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नवंबर में ‘इस्लामोफोबिया मंथ’ मना रहा पश्चिम : लोगों ने कट्टरपंथी मुस्लिमों और आतंकियों के अत्याचार बताकर दिखाई औकात

Published by
सोनाली मिश्रा

इन दिनों जब यूरोप सहित पूरा विश्व ही कट्टरपंथी मजहबी तत्वों से त्रस्त है और यूरोप में अवैध शरणार्थी ही नहीं बल्कि अफगानिस्तान आदि से शरण लिए लोग वहाँ के स्थानीय लोगों के साथ तमाम अत्याचार कर रहे हैं, उन्हें मार रहे हैं, लड़कियों के साथ बलात्कार कर रहे हैं, पश्चिम में हर साल की तरह ही एक ऐसा महीना मनाया जा रहा है, जो इन घावों पर नमक छिड़कने जैसा है।

2024 के नवंबर को भी पिछले कई वर्षों की तरह इस्लामोफोबिया मंथ मनाया जा रहा है। इस्लामोफोबिया अवेयरनेस मंथ अर्थात इस्लामोफोबिया अवेयर मन्थ एक गैर-सरकारी संगठन है, जिसकी स्थापना कई संगठनों ने मिलकर वर्ष 2012 में की थी। और लंदन मुस्लिम सेंटर में नवंबर 2012 में एक ईवेंट के माध्यम से इस अभियान को शुरू किया था।

इस ईवेंट ने एक वैश्विक मान्यता वाले अभियान को शुरू किया। लंदन में इस पूरे महीने में स्कूल्स, यूनिवर्सिटी, एनएचएस ट्रस्ट, पुलिस, संगठनों, कॉर्पोरेट और अन्य संस्थानों द्वारा आयोजन किए जाते हैं। इस अभियान का उद्देश्य है प्रशिक्षण और संसाधनों के माध्यम से ज्यादा से ज्यादा लोगों के साथ मजबूत रिश्ते बनाना।

क्या होता है इस्लामोफोबिया.?

आम तौर पर हम लोग अक्सर ये शब्द मुस्लिम और कथित लिबरल लोगों के मुंह से सुनते रहते हैं कि अमुक को इस्लामोफोबिया है। या वह इस्लामोफोबिक है! ऐसे में प्रश्न यह उठता है कि इसका अर्थ क्या है और किन लोगों को इसके दायरे में लाया जाता है। इस्लामोफोबिया का अर्थ होता है इस्लाम या मुसलमानों के प्रति बेकार का डर या घृणा। मुसलमानों के यकीनों से नफरत। और इस नफरत के आधार पर उन्हें डराया जाना, धमकाना आदि।

उनके साथ दुर्व्यवहार करना, या फिर उनके खिलाफ लोगों को भड़काना। उनके प्रतीकों को निशाना बनाना। उन्हें घर न बेचना, उन्हें घर किराए पर न देना आदि।

मुस्लिमों के विरुद्ध कुछ कहना इस्लामोफोबिया और हिंदुओं के विरुद्ध बोलना “फ्रीडम ऑफ स्पीच!”

जब भी कोई आतंकी हमला आदि होता है या फिर मुस्लिम कट्टरपंथियों द्वारा कोई हिंसक कृत्य किया जाता है, तो उसके खिलाफ बोलने को या कदम उठाने तक को इस्लामोफोबिया कहा जाने लगा है। इस्लाम के विरुद्ध कुछ बोलने को इस्लामोफबिया कह दिया जाता है, जबकि हिंदुओं के विरुद्ध यदि कुछ कहा जाता है तो उसे “फ्रीडम ऑफ स्पीच” कहा जाता है।

इस्लामोफोबिया जैसे शब्द और इस महीने को मनाए जाने पर सोशल मीडिया में उबाल

1 नवंबर को लंदन के मेयर सादिक ने इस माह को मनाए जाने की घोषणा की। और इसके साथ ही कई और कथित लिबरल नेताओं ने ऐसा किया। इस महीने को मनाए जाने के दोगलेपन को लेकर अब सोशल मीडिया पर लोग तंज कस रहे हैं। मगर यह बहुत ही हैरानी की बात रही कि सादिक खान ने एक्स पर अपने पोस्ट में उत्तर देने का विकल्प नहीं रखा था।

