‘विश्वविद्यालय प्रशासन एवं अल्पसंख्यकों पर कार्रवाई करने का भय पुलिस पर भी हो सकता है, देश की राजधानी में यह संकेत मिले हैं, जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय में हुई पिछले माह 16 अक्टूबर को प्रताड़ित परिवर्तित नाम रिचा द्वारा पुलिस में शिकायत देने के बाद अब एक माह गुजर जाने के बाद भी उस पर कोई प्रभावी कार्रवाई नहीं करने से।’ यह तब है जब छात्रा लोक की आवाज यानी कि पत्रकारिता (चतुर्थ स्तम्भ) से जुड़ी होने के साथ ही दिव्यांग है और जिसके सम्मान की बातें आए दिन हमारे ब्यूरोक्रेट, नेतागण करते रहते हैं। रिचा ने अब तक जो कुछ भी उसके साथ घटा है वह पुलिस को बताया है, जो यह बताने के लिए पर्याप्त हैं कि आखिर इस विश्वविद्यालय में चल क्या रहा है? उसके दिए साक्ष्य बता रहे हैं कि खुले तौर पर यहां (धर्मांतरण) इस्लामान्तरण कराया जा रहा है। जिसमें कि विद्यार्थी छोड़िए फेकल्टी तक सीधे शामिल हैं। रिचा अब भी अपने साथ न्याय होने और आरोपित पर प्रभावी कार्रवाई (एफआईआर) दर्ज होने का इंतजार कर रही है।
इस घटना के बाद हाल ही में सामने आई ‘कॉल फॉर जस्टिस’ की रिपोर्ट ने भी यह साफ बता दिया है कि कैसे अल्पसंख्यकों (इस्लामिक) विश्वविद्यालय होने के नाम पर यहां गैर-मुस्लिमों के साथ भेदभाव किया जाता है और उन पर मजहबीकरण (मतान्तरण) के लिए दबाव डाला जाता है। इस समिति ने यहां भेदभाव से जुड़ी मुख्य 27 घटनाओं के साथ कई अन्य घटनाओं का जिक्र किया है, जो सीधे गैर मुसलमानों के प्रति यहां हुए बुरे बर्ताव को दर्शा रही हैं।
दरअसल, जामिया मिलिया इस्लामिया विवि की दिव्यांग हिन्दू छात्रा को इस्लाम कबूलने और हिजाब पहनने से इनकार करने पर रेप का डर दिखाकर धमकाया तक गया था। हालांकि, वे इस तरह का व्यवहार सहने वाली अकेली गैर मुस्लिम छात्रा नहीं है, अन्य छात्राएं भी हैं जोकि यहां पढ़ा रहे कई इस्लामिक शिक्षकों एवं छात्रों के भेदभाव का शिकार हैं और उन्हें भी बार-बार हिन्दू होने के नाते अपमानित होना पड़ता है। इस्लाम को श्रेष्ठ बताने के साथ हिन्दू प्रतीक चिन्हों, परंपराओं, बहुविध देव पूजन पर प्रश्न खड़े करना और उसे इस्लाम की तुलना में बहुत नीचा दिखाने का प्रयास यहां आम बात है, पर वे अभी तक रिचा की तरह खुलकर सामने नहीं आई हैं, किंतु रिचा हिम्मती है, वह मीडिया के सामने अपनी की गई शिकायतों का जिक्र भी बहुत बेबाकी से करती हैं, साथ ही उन तमाम नामों से पर्दा उठाती हैं जोकि उस पर बार-बार इस्लाम अपनाने के लिए दबाव डालते रहे हैं ।
अब फिर एक बार रिचा से हुई एक्सक्लूसिव बातचीत में सामने आया है कि दिल्ली पुलिस का उसे कोई सहयोग अब तक नहीं मिला है, बार-बार वह जांच करने की ही बात कह रही है। रिचा ने कहा, “हद यह है कि उससे पुलिस अधिकारी कह रहे हैं कि तुम को इतनी ज्यादा जल्दी है तो दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 156 (3) के तहत, कोर्ट में मजिस्ट्रेट के पास अपनी शिकायत लेकर क्यों नहीं चली जातीं, वह सीधे इस केस में संज्ञेय अपराध की जांच के लिए पुलिस स्टेशन के प्रभारी अधिकारी को निर्देश दे देंगे” रिचा का आज दर्द यह है कि उसे अब यह लगने लगा है कि उसने जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय में जो भी कुछ हो रहा है, पुलिस में उसकी शिकायत करके कोई बहुत बड़ी गलती कर दी है।
