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उपचुनाव में कांग्रेस पार्टी की सहयोगियों से बढ़ती दूरी

Published by
अभय कुमार

इस बार के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने अपने कई सहयोगियो के कारण 99 सीटें जीतीं और नेता विपक्ष का पद भी हासिल किया लेकिन इस प्रदर्शन का गुबार समाप्त होता जा रहा है। जैसे-जैसे लोकसभा चुनाव की यादें धूमिल हो रही हैं और आगे के चुनाव आ रहे हैं वैसे-वैसे कांग्रेस फिर अपनी पुरानी राजनीतिक दुर्गति को प्राप्त करती जा रही है।

विधानसभा उप-चुनाव का राज्यवार विश्लेषण करें तो देखते हैं कि लगभग प्रत्येक राज्य में कांग्रेस पहले से कमजोर हुई है। कई राज्यों में कांग्रेस के सहयोगीयों ने उसका साथ छोड़ा तो वहीं कई राज्यों में कांग्रेस को उसके सहयोगी ने सीट ही नहीं दी।

असम में पांच सीटों पर विधानसभा का उपचुनाव हो रहा है। कांग्रेस पार्टी अकेले ही सभी सीटों पर चुनाव लड़ रही है। उव छोटे दलों को अपने साथ जोड़ने का प्रयास कर सकती थी, लेकिन ऐसा नहीं किया। कांग्रेस पिछले दो विधानसभा चुनावों से राज्य में सत्ता से बाहर है। वह असम में रणनीतिक भूल कर बैठी।

पश्चिम बंगाल में पहले से ही गमजदा कांग्रेस के लिए ये चुनाव घाव पर नमक लगाने के समान ही हैं। उसे यहां मजबूरी में सभी छह विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ना पड़ रहा है। कांग्रेस का पश्चिम बंगाल में कम्युनिस्ट दलों से गठबंधन था। उसी आधार पर राष्ट्रीय स्तर पर कम्युनिस्ट दलों को अपने साथ जोड़कर अपने कुनबे को बड़ा दिखने का प्रयास करती थी। कम्युनिस्ट दलों के साथ कांग्रेस पार्टी का केरल में मुख्य मुकाबला है, वहीं त्रिपुरा और पश्चिम बंगाल में कांग्रेस का कम्युनिस्ट दलों के साथ समझौता है। वर्तमान में कम्युनिस्ट दलों का कांग्रेस के साथ सिर्फ त्रिपुरा राज्य में गठबंधन है। पबंगाल कांग्रेस के लिए उन पांच राज्यों में एक हैं जहां उसका एक भी विधायक नहीं है।

बिहार में चार विधानसभा की सीटों पर उपचुनाव हैं, मगर बिहार में कांग्रेस पार्टी के सहयोगी दलों ने कांग्रेस को सीट देना तो दूर की बात सीटों के तालमेल के वास्ते बातचीत भी नहीं की। कांग्रेस के नेताओं को उनके गठबंधन के दलों ने खुले तौर पर चुनाव प्रचार के लिए आमंत्रित भी नहीं किया।

उत्तर प्रदेश में नौ सीटों पर विधानसभा उपचुनाव में कांग्रेस पार्टी को उसके सहयोगी दल समाजवादी पार्टी ने एक भी सीट देना मुनासिब नहीं समझा। सपा ने एकतरफा सीटों की घोषणा करके कांग्रेस को उसके अपने औकात में रहने की नसीहत भी दे डाली। कांग्रेस का 2024 के लोकसभा चुनाव में 2009 के बाद सबसे ठीक प्रदर्शन था। कांग्रेस उत्तर प्रदेश में विश्वास हासिल करना चाह रही थी लेकिन सपने उसके अरमानों पर पानी फेर दिया। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की यह दुर्गति तब है जब राहुल गांधी रायबरेली से लोकसभा के सांसद हैं। सपा ने कांग्रेस का आत्मविश्वास तोड़ने के लिए उसके साथ ऐसा खेल खेला है।

राजस्थान से भी कांग्रेस के लिए कोई अच्छी खबर नहीं दिख रही हैं। कांग्रेस ने राज्य से 2024 लोकसभा चुनाव में उम्मीद से अधिक सीटें क्या जीतीं कि उसने अपने सहयोगियों के साथ बुरा सलूक ही शुरू कर दिया। अब यह जिम्मेदारी सहयोगी दलों की है कि वे कांग्रेस के इस असल रंगत को पहचानें। राजस्थान में लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के अच्छे प्रदर्शन का श्रेय उसके द्वारा व्यापक गठबंधन बनाये जाने के कारण जिसमें राष्ट्रीय लोकतान्त्रिक पार्टी, भारत आदिवासी पार्टी, कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सिस्ट) शामिल थी। मगर खींवसर विधानसभा उपचुनाव में कांग्रेस और राष्ट्रीय लोकतान्त्रिक पार्टी आपस में ही चुनाव लड़ रही हैं। कांग्रेस का यह कदम काफी चौंकानेवाला हैं क्योंकि इस सीट को राष्ट्रीय लोकतान्त्रिक पार्टी के प्रमुख हनुमान बेनीवाल द्वारा खाली किया गया था।

