अमेरिका में राष्ट्रपति पद के चुनाव का फैसला आने के बाद डोनाल्ड ट्रम्प बहुमत से राष्ट्रपति पद पर निर्वाचित हुए हैं। यह उनका दूसरा कार्यकाल होगा।
यह याद रखना आवश्यक है कि अमेरिका के नए चुनाव परिणाम की कड़ियां (रिपब्लिकन लहर) पिछले चुनाव में न भूलने वाली कुछ परिघटनाओं से जुड़ी हैं। यानी एक ऐसी लहर जिसे गत चुनाव में बहुत प्रयासपूर्वक दबा दिया गया था। उदाहरण के लिए, वामपंथी ‘इकोसिस्टम’ द्वारा ‘डेमोक्रेट्स’ के पक्ष में खड़ा किया गया ‘ब्लैक लाइव्स मैटर’ अभियान एक बहुत बड़ा चक्र था। कहने को इसमें मानवीय दृष्टिकोण, संवेदना और अकाट्य तर्क भी थे। इन सबसे वामपंथ के पक्ष में भारी हवा बनी। मगर नहीं भूलना चाहिए कि ये सारी चीजें 20 डॉलर के एक ‘फर्जी बिल’ पर टिकी थीं।
यानी एक गढ़ा हुआ ‘आंदोलन’, चीन द्वारा अमेरिकी चुनाव को प्रभावित करने की सुगबुगाहटें और तकनीकी तिकड़मों तक, इस लहर को रोकने के लिए वामपंथी तरकश से हर संभव तीर चला। अपने पूर्व कार्यकाल में अर्जित लोकप्रियता के बूते सोशल मीडिया पर डोनाल्ड ट्रम्प एक ‘कद्दावर शख्सियत’ थे और ‘पार्लर प्लेटफार्म’ पर वे बहुत लोकप्रिय थे। परंतु अमेजन ने ‘पार्लर’ या कहिए ट्रम्प के पैरों तले का कालीन खींचते हुए इस पूरे मंच को ही एक झटके में मटियामेट कर दिया।
शांति पर क्रांति और लोकतंत्र पर अराजकता को प्राथमिकता देने वाले वामपंथी मोर्चे ने यह साफ कर दिया कि विश्व के सबसे पुराने लोकतंत्र को अस्थिर करने की लड़ाई का चक्रव्यूह रचने में वह कोई कसर बाकी नहीं रखेगा। अब शतरंज की बाजी फिर पलटी है..
नए परिणामों में परिदृश्य बदला दिखता है, क्योंकि वामपंथी ‘डेमोक्रेट्स’ से उन्हीं की शैली में ट्रम्प के नेतृत्व में ‘रिपब्लिकन’ मोर्चे ने बदला लिया है। कल तक वामपंथी की मुट्ठी में बंद ट्विटर की ‘चिड़िया’ फुर्र हो चुकी थी। सोशल मीडिया की शक्ति एलन मस्क के साथ लामबंदी के तौर पर ‘हाथी के साथ’ दिखाई दी। एलन मस्क न सिर्फ रिपब्लिकन पार्टी के साथ आए, बल्कि ट्विटर का जो वामपंथी वैचारिक पूर्वाग्रह था, वह बाकी विचारों को रोकता था, बाधित करता था, उसकी छंटाई करते हुए यह जीत हुई है।
समझने वाली बात यह कि डाटा क्रांति के दौर में सोशल मीडिया और एआई की सीढ़ियां चढ़ते हुए कुलांचें भर रही तकनीकी दिग्गज कम्पनियों का राजनीतिक पूर्वाग्रह से मुक्त रहना लोकतंत्र की रक्षा के लिए कितना महत्वपूर्ण है। एक्स (पूर्व में ट्विटर) क्या अब पूर्णतया निष्पक्ष है या उसका राजनीतिक झुकाव एक अलग प्रकार का पूर्वाग्रह निर्मित करेगा, यह एक अलग बहस हो सकती है, किंतु यह तो स्पष्ट ही है कि सोशल मीडिया के लिए यह वामपंथी चंगुल से निष्पक्ष होने की दिशा में पहला महत्वपूर्ण कदम है।
न्यूजरूम में वामपंथी घुसपैठ एक वैश्विक मुद्दा है। सोशल मीडिया में अराजकता की सेंधमारी और कथित ‘फैक्टचेक’ की आड़ में नफरत की खेती, वामपंथ और जिहादी जुगलबंदी इसका नया विस्तार है।
यह समझना होगा कि नकारात्मकता के इस खतरनाक गठजोड़ ने वैश्विक संवाद में नई चुनौतियां उत्पन्न की हैं। वामपंथी मीडिया अब इस तथ्य से मुंह नहीं चुरा सकता कि वास्तविक प्रगतिशील मुद्दों को उठाना उसकी प्राथमिकता है ही नहीं। इसकी बजाय उसका एजेंडा अपनी जेब भरने के लिए सूचनाओं की निष्पक्षता और विविधता में कमी लाना है।
