हाल ही में उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले से एक खबर आई कि मुस्लिम समुदाय के लोग साधु का वेश रखकर भीख मांग रहे थे। पहचान छिपाकर इस तरह के मामले पहले पहले भी आ चुके हैं। इब्नबतूता का नाम तो आपने सुना ही होगा। वही, इब्नबतूता पहनकर जूता वाला। अरब यात्री इब्न बतूता।
अपनी यात्राओं में इब्नबतूता ने कई रोचक बातों का उल्लेख किया है। वह करीब 1333 ईसवी में भारत आया था। उनमें राजाओं, राज्यों और मुस्लिम नवाबों के साथ ही बहुत कुछ मजेदार घटनाएं भी हैं। गोवा की यात्रा के समय “मुस्लिम जोगी” अर्थात मुस्लिम योगी का उल्लेख है। योगी या जोगी और वह भी मुस्लिम? एक बार में इंसान चौंकेगा। मगर इब्न बतूता की यात्राओं के अंग्रेजी अनुवाद में इसका उल्लेख मिलता है। The Travels of Ibn Battuta, AD 1325–1354 Volume IV में वह गोवा की यात्रा का वर्णन करते हुए लिखता है कि मालाबार जाते समय वह संदाबुर (गोवा) नामक एक छोटे द्वीप पर आया, जो छत्तीस गावों से मिलकर बना है। (तीसवाडी)। इस स्थान के विषय में इब्न बतूता लिखता है कि यह एक समुद्र की खाड़ी से घिरा है, और जिसका पानी निम्न ज्वार होने पर मीठा होता है तो वहीं उच्च ज्वार के समय यह खारा होता है। इस द्वीप के केंद्र में दो शहर हैं। प्राचीन शहर काफिरों ने बनाया है और दूसरा मुस्लिमों ने जब उन्होंने इस पर पहली बार आक्रमण किया था।
इब्न बतूता फिर लिखता है कि हम यहां पर टिके नहीं थे, बस हमने किनारे पर अपना जहाज रोका था। जहां पर एक मंदिर, एक बागीचा और तालाब था। वहीं हमें एक जोगी मिला। फिर इस पुस्तक के अनुसार, ‘वह एक बुतखाने कई दीवार से पीठ टिकाए बैठा था। वह दो प्रतिमाओं के बीच बैठा था और ऐसा लग रहा था जैसे धार्मिक प्रक्रियाएं जारी होंगी। जब हमने उससे बात की तो उसने एक भी शब्द नहीं कहा, और हमने उसकी ओर देखा कि क्या उसके पास कुछ खाने के लिए है। मगर कुछ नहीं मिला। जब हम इधर-उधर देख रहे थे तो उसने एक तेज आवाज निकाली और उसके सामने एक नारियल आकर गिरा। उसने हमें वह दे दिया और फिर हमने उसे कुछ दिरहम देने चाहे, तो उसने इनकार कर दिया।’
ऊंट की खाल का लबादा भी था
इब्न बतूता लिखता है कि उसने उसके सामने एक ऊंट की खाल का लबादा भी देखा। और जब इब्न बतूता ने उसे देखने के लिए उठाया तो उसने उसे वह दे दिया। इब्न बतूता के हाथ में कुछ कौड़ियां थीं, जोगी ने उसे देखा और तो इब्न बतूता ने उसे वे दे दीं। उसने उसे अपने हाथ में रखकर घिसा, सूंघा और फिर चूम लिया और फिर पहले आसमान और फिर मक्का की दिशा में उंगली घुमाई।
इब्न बतूता लिखता है कि उसके साथी तो नहीं, मगर वह जरूर पहचान गया था कि वह जोगी मुसलमान है। और वह इस द्वीप के लोगों से अपने मुस्लिम मजहब की पहचान छिपाकर यहां पर नारियल पर गुजारा करके रह रहा है। जब वे लोग वहां से जाने लगे तो इब्न बतूता ने उसके हाथों को चूमा, जो उसके साथियों को पसंद नहीं आया मगर जोगी ने परवाह नहीं की और फिर उन लोगों से जाने के लिए कहा। जब वे लोग वहां से जाने लगे तो सबसे अंत में इब्न बतूता ही गया और जोगी ने चलते समय उसे रोका और उसके हाथ में दस दिनार रखीं। उसके साथियों ने जब पूछा कि आखिर उसने उसे क्यों रोका था, तो इब्न बतूता ने दिनार दिखाते हुए, उन्हें आपस में बांट लिया। चार अपने पास रखीं और तीन-तीन दिनार अपने साथियों को दीं और कहा कि वह एक मुस्लिम था; क्या उन्होंने नहीं देखा कि कैसे उसने आसमान की ओर इशारा किया था कि वह अल्लाह को जानता है और फिर उसने मक्का की ओर इशारा किया था, यह बताने के लिए कि उसे पता है कि वह कौन है। फिर वे सभी लोग वहां दोबारा गए, मगर वह उन्हें नहीं मिला।
हिंदू जोगी भी आया मिलने
इसके बाद वे लोग हिनवार (होनोवर – कर्नाटक) की ओर चले गए। इब्न बतूता लिखता है कि जब वे लोग हिनवार पहुंचे तो एक हिन्दू जोगी बहुत ही छिपते हुए उसके पास आया और उसे छह दिनार देते हुए बोला कि “उस ब्राह्मण ने आपके लिए भिजवाया है!” वह लिखता है कि इसका मतलब वही जोगी, जिसे उसने कौड़ियों का गुच्छा दिया था। इब्न बतूता ने एक दिनार उस हिन्दू जोगी को देनी चाहीं, मगर उसने इनकार कर दिया। उसके बाद उसने यह किस्सा अपने साथियों को बताया कि यदि वे चाहें तो अपना हिस्सा ले सकते हैं। मगर दोनों ने इंकार कर दिया। उन दोनों ने कहा कि “जो छह दिनार आपने हमें दी थीं, हमने और छह दिनार के साथ उन्हीं मूर्तियों के बीच छोड़ दी थीं, जहां हमने उसे देखा था,”
पहचान छिपाकर मंदिर में रहना
हालांकि इस विवरण में यह उल्लेख नहीं है कि क्या उस हिन्दू जोगी को यह पता था कि वह “ब्राह्मण” कौन था, जिसने ये दिनार इब्न बतूता के लिए भिजवाई थीं। फिर भी पहचान छिपाकर एक मंदिर में रहने का यह किस्सा भी रोचक है कि मंदिर में रहना भी है और अपनी मजहबी रिवाजों का पालन भी वहीं रहते हुए करना है।
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