कांग्रेस का इस सीट से चुनाव लड़ने का निर्णय इसलिए भी सोचनीय हैं क्योंकि 2023 में इस सीट पर भाजपा और राष्ट्रीय लोकतान्त्रिक पार्टी में मुख्य लड़ाई हुई थी और कांग्रेस के उम्मीदवार की जमानत जब्त हो गई थी। सलुम्बर और चौरासी विधानसभा सीटों पर कांग्रेस और लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी की सहयोगी भारत आदिवासी पार्टी आपस में ही चुनाव लड़ रहे हैं। चौरासी विधानसभा सीट की भी हालात कांग्रेस पार्टी के लिए खींवसर जैसा ही है। विगत 2023 में विधानसभा चुनाव में चौरासी विधानसभा सीट पर भारत आदिवासी पार्टी ने भाजपा को बड़े अंतर से हराया था। कांग्रेस की इस सीट पर जमानत तक जब्त हो गई थी फिर भी उसके द्वारा राजस्थान में सातों विधानसभा सीटों पर उपचुनाव में इस तरह का एकतरफा निर्णय पार्टी के लिए लम्बे समय तक लिए एक घाटे का सौदा होगा। राजस्थान में कांग्रेस यह तब कर रही है जब वह विपक्ष में है। इन दलों से सहयोग से कांग्रेस जो 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में अपना खाता तक नहीं खोल पायी थी वह अपने तीनों सहयागियों के साथ इस बार 11 लोकसभा सीट जीत गई थी।

गुजरात में दो विधानसभा सीटों वाव और विसवादार विधानसभा पर उपचुनाव हो रहा है। वाव सीट पर उपचुनाव कांग्रेस पार्टी के विधायक द्वारा बनासकांठा लोकसभा सीट से सांसद बनने के कारण हो रहा है। वाव सीट कांग्रेस पार्टी और भाजपा दोनों के लिए प्रतिष्ठा की लड़ाई है। कांग्रेस पार्टी का राजस्थान की तरह ही गुजरात में भी 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में खाता तक नहीं खुल सका था। मगर 2024 में बनासकांठा लोकसभा सीट से कांग्रेस पार्टी के वाव सीट के विधायक द्वारा चुनाव जीतने के कारण अब भाजपा इसे जीतना चाहेगी।

पंजाब में चार विधानसभा सीटों उपचुनाव हो रहा है, जिसमें तीन सीटों पर विधायकों के सांसद बनने के कारण सीट खाली हुई थी। एक सीट चब्बेवाल पर कांग्रेस के विधायक का पार्टी से इस्तीफा व आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार के तौर पर होशियारपुर लोकसभा सीट से चुनाव जीतने के कारण उपचुनाव हो रहा है। चार सीटों के विधायक सांसद बने मगर चब्बेवाल सीट की कहानी थोड़ी अलग ही है। इसमें 2022 विधानसभा चुनाव के अनुसार तीन सीट कांग्रेस पार्टी वो एक सीट आम आदमी पार्टी के पाले में थी। पंजाब विधानसभा में इन सीटों के चुनाव परिणाम से राज्य की सरकार के सेहत पर कोई असर नहीं पड़ेगा मगर इन चार सीटों का परिणाम दो बातों को स्पष्ट करेगा।

पहला कि अरविंद केजरीवाल की मंशा मुख्यमंत्री भगवंत मान को बदलने की है। अगर आशा के अनुरूप परिणाम नहीं आता है तो केजरीवाल इसको बहाना बनाकर उनको बदल कर अपने पसंद के किसी दूसरे व्यक्ति को मुख्यमंत्री बना सकते हैं। वर्तमान पंजाब में कांग्रेस पार्टी का जनाधार सिकुड़ता ही जा रहा है। अगर कांग्रेस इन उपचुनावों में अच्छा नहीं कर पाती है तो पंजाब में जहां एक समय वो सबसे मजबूत पार्टी थी वहीं वो दिल्ली, जम्मू-कश्मीर, उत्तरप्रदेश, बिहार जैसे हालात में आने में देर नहीं लगेगी।

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