बात केवल राजनीतिक पैंतरे की होती तो दुनिया इस ओर से आंखें मूंद सकती थी, किंतु इसका परिणाम यह है कि समाज में एकतरफा जानकारी फैलती है, जिससे नागरिकों के बीच विभाजन बढ़ सकता है।
टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में, ट्विटर (अब ७) जैसी सोशल मीडिया कंपनियों पर आरोप है कि वे कुछ विशेष विचारों को बढ़ावा देकर वैश्विक ‘नैरेटिव’ को प्रभावित करती हैं। ट्विटर का ७ में रूपांतरण और एलन मस्क के नेतृत्व में उसका नया दृष्टिकोण एक महत्वपूर्ण कदम है। मस्क ने इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की नई शुरुआत के रूप में देखा, जहां सभी विचारों को जगह मिले। लेकिन इसके साथ ही चिंता बनी हुई है कि यदि कसौटी डगमगाई, तो गलत सूचना और नफरत फैलने का खतरा बढ़ सकता है। यह संतुलन, खासकर एक ऐसे समय में जब समाज की सोच पर डिजिटल प्लेटफार्मों का गहरा प्रभाव है, बहुत महत्वपूर्ण है।
अब बात करें डोनाल्ड ट्रम्प की विजय के निहितार्थ की। विशेषज्ञ मानते हैं कि ट्रम्प की जीत न केवल अमेरिका, बल्कि भारत और विशेष रूप से हिंदुओं के लिए सकारात्मक प्रभाव ला सकती है। उनके पहले कार्यकाल में भारत-अमेरिका संबंधों में मजबूती आई थी, और उन्होंने भारत को अपने सहयोगियों में एक अहम स्थान दिया था। ट्रम्प द्वारा ‘हिंदूफोबिया’ का स्पष्ट विरोध करना और आतंकवाद के खिलाफ कड़ा रुख अपनाना भारत के लिए महत्वपूर्ण है। ट्रम्प ने पाकिस्तान जैसे देशों पर दबाव बनाकर आतंकवाद का समर्थन रोकने का प्रयास किया था, जो हिंदू अस्मिता और भारतीय समुदाय के लिए राहत भरा रहा।
यदि ट्रम्प प्रशासन इन विषयों पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिबद्धता जताता है तो विश्व शांति और मानवता के हित में इसके दूरगामी परिणाम होंगे।
वैसे, वामपंथी ‘इकोसिस्टम’ के लिए, ट्रम्प की विजय एक चुनौती हो सकती है। उनकी राष्ट्रवादी नीति उस वामपंथी एजेंडे के विपरीत है, जिसमें अराजकता में परिवर्तित होने वाली ‘उदारता’ और जनसंख्या के संतुलन के जरिए लोकतंत्र को प्रभावित करने वाली घुसपैठ और खुली सीमाओं का समर्थन अधिक होता है। ट्रम्प का ‘अमेरिका फर्स्ट’ दृष्टिकोण उन देशों पर ध्यान केंद्रित करता है, जो उनके प्रमुख सहयोगी हैं, जिसमें भारत एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है।
चीन के संदर्भ में भी ट्रम्प की विजय भारत के लिए फायदेमंद हो सकती है। चीन के प्रति ट्रम्प की आक्रामक नीति ने भारत को सामरिक लाभ पहुंचाया है। सीमाओं पर बढ़ते तनाव के समय में यह कड़ा रुख भारत के लिए सुरक्षा के लिहाज से महत्वपूर्ण हो सकता है।
अंतत: ट्रम्प की विजय से भारत और हिंदू समुदाय को वैश्विक स्तर पर तार्किक सहयोग मिल सकता है। ट्रम्प की राष्ट्रवादी और कट्टरपंथ-विरोधी नीतियां वामपंथी ‘इकोसिस्टम’ के लिए चुनौती भरी हो सकती हैं, लेकिन भारत के लिए एक नई दिशा खोल सकती हैं। हालांकि यह नहीं भूलना चाहिए कि अमेरिका की प्राथमिकता अमेरिका है, किंतु जानकार मानते हैं कि ट्रम्प के नेतृत्व में उनकी नीतियों से भारत-अमेरिका संबंध मजबूत होंगे, यह समय है जब विश्व के सबसे पुराने तथा विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र की जुगलबंदी विश्व इतिहास में नया अध्याय लिख सकती है।
@hiteshshankar
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