वर्ष 2014 के अप्रेल माह में दक्षिण कश्मीर में आतंकवादियों के खिलाफ लड़ने वाले और अपना सर्वस्व बलिदान करने से पहले तीन आतंकियों को मौत की घाट उतारने वाले मेजर मुकुंद वरदराजन के जीवन पर बनी फिल्म “अमरन” को लेकर तमिलनाडु में कुछ मुस्लिम नेताओं ने मोर्चा खोल लिया है।
दीपावली के अवसर पर यह फिल्म रिलीज हुई थी और इस फिल्म की प्रशंसा तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन ने भी की। यह फिल्म तमिलनाडु के एक ऐसे युवक की कहानी है, जिन्होनें अपनी मातृभूमि भारत की रक्षा करने के लिए अपने प्राणों का बलिंदान दे दिया था।
शिवकार्तिकेयन और साईं पल्लवी के अभिनय से सजी इस फिल्म में मेजर मुकुंद वरदराजन की वीरता की कहानी को दिखाया है कि कैसे उन्होनें अपने प्राणों की परवाह न करते हुए एक घर में छिपे आतंकियों से लोहा लिया और कैसे तीन आतंकियों को मौत के घाट उतारा था। मुख्यमंत्री ने फिल्म के निर्देशक फ़िल्म के निर्देशक राजकुमार पेरियासामी की भी तारीफ़ की थी. उन्होंने कहा था कि राजकुमार पेरियासामी ने मेजर मुकुंद वरदराजन की बहादुरी और बलिदान को भावनात्मक फ़िल्म में दिखाया है।
मेजर मुकुंद वरदराजन को उनके इस वीरतापूर्ण कार्य के लिए मरणोपरांत वर्ष 2015 में अशोक चक्र से सम्मानित किया गया था। इस फिल्म में कहानी उनके जीवन के विविध पहलुओं के इर्दगिर्द घूमती है। मेजर मुकुंद वरदराजन 44 राष्ट्रीय राइफल्स का हिस्सा थे। वर्ष 2014 में उनकी यूनिट की तैनाती जम्मू-कश्मीर के शोपिया जिले में थी। 25 अप्रेल 2014 को उन्हें खुफिया जानकारी मिली कि शोपियां जिले के काजीपथरी गांव में जैश-ए-मोहम्मद के कमांडर अल्ताफ वानी सहित कुछ कट्टर आतंकवादियों को देखा गया है। उसके बाद वे अपने साथी सैनिकों के साथ वहाँ गए और आतंकियों द्वारा उनपर गोली बारी चालू हो गई थी। इसी मुठभेड़ में मेजर मुकुंद वरदराजन ने अपने प्राणों का बलिदान दे दिया था। और इस फिल्म को देखकर लोगों की आँखें नम हो रही हैं।
मगर अब इसे लेकर भी राजनीति शुरू हो गई है। इस फिल्म में जहां आतंकियों की ही बातें की गई हैं, यह दिखाया गया है कि कैसे आतंकी भारत की धरती को लहूलुहान करना चाहते हैं। कैसे आतंकी देश के युवाओं को अपना निशाना बना रहे हैं, मगर आतंकियों को आम कश्मीरी मुसलमानों से जोड़ते हुए एसडीपीआई एवं कई और मुस्लिम संगठनों ने इस फिल्म को इस्लामोफोबिक कहा है।
द हिंदू के अनुसार एसडीपीआई के राज्य सचिव के करीम ने कहा है कि “अमरन लोगों के बीच अल्पसंख्यक विरोधी भावनाएँ भड़का रही है और यह पूरी तरह से बायोपिक नहीं है। इसके विपरीत, यह फिल्म मुसलमानों के खिलाफ नफरत फैलाने के लिए बनाई गई है। इसलिए, हम इसकी कड़ी निंदा करते हैं। इससे पहले कमल हासन ने विश्वरूपम (2013) बनाई थी, जिसमें भी मुसलमानों के प्रति नफरत के तत्व थे।“
एसडीपीआई के अतिरिक्त मनिथानेया मक्कल काची नेता एमएच जवाहिरुल्ला ने भी इस फिल्म को मुस्लिमों के प्रति घृणा फैलाने वाली फिल्म कहा है। उसने आतंकियों को भूमि के अधिकार के लिए लड़ने वाले एक्टिविस्ट कहा है। जवाहिरुल्लाह ने कहा कि अमरन में भूमि अधिकार कार्यकर्ताओं को आतंकवादी के रूप में दिखाया जा रहा है तथा अप्रत्यक्ष रूप से घृणा के सूक्ष्म संदेश के साथ पूरे मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाया जा रहा है।
इस फिल्म निर्माण में अभिनेता एवं निर्माता कमल हसन का भी योगदान है। इस फिल्म का निर्माण कमल हासन, आर. महेंद्रन, विवेक कृष्णानी ने किया है। एसडीपीआई के कार्यकर्ताओं ने कमल हसन के कार्यालयों के बाहर प्रदर्शन किया।
मनिथानेया मक्कल काची नेता एमएच जवाहिरुल्ला ने तो इस फिल्म को कश्मीर फाइल्स और केरल स्टोरी जैसी फिल्मों के समान बताया और कहा कि इन फिल्मों की तरह यह फिल्म भी घृणा का नैरिटिव फैला रही है।
इसके साथ ही इस फिल्म को लेकर कई लोगों को यह भी आपत्ति है कि इसमें कश्मीर में आजादी के नारे को गलत तरीके से दिखाया है।
इस फिल्म को जहां तमिलनाडु के मुख्यमंत्री, तमिलनाडु कॉंग्रेस के नेताओं और भाजपा के नेताओं से प्रशंसा मिल रही है, मगर यह देखना बहुत ही स्तब्ध करने वाला है कि तमिलनाडु के मुस्लिम नेता अपने प्रांत के उस वीर मेजर मुकुंद वरदराजन के बलिदान के साथ न होकर आतंकियों के एजेंडे के साथ खड़े हैं।
muslimmirror की एक रिपोर्ट के अनुसार तमिलनाडु के कुछ मुस्लिम संगठनों ने इस फिल्म का विरोध किया है और इस फिल्म की स्क्रीनिंग पर प्रतिबंध लगाने की मांग की है।
इन हालातों को देखते हुए चेन्नई पुलिस ने उन थिएटर की सुरक्षा बढ़ा दी है, जहां पर इस फिल्म की स्क्रीनिंग हो रही है।
यह देश की विडंबना है कि यहाँ पर आतंकियों के हाथों प्राण गँवाने वाले मेजर की कहानी फिल्म के रूप में दिखाने को इस्लामोफोबिया कहा जाता है और आतंकियों के प्रति हमदर्दी को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के रूप में दिखाया जाता है।
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