मुंबई, जिसे देश की आर्थिक राजधानी माना जाता है, हाल के वर्षों में बदलते जनसांख्यिकी स्वरूप का साक्षी बन रहा है। टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (TISS) की एक ताजा रिपोर्ट ने शहर की जनसंख्या संरचना पर गहरा प्रभाव डालने वाले बदलावों का संकेत दिया है। यह रिपोर्ट विशेष रूप से हिंदू और मुस्लिम समुदायों की जनसंख्या में हुए बदलावों और आगामी वर्षों में इसके संभावित प्रभावों पर केंद्रित है।
मुंबई में जनसांख्यिकी बदलाव के आंकड़े
TISS की इस रिपोर्ट के अनुसार, 1961 में मुंबई में हिंदुओं की आबादी 88% थी, जो 2011 में घटकर 66% पर पहुंच गई। वहीं, मुस्लिम जनसंख्या में 1961 में 8% से बढ़कर 2011 में 21% तक का उछाल देखने को मिला। अगर ये रुझान बरकरार रहे, तो अनुमान है कि 2051 तक हिंदू आबादी 54% से भी कम हो जाएगी, जबकि मुस्लिम आबादी में 30% तक की वृद्धि हो सकती है।
बांग्लादेशी और रोहिंग्या प्रवासियों की संख्या में वृद्धि
रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है कि बांग्लादेश और म्यांमार से आए अवैध घुसपैठियों, विशेष रूप से बांग्लादेशी और रोहिंग्या समुदाय के लोगों, की संख्या में तेजी से बढ़ोतरी हो रही है। यह वृद्धि मुंबई की सामाजिक और आर्थिक संरचना पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रही है। TISS के अध्ययन में बताया गया कि ये घुसपैठिये मुख्य रूप से झुग्गी क्षेत्रों में बस रहे हैं, जिससे शहर के बुनियादी ढांचे पर दबाव बढ़ रहा है।
बांग्लादेश की तरफ से हजारों की संख्या में रोज भारत आ रहे घुसपैठियों की तरह ही म्यांमार की ओर से भी बहुत अधिक लोागों की घुसपैठ हो रही है। म्यांमार में वर्ष 2021 में हुए सैन्य तख्तापलट के बाद भारत में घुसपैठ करनेवाली की संख्या में अचानक तेजी आई, जोकि लगातार जारी है। यदि इन चार सालों में इस सीमा से भारत में आए घुसपैठियों की संख्या का अंदाजा लगाया जाएगा तो यह संख्या संभावित पचास हजार से भी ऊपर पहुंच चुकी है। इनमें से परिवार के साथ बढ़ते क्रम में इनकी संख्या सिर्फ चार साल में ही अनुमानित डेढ़ लाख पार हो चुकी है।
शहर की सामाजिक-आर्थिक संरचना पर प्रभाव
एक छोटा सा कस्बा एक जगह भारत में म्यांमार की सीमा से भारत में घुसे रोहिंग्याओं और अन्य घुसपैठियों से बसाया जा सकता है, जोकि देश में सर्वत्र फैल गए हैं। ये एक जगह से आनेवालों का आंकड़ा सिर्फ चार सालों का है, जबकि भारत में घुसपैठ की ये समस्या लगातार पिछले 70-75 सालों से चल रही है।
TISS की रिपोर्ट के अनुसार, बढ़ते अवैध घुसपैठियों की संख्या से मुंबई के स्वास्थ्य, शिक्षा, बिजली, पानी और अन्य सार्वजनिक सेवाओं पर बुरा असर पड़ रहा है। झुग्गी क्षेत्रों जैसे गोवंडी, कुर्ला और मानखुर्द में इन घुसपैठियों की बढ़ती संख्या से इन बुनियादी सेवाओं में कमी महसूस की जा रही है। सार्वजनिक सेवाओं की कमी, गरीबी और बेरोजगारी जैसे मुद्दे भी स्थानीय निवासियों के लिए बड़ी समस्या बनते जा रहे हैं।
वोट बैंक की राजनीति और फर्जी दस्तावेज़ों का संकट
रिपोर्ट के अनुसार, कुछ राजनीतिक दल इन अवैध घुसपैठियों का उपयोग अपने वोट बैंक बढ़ाने के लिए कर रहे हैं। फर्जी वोटर आईडी, राशन कार्ड, और आधार कार्ड के जरिए चुनावों में इन प्रवासियों की भागीदारी को सक्षम बनाया जा रहा है। इससे न केवल मुंबई की सांस्कृतिक पहचान पर असर पड़ रहा है, बल्कि शहर की सुरक्षा और स्थायित्व भी खतरे में हैं।
