आरंभ हुआ युवा शोधार्थियों का महाकुंभ विविभा 2024 : सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने किया उद्घाटन
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आरंभ हुआ युवा शोधार्थियों का महाकुंभ विविभा 2024 : सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने किया उद्घाटन

भारतीय शिक्षण मंडल द्वारा आयोजित ‘विविभा: 2024’ (विजन फॉर विकसित भारत) का त्रिदिवसीय शोधार्थी सम्मेलन एसजीटी विश्वविद्यालय, गुरुग्राम में आरंभ हुआ। सम्मेलन का उद्देश्य भारत केंद्रित शोध को प्रोत्साहन देना और युवा शोधार्थियों में नवाचार के प्रति जागरूकता बढ़ाना है।

by SHIVAM DIXIT
Nov 15, 2024, 08:43 pm IST
in भारत, शिक्षा
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गुरुग्राम । आस्था के कुंभ को तो खूब देखा- सुना होगा ,लेकिन शोध के महाकुंभ का शुभारंभ पहली बार गुरु द्रोण की कर्म भूमि गुरुग्राम में हुआ। भारतीय शिक्षण मंडल द्वारा आयोजित त्रिदिवसीय अखिल भारतीय शोधार्थी सम्मेलन का उद्घाटन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने किया। ‘विजन फॉर विकसित भारत’ (विविभा: 2024) अखिल भारतीय शोधार्थी सम्मलेन एसजीटी विश्वविद्यालय, गुरुग्राम, हरियाणा में 15 से 17 नवंबर 2024 तक आयोजित किया जा रहा है। आज के कार्यक्रम में भारत केंद्रित शोध को प्रोत्साहित कर युवाओं में शोध कार्य के प्रति जागरूकता लाने का अनूठा प्रयास किया गया ।

अच्छे शोध के लिए चिंतन के साथ प्रत्यक्ष प्रयास आवश्यक- डॉ मोहन भागवत जी

विविभा :2024 के उद्घाटन के दौरान आरएसएस के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने भारतीय शिक्षण मंडल की शोध पत्रिका ‘प्रज्ञानम’ का लोकार्पण किया। उन्होंने कहा कि दृष्टि की समग्रता ही भारत की विशेषता है। हर भारतवासी को अपना भारत, विकसित भारत, समर्थ भारत चाहिए। विकास के अनेक प्रयोग 2000 वर्षो में हो चुके हैं। उनकी अपूर्णताएं लोगों के ध्यान में आयीं। विश्व इन विफलताओं के समाधान के लिए भारत की ओर देख रहा है। विकास करें या पर्यावरण की रक्षा करे, दोनों में से एक को चुना जा सकता है। दोनों को साथ लेकर चलेंगे, तभी बचेंगे। विकास और पर्यावरण दोनों को एक साथ लेकर चलना ही पड़ेगा।

16वीं सदी तक सभी क्षेत्रों में भारत दुनिया का अग्रणी देश था। बहुत सी बातें हमने खोज ली थी ,हम रुक गए, इसीलिए पतन हो गया। भारत में 10000 वर्षों से खेती हो रही है, अन्न-जल-वायु के विषाक्त होने की समस्या कभी नहीं आई। पाश्चात्य अन्धानुकरण के कारण यह समस्या आई है। विकास एकाकी हो गया है, जबकि इसे समग्रता से देखा जाना चाहिए। मनुष्य जीवन का स्वामी है, पर दास बन बैठा है। जीवन चलाने में जीवन खो बैठा है। विकास केवल अर्थ काम की प्राप्ति नहीं है। उसका विरोध नहीं है।अपितु आत्मिक और भौतिक समृद्धि दोनों विकास एक साथ चलने चाहिए। हमारी प्रकृति ऐसी है कि हम पेटेंट पर विश्वास नहीं करते। ज्ञान सबको मिलना चाहिए परन्तु उस ज्ञान का प्रयोग विवेक से करें।

तकनीक आनी चाहिए, लेकिन निर्ममता नहीं होनी चाहिए। हर हाथ को काम मिले। दुनिया हमसे सीखे कि ये सारी बातें साथ लेकर कैसे चलते हैं। अनुकरण करने लायक चीजें ही लें, लेकिन अन्धानुकरण नहीं करना चाहिए।

