ईरान की मुस्लिम कट्टरपंथी सरकार लगातार असहमति में उठने वाली आवाजों को सदा-सदा के लिए दबाने की कोशिश कर रही है। सरकार के इस कार्य में वहां की न्यायपालिका बखूबी उसका साथ निभाती है। हालिया घटनाओं में न्यायपालिका की भूमिका से तो ऐसा ही प्रतीत हो रहा है। ताजा मामला 2022 में महसा अमिनी की हिरासत में मौत के बाद भड़के देशव्यापी लोगों के विरोध प्रदर्शनों के दौरान बासिज मिलिशिया के एक मेंबर की मौत से जुड़ा हुआ है। जिसमें, हत्या के आरोप में 6 लोगों को आपराधिक कोर्ट ने मौत की सजा सुनाई है।
ईरान इंटरनेशनल की रिपोर्ट के मुताबिक, वकील बाबाक पकनिया द्वारा एक्स पर शेयर की गई पोस्ट में बताया गया है जिन लोगों को मौत की सजा सुनाई गई है, इनमें अमीर मोहम्मद खोस इकबाल, अली मोहम्मद काफी, मिलाद अरमून, नवीद नजरान, अलीरेजा बरमरजपुरनाक और हौसैन नेमाती शामिल हैं। इन सभी के खिलाफ ईरानी आपराधिक अदालत की 13वीं शाखा ने मौत की सजा का फरमान सुनाया। खास बात ये है कि इन सभी के खिलाफ अपराध साबित करने के लिए सबूतों का अभाब बताया जा रहा है। बावजूद इसके इन 6 लोगों को मौत की सजा सुनाई गई।
उल्लेखनीय है कि अदालत ने मौत की सजा “क़िसास अल-नफ़्स” यानि कि इस्लामी प्रतिशोधी मौत की सज़ा के तहत सुनाई है। हालांकि,दावा किया जा रहा है कि इसके खिलाफ अपील करने के दरवाजे अभी भी खुले हुए हैं। रिपोर्ट में यह भी दावा किया जा रहा है कि हिरासत में अभियुक्तों को बुरी तरह से टॉर्चर किया गया और उनके साथ दुर्व्यवहार भी किया गया। इन घटनाओं के खुलासे के ईरान में मानवाधिकार के गिरते स्तर को लेकर चिंताएं बढ़ गई हैं।
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ईरान के प्रमुख राजनीतिक कार्यकर्ता होसैन रोनाघी ने मौत की सजा पर एक्स के जरिए कहा कि इन बच्चों को जिस तरह से कोर्ट ने मौत की सजा दी है, उससे एक बात स्पष्ट हो गई है कि ज्यूडिशियरी को विरोधियों और प्रदर्शनकारियों को दबाने के हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है। बता दें कि विरोध प्रदर्शनों के मामले में अब तक 9 आरोपियों को फांसी दी जा चुकी है। इससे पहले मोहम्मद घोबाड़ो, मजीदरेजा रहनावार्ड, मोहम्मद मेहदी करामी और मोहसेन शेकरी को भी फांसी दी गई थी।
हाल ही में हिजाब के विरोध में प्रदर्शन करते हुए आजाद विश्वविद्यालय की छात्रा ने अपने कपड़े उतारे थे। इसके बाद उसे गिरफ्तार कर लिया गया था। उसका हाल भी महसा अमीनी जैसा होने की आशंका है।
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