नई दिल्ली, (हि.स.)। सुप्रीम कोर्ट ने देशभर चल रहे बुलडोजर एक्शन को लेकर दिशा-निर्देश जारी किया है। जस्टिस बीआर गवई की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि अगर कानून की प्रक्रिया का पालन किए बिना किसी आरोपी या दोषी के घर को ध्वस्त कर दिया जाता है तो उसका परिवार मुआवजे का हकदार होगा। मनमाने ढंग से या अवैध तरीके से काम करने वाले अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई भी की जाएगी।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कार्यपालिका न्यायाधीश बनकर किसी आरोपी की संपत्ति को ध्वस्त करने का निर्णय नहीं ले सकती। न्याय करने का काम न्यायपालिका का है। कार्यपालिका न्यायपालिका की जगह नहीं ले सकती है। कोर्ट ने कहा कि हमारे सामने सवाल यह है कि क्या कार्यपालिका किसी ऐसे व्यक्ति का आश्रय छीन सकती है जिस पर अपराध का आरोप हो। इस मामले में सभी पक्षों को सुनने के बाद हम आदेश जारी कर रहे हैं, जिसके लिए हमने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व के कई फैसलों पर भी विचार किया है। कोर्ट ने कहा कि ये राज्य सरकार की जिम्मेदारी है कि वह राज्य में कानून-व्यवस्था बनाए रखे और राज्य में कानून का ही राज होना चाहिए। हमने शक्तियों के पृथक्करण के साथ-साथ इस बात पर भी ध्यान दिया है कि कार्यकारी और न्यायिक वर्ग अपने संबंधित क्षेत्रों में कैसे काम करे।
कोर्ट ने एक अक्टूबर को इस मामले पर फैसला सुरक्षित रख लिया था। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा था कि हम एक धर्मनिरपेक्ष देश हैं, हम सब नागरिकों के लिए दिशा-निर्देश जारी करेंगे। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अवैध निर्माण हिंदू, मुस्लिम कोई भी कर सकता है, हमारे दिशा-निर्देश सभी के लिए होंगे, चाहे वह किसी भी धर्म या समुदाय के हों। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि सार्वजनिक सड़कों पर, वॉटर बॉडी या रेलवे लाइन की जमीन पर अतिक्रमण से बने मंदिर, मस्जिद या दरगाह जो कुछ भी हैं उसे तो जाना ही होगा, क्योंकि पब्लिक ऑर्डर सर्वोपरि है। साल में चार से पांच लाख डिमोलिशन की कर्रवाई होती है। ये आंकड़ा पिछले कुछ सालों का है। उल्लेखनीय है कि 17 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने विभिन्न राज्यों में हो रही बुलडोजर कार्रवाई पर रोक लगा दी थी।
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