व्यवस्था बंधन नहीं होना चाहिए। व्यवस्था ज्ञान को बढ़ाने का साधन होना चाहिए। पढ़ाई खत्म होने के बाद भी सीखते रहना चाहिए। सीखते-सीखते व्यक्ति बुद्ध बन जाता है। हम किसी की नकल नहीं करेंगे। हमें खुद के ही प्रतिमान खुद खड़े करने होंगे। अगर आज से ही हम इसमें लग गए तो आगामी 20 वर्षों में विजन-2047 का भारत का सपना साकार होते हुए मैं देख रहा हूँ।

विकसित भारत २०४७ की संकल्पना को मूर्त रूप प्रदान करने में युवा शोधार्थियों की महत्वपूर्ण भूमिका : डॉ एस सोमनाथ

इसरो के अध्यक्ष डॉ एस सोमनाथ ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के विकसित भारत की संकल्पना को साकार करने का यही सही समय है। उन्होंने मिशन चंद्रयान की सफलता का उल्लेख करते हुए कहा कि हमारा लक्ष्य 2040 तक चंद्रमा पर मानव भेजना और अपना स्पेस स्टेशन तैयार करना है। उन्होंने कहा की भारत की विश्वगुरु की संकल्पना को साकार करते हुए हमें ऐसा भारत बनाना है ताकि लोग यहां पर प्रसन्नता पूर्वक रहें।

जब हम विकसित भारत के संकल्प के साथ यहाँ बैठे हैं तो मैं कहना चाहता हूं कि यह महायज्ञ की शुरुवात है- डॉ कैलाश सत्यार्थी

नोबेल शांति पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी ने आयोजन की मुक्त कंठ से प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि ऐसा पहली बार हुआ है कि लगभग 2 लाख प्रतिभागियों में से चुने हुए 1200 शोधार्थी एक साथ एक छत के नीचे बैठे हैं। आज जिस महायज्ञ की शुरुआत हो रही है इसका सन्देश पूरी दुनिया को आलोकित करेगा। भारतीय परंपरा की जड़ें बहुत गहरी हैं। जो कुछ भी आप जीवन में हासिल करते हैं उसे कितना गुना करके दुनिया को वापस लौटाते हैं, उससे जो आनंद प्राप्त होता है वही भारतीय परंपरा है। हम समावेशी विकास के साथ आगे बढ़ते हैं। विकास की परिभाषा और अवमानना हमारी अपनी है। भारत को किसी की नकल की करने और किसी के आगे हाथ फैलाने की जरूरत नहीं है। हमारे ऋषियों ने यह हमें सिखाया है। तेरे-मेरे का भाव समाप्त करें तभी वसुधैव कुटुम्बकम की भावना साकार होगी।

उद्घाटन समारोह के दौरान इसरो चीफ डॉ. एस सोमनाथ और नोबेल शांति विजेता कैलाश सत्यार्थी की मौजूदजी में आरएसएस के सरसंघचालक डॉ मोहन भागवत जी ने एक विशाल प्रदर्शनी का भी शुभारंभ किया।

कणाद से कलाम तक की यात्रा

विविभा : 2024 में कणाद से कलाम तक की भारत की यात्रा का प्रदर्शन किया गया। इस दौरान 10000 शैक्षणिक – शोध संस्थानों और सरकारी व निजी विश्वविद्यालयों ने “भारतीय शिक्षा”, “विकसित भारत के लिए दृष्टि” और “भविष्य की तकनीक” जैसे विषयों पर अपने शोध और नवाचारों का प्रदर्शन किया। इस प्रदर्शनी के माध्यम से यह बताने का प्रयास किया गया कि सनातनी शिक्षा से लेकर आधुनिक शिक्षा तक के सफर में भारत कहां है।