यूरोप के वे लोग जो इस्लामी कट्टरपंथ से लड़ रहे हैं और जो लोग इस्लामी कट्टरपंथ का शिकार हो रहे हैं, जिनकी लड़कियां मजहबी यकीन के कारण यौन हिंसा का शिकार हो रही हैं, वे अब उसे लेकर मुखर हो रहे हैं और लिख रहे हैं। लोगों ने एक्स पर वर्ल्ड ट्रेड टावर वाली घटना की तस्वीरें साझा की है और लिखा है – Happy #IslamophobiaAwarenessMonth

एक यूजर ने चैट जीपीटी के साथ हुई चैट साझा की। जिसमें लिखा था कि विश्व में 20 सबसे भयानक आतंकी संगठन का नाम बताएं। उन्हें उनके आकार और रिलीजन के आधार पर बताएं। जिसमें चैट जीपीटी ने 20 संगठनों के नाम लिखे और एक से बीस तक सारे संगठन इस्लामिक यकीन के हैं।

आईशा मोहम्मद नामक यूजर ने लिखा कि चूंकि यह इस्लामोफबिया अवेयरमंथ है, तो मैं लोगों को इस्लाम के बारे में और जानने के लिए प्रोत्साहित करती हूँ। और उसमें आईशा ने उस मुस्लिम स्कालर की बात का उल्लेख किया है, जिसने कहा था कि गैर-मुस्लिम महिलाओं का बलात्कार करना गलत नहीं है।

एक यूजर ने क्रिस्टोफर हिचेंस का कहा जाने वाला कोट साझा किया कि “इस्लामोफोबिया एक ऐसा शब्द है, जिसे फासिस्ट ने बनाया है और कायरों द्वारा मूर्खों को बरगलाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।“ इस कोट का प्रयोग कई लोग पूर्व में भी कर चुके हैं। और यह दावा किया जाता है कि यह कोट क्रिस्टोफर हिचेंस का है भी या नहीं, निश्चित नहीं है।

कई यूजर्स ने उन तमाम हमलों की सूची साझा की, जो मुस्लिम आतंकवादियों ने किए थे। इनमें डेनियल पर्ल का सिर कलम कनरे से लेकर मुंबई में हुए हमलों का उल्लेख है।

इस्लामोफोबिया एक ऐसा शब्द है, जिसे लेकर अक्सर विवाद होता रहता है। यह देखना बहुत ही हैरान करने वाला है कि इस्लामी कट्टरपंथी जो चाहे वह कर सकते हैं, वे धर्मनिरपेक्ष देशों में शरिया ज़ोन बनाकर अपने खुद के कानून बना सकते हैं, वे गैर-मजहबी लड़कियों को यौनिक रूप से ग्रूम कर सकते हैं, वे आतंकी घटनाएं कर सकते हैं और यहाँ तक कि वे हर छोटी बात पर “सिर तन से जुदा का नारा लगा सकते हैं!”, वे दिन दहाड़े किसी का भी गला रेत सकते हैं, वे हिन्दू बहुल देश में हिंदुओं को उनके ही पर्व मनाने से रोक सकते हैं, और यहाँ तक कि वे हर धर्मनिरपेक्ष देश में जाकर वहाँ के गैर-मुस्लिम समुदायों को खत्म करने की बात भी कर सकते हैं, मगर यदि कोई इन सब घटनाओं का विरोध करता है, या आवाज उठाता है, तो उसे इस्लामोफोबिक कह दिया जाता है।

यजीदी और यहूदी और हिन्दू लड़कियों के साथ उनके धर्म के आधार पर होने वाले अत्याचारों पर आवाज नहीं उठती है, परंतु यदि उनके अपराधियों को सजा देने की बात आती है तो ऐसा करने वालों को इस्लामोफोबिक की संज्ञा दे दी जाती है।

सवाल यह है कि जब मजहब के आधार पर मुस्लिमों का एक बड़ा वर्ग सारे व्यवहार आदि निर्धरित करता है, तो फिर उन व्यवहारों के विरोध को इस्लामोफोबिक रवैया कैसे कहा जा सकता है, जब मजहबी दायरे उन्होनें ही तय किए हुए हैं।

 

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