झारखंड विधानसभा चुनाव : कांग्रेस की परजीविता सहयोगी दलों के लिए बन रही है समस्या
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झारखंड विधानसभा चुनाव : कांग्रेस की परजीविता सहयोगी दलों के लिए बन रही है समस्या

राज्य दर राज्य कांग्रेस पार्टी का खिसकता जनाधार संकेत है कि अब कांग्रेस केवल वैशाखियों के सहारे ही चुनावी वैतरणी पार करने की सोच सकती है।

by अभय कुमार
Nov 6, 2024, 06:17 pm IST
in मत अभिमत
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कांग्रेस पार्टी की परजीविता समय के साथ परिलक्षित होती जा रही है। कांग्रेस पार्टी हमेशा अपने सहयोगी दलों के लिए एक अभिशाप की तरह रहती है और अपने सहयोगी दलों को चुनाव में कमजोर करने का काम करती है। राज्य दर राज्य कांग्रेस पार्टी का खिसकता जनाधार इस बात का संकेत है कि अब कांग्रेस केवल वैशाखियों के सहारे ही चुनावी वैतरणी पार करने की सोच सकती है।

हाल ही में संपन्न हुए जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 38 सीटों पर लड़कर मात्र 6 (15.8%) सीटें जीतीं। बिहार में 2020 विधानसभा चुनाव में 70 सीटों पर चुनाव लड़कर 19 (27.1%) सीटें जीतीं, जबकि उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के साथ 2017 के विधानसभा चुनाव में 114 सीटों पर लड़कर सिर्फ 7 (6%) सीटें ही जीत पाई।

महाराष्ट्र और झारखंड में कांग्रेस की रणनीति

वर्तमान में महाराष्ट्र और झारखंड के चुनाव आहूत हैं। कांग्रेस इन दोनों राज्यों में अपनी भूमिका को नेपथ्य में रखकर केवल सहयोगी दलों पर निर्भर है। झारखंड में कांग्रेस झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो), राष्ट्रीय जनता दल (राजद) और माले के सहारे चुनावी मैदान में उतरी है।

हालांकि, झारखंड में भी कांग्रेस पार्टी की यह नीति दिखाई दे रही है कि गठबंधन के बावजूद सहयोगियों के खिलाफ अपने उम्मीदवार उतार रही है। वर्तमान झारखंड विधानसभा चुनाव में, इंडी गठबंधन में धनवार विधानसभा सीट पर माले और झामुमो, बिश्रामपुर और छतरपुर सीटों पर राजद बनाम कांग्रेस का चुनावी घमासान देखने को मिल रहा है। इतना ही नहीं, कांग्रेस-झामुमो नीत गठबंधन राज्य भाजपा के बड़े चेहरों में से एक बाबूलाल मरांडी के खिलाफ भी एकमत से उम्मीदवार नहीं उतार पाया है। आमतौर पर विपक्षी नेता के खिलाफ उम्मीदवार उतारकर उसे अपने क्षेत्र में व्यस्त रखने की रणनीति अपनाई जाती है, लेकिन इंडी गठबंधन इस चुनाव में अपनी हार मानकर केवल प्रक्रिया का हिस्सा बनता दिखाई दे रहा है।

झारखंड में कांग्रेस-राजद गठबंधन का विडंबनापूर्ण इतिहास

यह विडंबना है कि झारखंड राज्य के गठन से पूर्व संयुक्त बिहार के मुख्यमंत्री लालू यादव ने कहा था कि “झारखंड मेरी लाश पर बनेगा,” और अब कांग्रेस को उनकी पार्टी के साथ गठबंधन करना पड़ रहा है। राजद ने कई बार राज्य में कांग्रेस और झामुमो का चुनावों और सरकारों में सहयोग किया है। इन दलों ने मिलकर राजद के प्रेमचंद गुप्ता को राज्यसभा तक भी पहुंचाया है।

झारखंड में कांग्रेस का परजीवी प्रदर्शन

झारखंड में 2014 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 62 सीटों पर चुनाव लड़ा और बिना किसी प्रमुख स्थानीय दल से गठबंधन किए महज 6 सीटें ही जीत सकी। वहीं, 2019 में कांग्रेस ने झामुमो के साथ गठबंधन किया और 31 सीटों पर लड़कर 16 सीटें जीतीं। इससे कांग्रेस की परजीवी प्रवृत्ति दिखाई देती है।

2009 के झारखंड विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने भाजपा से अलग हुए बाबूलाल मरांडी की पार्टी झारखंड विकास मोर्चा (प्रजातांत्रिक) के साथ गठबंधन किया था। इस गठबंधन के तहत कांग्रेस को 56 और झाविमो को 19 सीटों पर चुनाव लड़ना था। हालांकि, अंतिम समय में कांग्रेस ने 61 सीटों और झाविमो ने 25 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे, जिससे पांच सीटों पर दोस्ताना संघर्ष हुआ। इन सीटों में बाघमारा और बोकारो सीटें झाविमो ने जीतीं, जबकि कांग्रेस किसी भी सीट पर झाविमो से आगे नहीं रही।

2005 का झारखंड विधानसभा चुनाव : कांग्रेस-झामुमो का गठबंधन

झारखंड के प्रथम विधानसभा चुनाव 2005 में कांग्रेस ने झामुमो के साथ गठबंधन किया था, लेकिन फिर भी दोनों दलों ने 9 सीटों पर दोस्ताना संघर्ष किया। इन सीटों में देवघर, गोड्डा, बरकागांव, सिमरिया, बोकारो, छतरपुर, हुसैनाबाद, गढ़वा और टुंडी शामिल थे। इस चुनाव में झामुमो का प्रदर्शन बेहतर रहा, और कांग्रेस की स्थिति कमजोर नजर आई।

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