहा गया था कि मतभेद तथा विवाद सही तरह से संबोधित करने की जरूरत है, और इन्हें सीमा पर शांति—स्थिरता में आड़े आने की इजाजत नहीं दी जानी चाहिए। इसके लिए आपस में विश्वास, एक दूसरे का सम्मान तथा संबंधों में संवेदनशील होने की जरूरत है।
चर्चा में राष्ट्रपति शी का कहना था भारत-चीन दो बड़े विकासशील पड़ोसी देश हैं और दोनों की मिलाकर जनसंख्या 1.4 अरब है, इसलिए यह देखना जरूरी हो जाता है कि दोनों के बीच आपसी बर्ताव कैसा है। रणनीतिक नजरिया सही रहे तो पड़ोसियों के बीच सामंजस्य होता है और दोनों का विकास। यह कहकर एक प्रकार से शी ने मोदी के मंत्र को ही दोहराया।
लेकिन अब चीन का ताजा बयान भी उसी लाइन पर चलने की कोशिश का संकेत देता है। सीमा पर बदलाव दिखने लगा है और इसकी पुष्टि स्वयं भारत के विदेश मंत्री जयशंंकर कर चुके हैं। पूर्वी लद्दाख में एलएसी को लेकर तनाव में कुछ ढिलाई आई है क्योंकि सैनिकों ने पीछे हटना शुरू किया है।
भारत और चीन के शीर्ष नेताओं की उस वार्ता के बाद सीमा के मुद्दे पर भी दोनों पक्षों के जल्दी ही बैठकर बात करने के संकेत मिल रहे हैं। भारत ने इस संवाद की जिम्मेदारी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोवल के हाथ में है, तो उधर चीन के पक्ष की अगुआई उनके विदेश मंत्री वांग यी कर रहे हैं।
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