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मनमानी की निगरानी आवश्यक

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हितेश शंकर

केरल में पहली बार सिरो-मालाबार चर्च के नेतृत्व में 1000 से अधिक चर्च खुलकर वक्फ बोर्ड का विरोध कर रहे हैं। उनका विरोध केवल क्षेत्रीय या आस्थागत मुद्दा नहीं है, बल्कि वक्फ बोर्ड की कार्य प्रणाली, अधिकारों और इसके नियंत्रण को लेकर नागरिक समाज की गहरी चिंताओं का प्रतीक भी है, जो सिर्फ केरल तक सीमित नहीं हैं। देशभर में चर्च, हिंदू मठ-मंदिर और नागरिक समाज के लोग इसके विरुद्ध आवाज उठा रहे हैं। ऐसे में पूरे देश के लिए यह जानना-समझना आवश्यक हो गया है कि बार-बार उठने वाले इस दर्द का कारण क्या है? इसका उपचार कैसे किया जा सकता है?

हितेश शंकर

वक्फ बोर्ड का गठन मुस्लिम समुदाय की मजहबी, सामाजिक और शैक्षिक संपत्तियों की देखभाल के लिए किया गया था। यह संस्था मुस्लिम संपत्तियों का संरक्षण करती है और सुनिश्चित करती है कि इनका उपयोग समुदाय के लाभ के लिए हो। वक्फ बोर्ड को यह कानूनी अधिकार है कि वह किसी भी संपत्ति को वक्फ संपत्ति घोषित कर सकता है, भले ही वह वक्फ बोर्ड से जुड़ी न हो। इसके अलावा, वक्फ बोर्ड पर नियंत्रण, निगरानी और पारदर्शिता भी कम है, जिसने इसे संदेह के घेरे में ला दिया है। कई बार बोर्ड के फैसले एकपक्षीय होते हैं, जिनसे विभिन्न मत-पंथों की संपत्तियों के साथ भेदभाव के संकेत भी मिलते हैं।

दूसरी ओर, वक्फ अधिनियम में भी कई खामियां हैं, जिसका लाभ उठाकर वक्फ बोर्ड मनमानी करता रहा है। वक्फ अधिनियम में 1995 और 2013 में संशोधनों के बावजूद ये खामियां बनी हुई हैं। उदाहरण के लिए, वक्फ बोर्ड द्वारा किसी भी संपत्ति को वक्फ संपत्ति घोषित करने के लिए संपत्ति के मालिक की सहमति जरूरी नहीं है। इस कारण कई बार संपत्ति के असली मालिकों को न्यायिक प्रक्रिया से उसे वापस पाने में सालों लग गए। कानून में खामियों का लाभ उठाते हुए हाल के दिनों में वक्फ बोर्ड ने दिल्ली, कर्नाटक, बिहार, तमिलनाडु सहित देश के कई राज्यों में हिंदुओं के गांव, जमीन और यहां तक कि मंदिरों पर भी दावे किए हैं।

केरल में सिरो-मालाबार चर्च, हिंदू समाज, मठ-मंदिरों का कहना है कि वक्फ बोर्ड ने उनकी संपत्ति पर अधिकार जताने की कोशिश की है। यह उनके आस्थागत स्वतंत्रता के अधिकारों का उल्लंघन है। उनका विरोध केवल संपत्ति तक सीमित नहीं है, यह उन अधिकारों की रक्षा का भी प्रयास है जो किसी भी मत-पंथ की संस्था को अपने कार्यों को स्वतंत्र रूप से संचालित करने के लिए दिए गए हैं। वक्फ बोर्ड की कार्यप्रणाली से उनकी आस्थागत स्वतंत्रता और संपत्ति पर खतरा बढ़ रहा है। इसलिए वक्फ बोर्ड की मनमानी के विरुद्ध जनाक्रोश बढ़ रहा है।

वक्फ बोर्ड की कार्यप्रणाली पर सभ्य समाज द्वारा लगातार उठाए जा रहे सवालों से यह सार्वजनिक धारणा अभिव्यक्त होने लगी है कि किसी सार्वजनिक संस्था के पास यदि संपत्तियों पर निर्णय लेने का अधिकार है, तो उसे नैतिक और पारदर्शी ढंग से काम करना चाहिए। वक्फ बोर्ड की मनमानियों को देखकर नागरिक समाज को लग रहा है कि वह अपनी सीमाएं लांघ रहा है, इसलिए उसमें सुधार आवश्यक है। इसके अधिकारों को सीमित करने के साथ इसे पारदर्शी और न्यायसंगत बनाया जाना चाहिए। मतलब, किसी भी संपत्ति को वक्फ संपत्ति घोषित करने से पहले न्यायिक प्रक्रिया का पालन किया जाना चाहिए। यानी संपत्ति मालिकों को विरोध करने और अपनी बात रखने का अधिकार मिलना चाहिए। पारदर्शिता में सुधार के लिए वक्फ बोर्ड के निर्णय और संपत्तियों का लेखा-जोखा सार्वजनिक किया जाना चाहिए, ताकि सभी समुदायों को विश्वास हो सके कि उनके साथ अन्याय नहीं हो रहा है। इसी तरह, कानूनी प्रणाली एक होनी चाहिए, जो वक्फ बोर्ड और संपत्ति मालिकों के बीच विवादों को सुलझा सके। इससे सभी पक्षों को निष्पक्ष न्याय मिल सकेगा।

इसके अलावा, वक्फ बोर्ड के कार्यों पर नजर रखने के लिए एक स्वतंत्र निगरानी समिति का गठन किया जाना चाहिए, जो उसके कार्यों की समीक्षा करे और आवश्यकता पड़ने पर हस्तक्षेप भी कर सके। वक्फ बोर्ड की सीमाएं तय करने के साथ यह भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि वक्फ संपत्तियों की विस्तृत सूची एक सार्वजनिक प्लेटफार्म पर उपलब्ध हो, ताकि किसी अन्य संपत्ति के साथ कोई विवाद न हो। आज वक्फ बोर्ड के विरुद्ध पूरे देश में छिड़ी नई बहस से यह मांग सामने आई है सरकार वक्फ अधिनियम का गहन विश्लेषण करे तथा इसे लोकतांत्रिक और पारदर्शी प्रणाली में ढाले। इससे वक्फ बोर्ड के अधिकार और कार्य प्रणाली को नियंत्रित किया जा सकेगा तथा अन्य मत-पंथों के संस्थानों की संपत्तियों की सुरक्षा सुनिश्चित हो सकेगी।

इस दिशा में जेपीसी ने पहल की है। यदि निष्पक्ष फैसला होता है तो वह विविधता का सम्मान और हठधर्मिता पर अंकुश लगाने वाला होगा।

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