रिचा ने कहा, “मुझ पर ही दबाव बनाया जा रहा है, हमसे ही साक्ष्य मांगे जा रहे हैं, जो पीड़ित है, अब वही एविडेंस लाकर दे, यह कैसी व्यवस्था है? मैं और मेरे घरवाले यही चाहते हैं कि एक निष्पक्ष जांच हो, किंतु यहां तो अब भी हमें ही निशाना बनाया जा रहा है, हमें लग रहा है हमने पुलिस के पास जाकर तो कोई गलती नहीं कर दी ! पुलिस अब भी विवि प्रशासन से वीडियो सीसीटीवी फुटेज मांगे जाने की बात कह रही है, मैं सिर्फ इतना चाहती हूं कि मुझे न्याय मिले और यहां की अन्य छात्राएं एवं लोग जो अत्याचार होते रहने पर भी चुप रहते हैं, वह भी अपनी सच्चाई उजागर करने आगे आएं” पीड़ित छात्रा अपना दर्द बताते हुए कहती है कि जब से उसने मुखरता से धर्म परिवर्तन के लिए बनाए जा रहे दबाव का विरोध करना शुरू किया है, तब से उन्हें लगातार गंभीर खतरों का सामना करना पड़ रहा है। इस विकलांगता के पीड़ित छात्रा का दर्द यह है कि सच कहने पर उसको उल्टा कटघरे में खड़ा किया जा रहा है।
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रिचा ने बताया कि जामिया मिलिया इस्लामिया विवि में जो पीड़ित है, उस की कही बातों एवं लगाए गए आरोपों को गंभीरता से लेने के स्थान पर विश्वविद्यालय प्रशासन ने उसी के खिलाफ 26 अक्टूबर को एक्शन ले लिया, विश्वविद्यालय के स्थायी कानूनी सलाहकार के माध्यम से जो मुझे कानूनी नोटिस भेजा है, उसकी भाषा एवं प्रारूप ही गैरकानूनी है। हालांकि मेरे द्वारा उसका उत्तर नहीं दिया गया, क्योंकि वही जब सही नहीं है तब उसका उत्तर क्या देंगे। उन्होंने बताया कि लगातार उन पर दबाव डाला जा रहा है कि पह अपनी शिकायत को वापस ले अन्यथा मानहानि के लिए कोर्ट में तैयार रहे, जबकि हकीकत यह है कि विश्वविद्यालय के कानूनी सलाहकार ने जो आरोप मुझ पर लगाए हैं, उनकी कोई जमीनी सच्चाई ही नहीं, सभी आरोप झूठे और निराधार हैं।
उल्लेखनीय है कि रिचा ने पहले विश्वविद्यालय में उन सभी से गुहार लगाई जो जिम्मेदार पदों पर बैठे हुए हैं, लेकिन जब देखा कि कोई कुछ नहीं कर रहा, उल्टा उसे ही परेशान किया जा रहा है, तब वह पुलिस के पास शिकायत लेकर पहुंची थी, जिसमें उसने बताया, “मैं एक साल से अधिक समय से कैंपस में उत्पीड़न, धमकी और जबरदस्ती के एक बेहद परेशान करने वाले पैटर्न से दुखी होकर आपसे मदद मांग रही हूं। इस स्थिति ने मेरे मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करने के साथ आज मेरे परिवार पर भी बहुत बुरा प्रभाव डाला है, ये सब मुझे इस्लाम अपनाने के लिए मजबूर करने के लिए किया जा रहा है।” रिचा ने इस बारे में अब तक क्या घटा, सिलसिले वार ढंग से बताया है, जिसमें सामने आया कि पिछले वर्ष 10 जुलाई, 2023 वह पहली तारीख है जब से उसे अनुचित फोन कॉल आना शुरू हुए, बाद में पता चला कि उसका फोन नंबर जामिया नगर में इब्ने सऊद नामक व्यक्ति द्वारा प्रसारित किया गया था। एक छात्र दानिश इकबाल ने एक अन्य छात्र की सहायता से उसे सामाजिक रूप से अलग-थलग करने के लिए अफ़वाहें तक फैलाईं।
