विज्ञान और तकनीक

इंटरनेट पर ड्रॉपशिपिंग: इस हाथ ले, उस हाथ दे

Published by
बालेन्दु शर्मा दाधीच

इंटरनेट, ई-कॉमर्स और सोशल मीडिया का लाभ उठाते हुए आजकल जो नए किस्म के कारोबार किए जा रहे हैं, उन्हीं में से एक है ड्रॉपशिपिंग। इसकी परिकल्पना बहुत दिलचस्प है। संभव है कि कभी आपने भी ऐसा कुछ करने की बात सोची हो, लेकिन बाद में आपके मस्तिष्क ने ही कह दिया हो कि खयाली पुलाव पकाना बंद करो। लेकिन ड्रॉपशिपिंग खयाली पुलाव नहीं है।

आपने देखा होगा कि अधिकांश बाजारों में जब आप किसी दुकान में किसी सामान के लिए आर्डर देते हैं तो दुकानदार किसी से फोन पर बात करता है और आपको कुछ देर इंतजार करने के लिए कहता है। थोड़ी देर में कोई व्यक्ति किसी दूसरी दुकान से आपका सामान लेकर आता है और वह आपको थमा दिया जाता है। यहां पर मूल दुकानदार के पास दुकान में सामान नहीं है, फिर भी उसने आपके साथ कारोबार किया, सामान बेचा और अपना मुनाफा कमाया। इन दुकानदारों द्वारा सामान न रखने के कई कारण हैं, जैसे-सीमित निवेश की आवश्यकता, सामान की दरों में उतार-चढ़ाव से अप्रभावित रहना और सामान के पुराने पड़ जाने, खराब हो जाने, नष्ट हो जाने जैसी समस्याओं से पूरी तरह मुक्ति।

इसी परिकल्पना का आधुनिक और ज्यादा व्यापक रूप है ड्रॉपशिपिंग। इसमें आप अपना आनलाइन कारोबार शुरू करते हैं, जिसके पास किसी किस्म का सामान नहीं होता। लेकिन फिर भी आप किसी ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म (जैसे अमेजॉन, शॉपिफाई, फ्लिपकार्ट या मीशो आदि) के जरिए या फिर अपनी वेबसाइट के जरिए ग्राहकों के आर्डर लेना शुरू कर देते हैं। लेकिन इन आर्डर को पूरा करने के लिए आपके पास तो कुछ भी नहीं है। सो, आप इन्हीं सामान के वास्तविक आपूर्तिकर्ताओं या विनिर्माताओं के साथ पहले से अनुबंध कर चुके होते हैं कि अपने पास आने वाले आर्डर को आप उनके पास भेज देंगे।

इन आर्डर को पूरा करना उनकी जिम्मेदारी है। वे बाकायदा सामान पैक करेंगे, उस पर आपका ठप्पा लगाएंगे और कूरियर सेवा के जरिए आपके ग्राहकों को भेज देंगे। ग्राहकों को पता ही नहीं चलेगा कि उन्हें यह सामान किसने भेजा है और पता लग भी जाए तो उन्हें इससे क्या? लेकिन इस प्रक्रिया में आपने किसी निवेश के बिना, या सामान को खरीदे बिना, डिजाइन किए बिना, गोदाम की सुविधा के बिना, कूरियर कंपनी के साथ माथापच्ची किए बिना आर्डर पूरा भी कर दिया और अपना मुनाफा कमा लिया।

उधर, जिस मूल आपूर्तिकर्ता ने सामान भेजा, उसे अपना फायदा मिल गया। तो सब के सब खुश- आप, आपूर्तिकर्ता, ग्राहक और कूरियर कंपनी भी।

संक्षेप में, यही ड्रॉपशिपिंग के कारोबार का तौर-तरीका है। किसी-किसी विक्रेता के लिए इसके तरीके थोड़े-बहुत अलग हो सकते हैं। जैसे-आप खुर्जा में रहते हैं, जहां पर पीतल के बर्तनों, मूर्तियों आदि का कलात्मक काम होता है। आपने इन्हीं चीजों को बेचने के लिए आनलाइन कारोबार शुरू किया। जब कोई आर्डर आया तो आप अपने पड़ोस की किसी दुकान पर गए, उस सामान को खरीदा और खुद ही कूरियर से ग्राहक को भेज दिया।

यह कारोबार सुनने में थोड़ा चालाकी भरा लगता है, लेकिन व्यापार तो व्यापार है। अनाज, फलों, सब्जियों, सोना-चांदी आदि के कारोबार में दलाली वालों के काम से तुलना कीजिए। ये लोग भी फोन पर ही लाखों का कारोबार कर लेते हैं, जबकि बहुत संभव है कि उनके पास चार फुट गुणा पांच फुट की छोटी-सी जगह मात्र हो।

ड्रॉपशिपिंग का कारोबार भारत में पूरी तरह से वैध है और इन दिनों बहुत फल-फूल रहा है। ज्यों-ज्यों ई-कॉमर्स का कारोबार बढ़ेगा, ड्रॉपशिपिंग भी बढ़ती जाएगी। 2026 तक भारत में ई-कॉमर्स कारोबार के 200 अरब डॉलर (लगभग 16 लाख करोड़ रुपये) तक पहुंचने के आसार हैं।
(लेखक माइक्रोसॉफ्ट एशिया में वरिष्ठ अधिकारी हैं)

 

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