प्रदर्शनी में प्राचीन गुरुकुलों से लेकर , वर्तमान तकनीकी अनुकूलन समेत भारतीय शिक्षा के विकास और छत्रपति शिवाजी के समय के अस्त्र-शस्त्रों से लेकर भारतीय वायु सेना की ब्रह्मोस मिसाइल तक को विभिन्न स्टालों पर प्रदर्शित किया गया। यह प्रदर्शनी देशभर से आए शोधकर्ताओं और विद्यार्थियों के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र रही। खास तौर पर IIIT मणिपुर के स्टॉल पर ‘काबुक कोइदुम’ विशेष रूप से चर्चा में रहा। गुड, चावल, तिल और मेवों से बनी यह पारंपरिक मिठाई, मणिपुर की सांस्कृतिक विरासत को देश भर से परिचित करने का महत्वपूर्ण प्रयास रहा।

350 शोध आनंदशालाएं होंगी आयोजित

विविभा : 2024’ को सफल बनाने के लिए भारतीय शिक्षण मंडल-युवा आयाम ने 5 लाख शोधकर्ताओं और लगभग एक लाख शिक्षकों/शिक्षाविदों से संपर्क किया। इस दौरान कुल 350 शोध आनंदशालाएं आयोजित की गयीं। संगठन ने एक शोध पत्र लेखन प्रतियोगिता भी आयोजित की, जिसमें 1,68,771 विद्यार्थियों ने पंजीकरण किया। 45 मूल्यांकन समितियों और 1400 विषय विशेषज्ञों द्वारा मूल्यांकन के बाद, विभिन्न राज्यों के शोधकर्ताओं के 1200 शोध पत्र विविभा 2024 में भागीदारी के लिए चुने गए। राज्य स्तर पर चयनित इन शोध पत्रों के लिए शोधार्थियों को प्रमाणपत्र प्रदान किए गए।

भारतीय शिक्षण मंडल के अखिल भारतीय अध्यक्ष डॉ. सच्चिदानंद जोशी, ने विविभा: 2024 का उद्देश्य बताते हुए कहा कि युवा शोधार्थी, शोध और नवाचार के माध्यम से भारत को विश्वगुरु बनाने में अपना सर्वश्रेष्ठ योगदान दें। सामूहिक विकास में क्या व्यवधान हैं, उसपर शोध होना चाहिए। विज्ञान और तकनीक इसमें बहुत बड़ा योगदान दे सकती है। दुनिया समस्याओं को जानती है और उनके नेता समाधानों को जानते हैं। वह नई समस्या पैदा करते हैं और उनका समाधान ढूँढते हैं। यह समस्या है इसमें शोध की आवश्यकता है। इसलिए हमें समस्याओं के ईंधन से समाधान की अग्नि प्रज्ज्वलित कर पूरे विश्व को प्रकाशित करना है। भारतीय शिक्षण मंडल के अखिल भारतीय महामंत्री भरत शरण शिंह ने समस्त आगंतुकों, शोधार्थियों व SGT विश्वविद्यालय के परिवार के प्रति आभार व्यक्त किया। विविभा: 2024 के अंतर्गत भारतीय ज्ञान परंपरा व आर्टिफीशियल इंटेलीजेन्स पर आधारित भव्य प्रदर्शनी में सहभागिता करने के लिए ISRO, DRDO, BRAHMOS, भारतीय सेना और वायु सेना, IISER, IIT और केंद्रीय विश्वविद्यालयों व शैक्षिक संस्थानों के प्रति विशेष आभार व्यक्त किया।

विविभा: 2024 का उद्देश्य ऐसे बौद्धिक युवा तैयार करना है जो वैश्विक नेतृत्व कर भारतीय परंपरा के जरिए विश्व की समस्याओं का निदान बता सके। भारत में नई शिक्षा नीति 2020 का शुभारंभ हो चुका है।इसी के माध्यम से शिक्षा में भारतीयता लाने के प्रयास से ‘विजन फॉर विकसित भारत’ के तहत आयोजित शोध महाकुंभ के द्वारा भारत को विश्व गुरु बनने का रोड मैप तैयार होगा।

Topics: Dr. Mohan BhagwatIndian Education Boardइसरोयुवा शोधार्थी सम्मेलनवसुधैव कुटुंबकमविकसित भारत 2047Vasudhaiva Kutumbakamकैलाश सत्यार्थीचंद्रयान मिशनशोध और नवाचारchandrayaan missionVividhbha 2024Kailash SatyarthiYoung Research Fellows ConferenceResearch and InnovationDeveloped India 2047विविभा-2024डॉ. मोहन भागवतभारतीय शिक्षण मंडल
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