अपनी आप बीती में रिचा अगस्त 2023 में घटी एक अन्य घटना का ज़िक्र करती हैं, जिसमें एक किरदार का नाम इकबाल और दूसरे का मीर कासिम है, इन दोनों ने उसे और अन्य छात्रों पर चुप रहने का दबाव बनाया था, जो स्पष्ट तौर पर गैर मुसलमानों के साथ घट रही घटनाओं पर प्रतिक्रिया देते और आवाज़ उठाते थे। रिचा का कहना है, “एक दिव्यांग छात्रा के रूप में, मुझे विशेष सुविधाओं की आवश्यकता थी, लेकिन इसे प्रबंधन द्वारा अस्वीकार कर दिया गया।” फिर इस साल के 20 अगस्त, 2024 तक उनके प्रति विश्वविद्यालय में विशेष समुदाय का उत्पीड़न और बढ़ गया, उन पर उपस्थिति को पूरा न करने का झूठा आरोप लगाया गया। मेरे घर पर अनुशासन हीनता का आरोप लगाने वाले पत्र तक भेजे गए। उन्होंने बताया कि इस विश्वविद्यालय के केंपस में ‘हिंदू धर्म और राम मंदिर के बारे में अपमानजनक टिप्पणियां करना आम बात है, अभिव्यक्ति का यह अर्थ कतई नहीं कि आप दूसरे के धर्म का मजाक बनाएंगे! लेकिन लगातार मेरे आसपास जो घट रहा था, वह मैं अनुभव कर रही थी कि मेरे विश्वास को तोड़ने के लिए यह सब किया जा रहा था । मुझे यहां परेशान करने के लिए कई तरह के हथकंडे अजमाए गए। आज मेरी व्यक्तिगत सुरक्षा और धार्मिक स्वतंत्रता दोनों ही दांव पर हैं।
कहनेवाले कह सकते हैं कि यह तो इस्लाम और जामिया मिलिया यूनिवर्सिटी की छवि को धूमिल करने के लिए मुसलमानों को बदनाम करने की सोच रखनेवालों का नजरिया है, जोकि जूठ पर आधारित है, किंतु जो साक्ष्य हैं, उनका क्या किया करें, वह तो झूठ नहीं बोलते। घटना एक या दो हों तो छिपाई जा सकती हैं, पर जामिया मिलिया यूनिवर्सिटी में अनेक घटनाएं अब तक इस प्रकार की घटी हैं, जिनके चलते जूठ को छिपाया नहीं जा सकता है और ये घटनाएं चीख-चीख कर यह साफ बता रही हैं कि कैसे-कैसे हिन्दुओं एवं अन्य गैर मुसलमानों को इस्लाम की प्रेक्टिस कराने का प्रयास यहां होता है और एक समय के बाद उसका पूरी तरह से कन्वर्जन करा दिया जाता है। फिर वह भी पांच टाइम का नमाज और अल्लाह-अल्लाह करता है। कई बार देखने में आया है कि जो गैर मुसलमान जिन्हें वह कन्वर्ट करना चाहते हैं, यदि उनकी (इस्लामिक की) बातों में नहीं फंसता तो उसका सामाजिक बहिष्कार तक यहां किया जाता है। कई इस्लामिक शिक्षक एवं छात्र ऐसे लोगों को “हिंदू आतंकवादी” यह शब्द उनके लिए उपयोग करते हुए देखे जा सकते हैं।
कन्वर्जन रोकना है तो मददगारों पर एक्शन लेना होगा