सीबीआई के पूर्व डायरेक्टर जोगिंदर सिंह 2014 में इस बात को तथ्यों के साथ कहा था कि देश में लगभग पांच करोड़ बांग्लादेशी घुसपैठ कर बैठे हुए हैं। उनके अनुसार ये सभी स्थानीय लोगों के राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक अधिकार छीन रहे हैं। हमारे रोजगारों पर कब्जा जमा रहे हैं। सरकार तो इन्हें अपने स्तर पर रोकने की कोशिश करती है, लेकिन जो पूर्व से बांग्लादेश से आकर असम में बसे हैं, वे घुसपैठियों को चुपके से अपने यहां रख लेते हैं और अपना पूरा संरक्षण देते हैं। मदरसों का रोल इसमें सबसे अहम है। पूरा तंत्र देश भर में मदरसों और मस्जिदों का काम करता है, जो न सिर्फ घुसपैठियों के कागजात तैयार करवाते हैं बल्कि देश के अलग-अलग हिस्सों में भेजने तक की व्यवस्था करते हैं, इसलिए इनकी पहचान कर इन्हें पकड़ना आसान नहीं होता।
स्थानीय और घुसपैठियों के बीच तनाव
अवसरों और संसाधनों के असमान बंटवारे के चलते स्थानीय और घुसपैठियों समुदायों के बीच तनाव बढ़ रहा है। TISS की स्टडी में बताया गया कि इनमें से कई महिलाएं मानव तस्करी के जरिए लाई गई हैं और अब देह व्यापार में संलग्न हैं। इनमें से 40% घुसपैठिए अपने परिवारों को बांग्लादेश में पैसे भेज रहे हैं। ये घुसपैठिए भारत आकर चुपचाप बसना शुरू करते हैं, फिर स्थानीय लोगों के रोजगार में सेंधमारी करते हैं, और जब ये एक क्षेत्र में बाहुल्य हो जाते हैं तो, वहां के स्थानीय लोगों को विशेषकर हिन्दुओं को पलायन के लिए मजबूर कर देते हैं। वहीँ कई बार देखने मैं आया है की संप्रदायिक विवादों में इन घुसपैठियों के द्वारा पथराव और आगजनी की घटना को अंजाम दिया जाता रहा है।
राजनीतिक प्रतिक्रिया
TISS की स्टडी रिपोर्ट के जारी होने के बाद राजनीतिक बयानबाज़ी भी शुरू हो गई है। NCP के नेता नसीम सिद्दीकी ने TISS के द्वारा रिपोर्ट का राजनीतिक लाभ उठाने की कोशिश करने का दावा किया है। वहीं, BJP के नेता किरीट सोमैया ने रिपोर्ट को पूरी तरह से वास्तविक और सटीक बताते हुए कहा कि ये अवैध घुसपैठिए शहर के लिए एक गंभीर खतरा बन रहे हैं।
क्या कहता है विशेषज्ञ वर्ग?
वरिष्ठ पत्रकार और समाज के जानकार इस रिपोर्ट को अत्यंत महत्वपूर्ण मान रहे हैं। उनका कहना है कि यह रिपोर्ट शहर में अवैध घुसपैठियों की समस्या भविष्य में इसके संभावित प्रभावों की ओर इशारा करती है। ये सभी हवाई मार्ग से नहीं बल्कि बोर्डर पर कर भारत में अवैध रूप से दाखिल हुए हैं। अभी हाल ही में एक बांग्लादेशी यू-टयूबर ने अपनी एक रिपोर्ट के जरिए यह बताया कि कैसे बांग्लादेश से भारत में घुसपैठ की जाती है।
TISS की यह रिपोर्ट मुंबई में बदलते जनसांख्यिकी के कारणों और उसके परिणामों पर एक गहन दृष्टिकोण प्रदान करती है। यदि इन मुद्दों का समाधान जल्द ही नहीं किया गया, तो भविष्य में मुंबई की सामाजिक और सांस्कृतिक पहचान पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है।
Shivam Dixit started his career in journalism from 2015. He first worked as Special Correspondent in Mansukh Times (Weekly Newspaper) and later came to Delhi and worked as Digital Editor in Sanchar Times Media Group.
After this he joined the News Network of India (NNI) and held the post of Reporter Coordinator in India's paper here. After successfully launching India's Paper Project, Shivam Dixit started his new innings as Social Media In-charge at News1India, Dainik Hint and Niwan Times.
After working in various media organizations for many years, Shivam Dixit is currently working in the national weekly 'Panchjanya' continuously since 1948.
Talking about his achievements, he managed 500 websites of various newspapers of "India's Papers" as manager in NNI. Talking about the output of this project, this project was registered in Limca Book of Records.
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