उत्तराखंड: पहाड़ की सड़कों पर हर 8 घंटे में सड़क दुर्घटना से औसतन एक मौत
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उत्तराखंड: पहाड़ की सड़कों पर हर 8 घंटे में सड़क दुर्घटना से औसतन एक मौत

पहाड़ के खतरनाक और बिना बैरिकेडिंग वाले मोड़, संकरी और गड्ढे वाली सड़कें, ओवरलोड बसें और जीपें, खटारा और फिटनेस में खामियों वाली गाड़ियां और पुलिस को महीना बांध कर बेधड़क चलती लारियां ऐसे कुछ कारणों पर प्रशासन जरा सा भी संजीदा हो जाए तो पहाड़ी मार्गों पर रोजाना हो रही औसतन तीन मौतों पर कुछ हद तक अंकुश लगाया जा सकता है।

by दिनेश मानसेरा
Nov 5, 2024, 12:30 pm IST
in उत्तराखंड
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देहरादून: 25 साल होने जा रहे हैं, उत्तराखंड की सड़कों पर हादसे कम नहीं बढ़ते जा रहे हैं। हर दुर्घटना पर नौकरशाही की सलाह पर सरकार द्वारा इसका ठीकरा किसी न किसी विभाग पर फोड़ कर मामला ठंडा कर दिया जाता है।

पहाड़ के खतरनाक और बिना बैरिकेडिंग वाले मोड़, संकरी और गड्ढे वाली सड़कें, ओवरलोड बसें और जीपें, खटारा और फिटनेस में खामियों वाली गाड़ियां और पुलिस को महीना बांध कर बेधड़क चलती लारियां ऐसे कुछ कारणों पर प्रशासन जरा सा भी संजीदा हो जाए तो पहाड़ी मार्गों पर रोजाना हो रही औसतन तीन मौतों पर कुछ हद तक अंकुश लगाया जा सकता है।

सड़क हादसों पर सरकार को बार-बार आगाह करनी वाली संस्था एस डी सी फाउंडेशन के अध्यक्ष अनूप नौटियाल कहते हैं कि मारचुला में एक और दर्दनाक सड़क दुर्घटना में 36 लोगों की मौत होना हृदय विदारक है। एक राज्य के रूप में हम हर साल करीब 1,000 लोगों को सड़क दुर्घटनाओं में खोते हैं। इसका मतलब है कि हमारे राज्य में औसत लगभग हर 8 घंटे में एक सड़क दुर्घटना से मृत्यु होती है। यह याद रखना जरूरी है कि घायलों की संख्या उन लोगों से कहीं अधिक है जो सड़क दुर्घटनाओं में मारे जाते हैं।

इसे भी पढ़ें: उत्तराखंड: अल्मोड़ा जिले के मार्चुला में बस खाई में गिरी, 36 यात्रियों की मौत

श्री नौटियाल कहते हैं कि यह उल्लेखनीय है कि दुर्घटना की गंभीरता की दर यानी 100 दुर्घटनाओं में मृतकों की संख्या, उत्तराखंड में राष्ट्रीय औसत की तुलना में काफी अधिक है। उत्तराखंड परिवहन विभाग की वेबसाइट पर उपलब्ध 2018 से 2022 की अवधि के लिए नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, राज्य में दुर्घटना की गंभीरता की दर 2018 में 71.3 के उच्चतम स्तर से 2021 में 58.36 के निम्नतम स्तर तक गई है। यह अत्यंत चिंताजनक है कि हमारी दुर्घटना की गंभीरता की दर राष्ट्रीय औसत से दोगुनी है।

इसे भी पढ़ें: नैनीताल के कैसे बन गई जामा मस्जिद, कहां गायब हो गए जमीनी और निर्माण अनुमति के दस्तावेज ? RTI से भी नहीं मिल रहे

श्री नौटियाल कहते हैं कि यह भी निराशाजनक है कि न तो भाजपा और न ही कांग्रेस, किसी भी राज्य सरकार ने उत्तराखंड में सड़क दुर्घटनाओं के मुद्दे को गंभीरता से लिया है। हाल की अल्मोड़ा दुर्घटना के मामंले में निचले स्तर के अधिकारियों को निलंबित करना सिर्फ एक तात्कालिक और अपरिपक्व निर्णय है, जो केवल सुर्खियों को मैनेज करने के लिए है। जब तक राज्य सरकार और इसके विभिन्न विभाग 4E के सिद्धांतों – इंजीनियरिंग, इमरजेंसी केयर, एनफोर्समेंट और एजुकेशन – पर गंभीरता से काम नहीं करेंगे, तब तक हम और अधिक जीवन खोते रहेंगे। सड़क सुरक्षा के बारे में सभी नगरिकों, ड्राइवरों और टूरिस्ट्स को जागरूक करना बेहद जरूरी है। सड़क सुरक्षा की संस्कृति विकसित करना एक भगीरथ प्रयास है, जिसके लिए सभी विभागों और सभी हितधारकों की सामूहिक कोशिशों की आवश्यकता है; यह केवल पुलिस की जिम्मेदारी नहीं हो सकती।

Topics: अल्मोड़ा सड़क हादसाAlmora road accidentसड़क हादसाroad accidentउत्तराखंड में रोड एक्सीडेंट से मौतेंRoad accident in Uttarakhand
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