इन स्थितियों को देखकर विश्व हिन्दू परिषद के राष्ट्रीय प्रवक्ता विनोद बंसल का मानना हैं कि वर्तमान भारत में इस तरह की कई घटनाएं लगातार सामने आ रही हैं । यदि कन्वर्जन कराने वाले जिहादियों को रोकना है तो उन्हें और उनके मददगारों पर कड़े कानूनों के तहत कार्रवाई करनी होगी। इतना ही नहीं जबरन धर्मांतरण कराने वालों की नागरिकता तक समाप्त करनी होगी । समग्र हिन्दू समाज का जागरण जरूरी है। जो भी कन्वर्जन, मतान्तरण, धर्मांतरण में संलिप्त पाया जाता है, सरकार को चाहिए कि ऐसे लोगों की शत प्रतिशत संपत्ति जब्त करे। भारतीय संविधान लोभ, लालच, भय से किए जानेवाले कन्वर्जन का विरोध करता है। देश संविधान के हिसाब से चलेगा, ना कि इस्लामिस्टों एवं जिहादियों के अनुसार । इस प्रकार के सभी अतिवादियों पर कठोर कार्रवाई होनी चाहिए । जब देश भर में कठोर कार्रवाईं शुरू होंगी तो मुझे उम्मीद है कि वर्तमान में देश भर में जो हालात दिखाई देते हैं, उनमें बड़ा परिवर्तन आ जाएगा।
यहां रिचा जो अपने कड़वे अनुभव बता रही है, यही बात न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) एस. एन. ढींगरा, पूर्व दिल्ली पुलिस आयुक्त एस. एन. श्रीवास्तव और तथ्य-खोज समिति के अन्य सदस्यों द्वारा बताई गई है । 64 पृष्ठ के इस दस्तावेज़ में 27 व्यक्तियों की गवाही शामिल है, जिनमें शिक्षण कर्मचारी, गैर-शिक्षण कर्मचारी, वर्तमान छात्र और पूर्व छात्र तक हैं। इनमें से सात शिक्षण संकाय सदस्य, छह गैर-शिक्षण कर्मचारी, जबकि बाकी पीएचडी विद्वान और पूर्व छात्र हैं। निश्चित ही यह रिपोर्ट एक परेशान करने वाली तस्वीर पेश करती है, जिसमें कि इन सभी गवाहों ने जामिया मिलिया इस्लामिया में एक व्यवस्थित और जबरदस्ती धर्मांतरण करने-कराने का आरोप लगाया है। कई गवाहों ने खुलासा किया कि उन्हें करियर में उन्नति, शैक्षणिक अवसरों या विश्वविद्यालय के भीतर शांति बनाए रखने के लिए एक पूर्व शर्त के रूप में इस्लाम में मतान्तरित होने के लिए या तो लालच दिया गया या दबाव डाला गया था।
गवाहों के अनुसार, धर्मांतरण के लिए पदोन्नति के वादे, आसान कार्यभार और यहां तक कि स्वर्ग और नरक के बारे में धार्मिक तर्कों का इस्तेमाल लोगों को इस्लाम स्वीकार करने के लिए यहां किया जाता है । कुछ गवाहों ने गैर-मुसलमानों के खिलाफ़ घोर भेदभाव के माहौल का वर्णन किया, चाहे वे छात्र हों या संकाय सदस्य।“ईमान लाओ, और हम तुम्हारा और तुम्हारे बच्चों का करियर सुरक्षित करेंगे” जामिया मिलिया इस्लामिया (जेएमआई) के रजिस्ट्रार नाज़िम हुसैन ने एक दलित कर्मचारी से ये कहा था, ऐसे ही अन्यों के साथ के अनुभव और वक्तव्य हैं, जोकि धर्मनिरपेक्ष भारत में जहां संविधान का शासन है, बहुत परेशान करता है। फिलहाल परिवर्तित नाम रिचा जोकि एक दिव्यांग छात्रा भी है, उसे अपने साथ न्याय होने का इंतजार है। उसने पुलिस में शिकायत कर इस्लामिक कन्वर्जन के प्रयासों को खुलकर उजागर करने की हिम्मत दिखाई है । अब शेष कार्य पुलिस को करना है, रिचा आरोपियों पर एफआईआर दर्ज होने का इंतजार कर रही है।
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