दिल्ली

शिक्षा के उत्थान को समर्पित था दीनानाथ बत्रा जी का जीवन

Published by
Kuldeep singh

भारतीय शिक्षा में सुधार और संस्कारयुक्त शिक्षा के लिए प्रतिबद्ध, विद्वान और प्रेरणादायक शिक्षाविद् दीनानाथ बत्रा जी का 93 वर्ष की आयु में निधन हो गया। आज (8, नवंबर, 2024) सुबह 8 से 10 तक बत्रा जी की पार्थिव देह को अंतिम दर्शन के लिए नारायण विहार स्थित शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के केंद्रीय कार्यालय में रखी जाएगी।

शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के पूर्व अध्यक्ष और शिक्षा बचाओ आंदोलन के राष्ट्रीय संयोजक बत्रा जी का जीवन शिक्षा के उत्थान को समर्पित था। उनके निधन पर शिक्षा जगत में शोक की लहर दौड़ गई है। 5 मार्च, 1930 को डेरा गाजीखान (अब पाकिस्तान में) में जन्में बत्रा जी ने अपनी शिक्षा लाहौर विश्वविद्यालय से पूरी करने के बाद उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में अपना योगदान शुरू किया। बत्रा जी ने कुरुक्षेत्र के श्रीमद भागवत गीता कॉलेज में प्रधानाचार्य के रूप में कार्य किया और बाद में डी.ए.वी. विद्यालय डेराबस्सी (पंजाब) और गीता वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय, कुरुक्षेत्र में प्रधानाचार्य रहे। वे हरियाणा शिक्षा बोर्ड, दिल्ली शिक्षा बोर्ड, दिल्ली नैतिक-शिक्षा समिति और अखिल भारतीय हिंदुस्तान स्काउट्स गाइड के कार्यकारी अध्यक्ष जैसे कई महत्वपूर्ण संस्थानों में भी सक्रिय रहे।

शिक्षा बचाओ आंदोलन के प्रेरणा स्रोत

बत्रा जी का सबसे बड़ा योगदान शिक्षा बचाओ आंदोलन समिति के माध्यम से रहा। उन्होंने शिक्षा के भारतीयकरण और राष्ट्रीय शिक्षा नीति में सुधार के लिए कई संघर्ष किए। “शिक्षा बचाओ आंदोलन” के तहत उन्होंने भारतीय संस्कृति और शिक्षा में भारतीय मूल्यों के समावेश पर जोर दिया और पाठ्यक्रम में बदलाव के लिए आवाज उठाई। शिक्षा के क्षेत्र में बत्रा जी के उत्कृष्ट योगदान के लिए उन्हें कई पुरस्कार और सम्मान मिले। इनमें भारत स्काउट्स द्वारा ‘मेडल ऑफ मैरिट,’ हरियाणा शिक्षा बोर्ड द्वारा प्रशंसा प्रमाण-पत्र, राष्ट्रपति द्वारा श्रेष्ठ शिक्षक का राष्ट्रीय पुरस्कार, स्वामी कृष्णानंद सरस्वती सम्मान, साहित्य श्री सम्मान और विशिष्ट व्यक्तित्व अलंकरण शामिल हैं।

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दीनानाथ बत्रा जी की रचनाएं

शिक्षा के प्रति अपने गहन दृष्टिकोण को पुस्तकों के माध्यम से जन-जन तक पहुंचाने का बत्रा जी का प्रयास अविस्मरणीय है। उनकी प्रमुख रचनाओं में “शिक्षा का भारतीयकरण,” “तेजोमय भारत,” “प्ररेणादीप” (भाग 1-4), “विद्यालय: प्रवृत्तियों का घर,” “वैदिक गणित,” और “हमारा लक्ष्य” शामिल हैं। इन पुस्तकों में भारतीय शिक्षा प्रणाली, संस्कारयुक्त शिक्षा और सामाजिक मूल्यों का वर्णन मिलता है।

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